भोपाल के हुसैन सैफी ने पांच साल पहले 5 हजार की लागत से एक स्टार्टअप शुरू किया और आज कंपनी का टर्नओवर 5 करोड़ का हो गया है. हुसैन के सफलता की यह कहानी प्रेरणा से भरी है. हुसैन बताते हैं कि उनकी कंपनी 'हैकर कर्नल' का मुख्य काम डिजिटल ट्रांसफॉरमेशन का है. वह डिजिटल तरीके से कंपनियों की अलग-अलग समस्याओं का समाधान करते हैं जिससे कंपनियों का कॉस्ट कम हो जाता है और प्रॉफिट बढ़ जाता है.
15 साल की उम्र में बनाई वेबसाइट
हुसैन को बचपन से ही कंप्यूटर और कोडिंग का शौक था. हुसैन कहते हैं कि 12 साल की उम्र से ही उन्होंने कंप्यूटर और कोडिंग के साथ खेलना शुरू कर दिया था. 12 साल की उम्र में उनके पिता ने उन्हें सेकंड हैंड कंप्यूटर लाकर दिया था. उन्हें गेमिंग का बहुत शौक था लेकिन उन्हें नए नए गेम्स आसानी से नहीं मिलते थे. उसी उम्र में हुसैन के दिमाग में यह आइडिया आया कि क्यों ना ऐसी वेबसाइट बनाई जाए जहां पर लोगों को आराम से गेम मिल सके. हुसैन कहते हैं कि उस वक्त उनके घर पर कोई ब्रॉडबैंड कनेक्शन नहीं था. मोहल्ले में किसी का वाईफाई था जिसमें कोई पासवर्ड नहीं था. इसी फ्री वाईफाई का इस्तेमाल करके उन्होंने बॉलीवुड के लेटेस्ट गाने को डाउनलोड करने के लिए एक वेबसाइट बनाई. तब उनकी उम्र 15 साल की थी. यह वेबसाइट बहुत हिट भी हुई लेकिन तभी एक बड़ी म्यूजिक कंपनी ने उन्हें कॉपी राइट को लेकर नोटिस भेज दिया. हुसैन कहते हैं कि उस वक्त वह बहुत छोटे थे और उन्हें इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था.
25 दिनों में सीखी कोडिंग
हुसैन बताते हैं कि इस कंपनी को शुरू करने का कोई प्लान नहीं था. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम इस तरह के कोई सर्विस प्रोवाइडर बनेंगे. लेकिन एक बार मेरा एक्सीडेंट हुआ और मुझे 25 दिन तक आराम करने के लिए बोला गया. इन 25 दिनों में मैंने कोडिंग सीखी और Android App बनाना सीख लिया. इसके बाद मेरे दोस्तों ने मुझे ज्वाइन किया और हमने इस कंपनी की शुरुआत की. सबसे पहले मैं और मेरे दो दोस्तों ने मेरे बेडरूम में बैठकर काम करना शुरू किया. धीरे-धीरे हमारी संख्या 5 हुई. इसके बाद जब हमारी संख्या बढ़ने लगी तो हमने किराए पर जगह लेने की सोची. लेकिन मेरे पेरेंट्स ने बहुत सपोर्ट किया उन्होंने अपने लिविंग रूम को हमारा ऑफिस बना दिया और खुद छोटे रूम में शिफ्ट हो गए.
5 हजार से शुरू किया स्टार्टअप
हुसैन बताते हैं कि उनका पहला क्लाइंट एक लोकल फास्ट-फूड ब्रैंड था और उस आउटलेट पर बहुत ही अच्छे बर्गर मिलते थे, लेकिन उसके मालिक को इंटरनेट की क्षमता का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था. हुसैन ने बताया कि उन्होंने ही रेस्तरां के मालिक को वेबसाइट बनाने और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपनी बात को पहुंचाने का सुझाव दिया. इस वेबसाइट को बनाने के बदले हुसैन को 5 हज़ार रुपए का भुगतान हुआ, जिसका निवेश उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत के लिए कर दिया.
उम्र देखकर कंपनी ने नहीं दिया प्रोजेक्ट
हुसैन बताते हैं कि कंपनी को मैं मेरा दोस्त यश और रितिक चलाते थे. मेरी उम्र उस वक्त लगभग 19 साल थी. रितिक की उम्र भी लगभग इतनी ही थी और यश हम सबसे छोटा था. हम तीनों एक कंपनी में प्रोजेक्ट मांगने गए. वह भोपाल की एक बड़ी कंपनी थी लेकिन हमारी उम्र देख कर कंपनी के मालिक ने हमें सिरियसली नहीं लिया और हमें वहां से खाली हाथ लौटना पड़ा. इतना ही नहीं, हमने एक बार एक एंप्लॉय को हायर करना चाहा, फोन पर बात हुई लेकिन जब वह इंटरव्यू देने के लिए आया तो उसे लगा कि इंटरव्यू लेने वाले तो मुझसे भी कम उम्र के हैं तो भला क्या बिजनेस चलाएंगे और वह चला गया.
एक वक्त सैलरी देने के लिए भी नहीं थे पैसे
हुसैन बताते हैं कि किसी भी स्टार्टअप में शुरुआत में बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. शुरुआत में पैसे बचाने के लिए हम तीनों दोस्त एक ही बाइक से आते जाते थे. एक वक्त ऐसा भी आया जब हमारे पास सैलरी बांटने के लिए भी सिर्फ 1 महीने के पैसे बचे थे. आज लोग कहते हैं कि हम 5 साल में ही सफल हो गए लेकिन सच बात यह है कि उस वक्त हम ने दिन-रात एक कर दिया कंपनी को बचाने के लिए हमने 5 साल में 10 साल वाली मेहनत की है.
बिजनेस की वजह से कॉलेज छोड़ना पड़ा
हुसैन सैफी बताते हैं कि वह ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए. 12वीं करने के बाद उन्होंने बीसीए में एडमिशन लिया लेकिन तब तक वह अपना बिजनेस शुरू कर चुके थे. वह कहते हैं कि 1 दिन उनका एग्जाम था और उसी दिन क्लाइंट को डिलीवरी देनी थी. उन्हें बिजनेस या पढ़ाई में किसी एक को चुनना था उन्होंने बिजनेस चुना.
5 साल में 50 करोड़ की कंपनी बनाने का लक्ष्य
हुसैन कहते हैं कि उन्होंने 5 लोगों के साथ इस कंपनी की शुरुआत की थी आज उनकी कंपनी में 70 से ज्यादा लोग काम करते हैं. वो कहते हैं कि 5 सालों में उन्हें आईपीओ में लिस्ट होना है. इसका मतलब है कि 5 साल में उन्हें अपने कंपनी की हैसियत 50 करोड़ तक करनी है. उन्हें यकीन है कि वह यह मंजिल भी जरूर हासिल करेंगे. लेकिन हुसैन की कहानी से यह सीख जरूर मिलती है कि जिस तरह की आजादी हुसैन को उनके माता-पिता ने दी वैसी ही आजादी हर बच्चे को मिलनी चाहिए.