
24 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. इसमें देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) में बढ़ते छात्र आत्महत्या के मामलों को गंभीरता से लिया गया है. कोर्ट ने न केवल इन संस्थानों को छात्रों की मानसिक सेहत के प्रति जिम्मेदार ठहराया, बल्कि एक नेशनल टास्क फोर्स के गठन का भी आदेश दिया.
छात्रों की आत्महत्या एक भयावह सच
देश के बड़े-बड़े संस्थानों जैसे IIT, NIT और IIM जैसे नामी कॉलेजों से आए दिन छात्रों की आत्महत्या की खबरें सुर्खियों में छाई रहती हैं. रैगिंग, जातिगत भेदभाव, अकादमिक दबाव और मानसिक तनाव जैसे कारणों ने कई युवा सपनों को खत्म कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस बढ़ते संकट को देखते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है कि इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाए. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि विश्वविद्यालय और कॉलेज सिर्फ पढ़ाई के केंद्र नहीं हैं, बल्कि ये छात्रों के समग्र विकास और उनकी भलाई के लिए भी जिम्मेदार हैं.
कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर किसी कॉलेज परिसर में आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है, तो संस्थान का यह कर्तव्य है कि वह तुरंत पुलिस में FIR दर्ज कराए. ऐसा न करने की लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी. क्या यह नियम कॉलेज प्रशासनों पर लगाम कसेगा? यह सवाल हर उस माता-पिता के मन में है, जिनके बच्चे इन संस्थानों में पढ़ रहे हैं.
नेशनल टास्क फोर्स के क्या होंगे लक्ष्य?
सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या से निपटने के लिए एक नेशनल टास्क फोर्स के गठन का ऐलान किया, जिसकी कमान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस. रविंद्र भट संभालेंगे. इस टास्क फोर्स में 9 अन्य विशेषज्ञ भी शामिल होंगे, जो अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं. इनमें मनोचिकित्सक, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील शामिल हैं. ये हैं टास्क फोर्स के सदस्य:
डॉ. आलोक सरीन- सिताराम भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च, नई दिल्ली के कंसलटेंट साइकोलॉजिस्ट.
इस टास्क फोर्स का मुख्य मकसद है छात्रों की आत्महत्या के कारणों को गहराई से समझना और इनके खिलाफ ठोस कदम उठाना. टास्क फोर्स को 4 महीने में अंतरिम रिपोर्ट और 8 महीने में अंतिम रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है.
क्या-क्या करेगी यह टास्क फोर्स?
सुप्रीम कोर्ट ने टास्क फोर्स को कई जिम्मेदारियां सौंपी हैं, जो इस समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास करेंगी. इनमें शामिल हैं:
इतना ही नहीं, कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया कि वे अपने उच्च शिक्षा विभाग से एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को नोडल अधिकारी के रूप में नामित करें. ये अधिकारी टास्क फोर्स के साथ सहयोग करेंगे और जरूरी डेटा व सहायता उपलब्ध कराएंगे.
IIT दिल्ली के दो छात्रों की कहानी ने हिलाया कोर्ट को
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब IIT दिल्ली के दो छात्रों के माता-पिता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनका दावा था कि उनके बच्चों ने जातिगत भेदभाव और अकादमिक दबाव के कारण आत्महत्या की. परिवारों का कहना था कि संस्थान ने उनकी शिकायतों को नजरअंदाज किया और पुलिस ने भी FIR दर्ज करने में आनाकानी की. इस याचिका ने कोर्ट को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया.
कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक व्यापक पैटर्न है, जो देश भर के शिक्षण संस्थानों में देखने को मिल रहा है.
केंद्र और राज्य सरकारों को सख्त हिदायत
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और विश्वविद्यालयों को टास्क फोर्स के साथ पूरा सहयोग करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई देरी, अनिच्छा या लापरवाही दिखाई गई, तो टास्क फोर्स एमिकस क्यूरी के जरिए कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग कर सकती है. इसके अलावा, टास्क फोर्स को किसी भी HEI में आकस्मिक निरीक्षण करने का अधिकार भी दिया गया है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि टास्क फोर्स छात्र यूनियनों, प्रतिनिधि संगठनों और सभी हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखेगी. इसके लिए प्रश्नावली तैयार कर लिखित जवाब भी मांगे जा सकते हैं.
20 लाख रुपये का फंड और आगे की राह
कोर्ट ने केंद्र सरकार को 2 हफ्ते के अंदर 20 लाख रुपये टास्क फोर्स के संचालन के लिए जमा करने का निर्देश दिया. अगर और फंड की जरूरत पड़ी, तो एमिकस क्यूरी इसके लिए आवेदन कर सकती हैं. यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट ने इसे "पार्ट हर्ड" रखा है और 4 महीने बाद टास्क फोर्स की अंतरिम रिपोर्ट के साथ इसकी फिर से सुनवाई होगी.