31 July ITR भरने की डेडलाइन...सात तरह के होते हैं आईटीआर फॉर्म, जानिए Nil ITR किसे कहते हैं और इसके भरने के फायदे

ITR Filing: देश में कुल सात तरह के आईटीआर फॉर्म हैं. इनकी संख्या ITR-1 से लेकर ITR-7 तक होती है. इन फॉर्म को अलग-अलग आय और आय के स्रोत वाले लोगों के हिसाब से तैयार किया गया है. इसके अलावा निल आईटीआर फॉर्म भी होता है. 

Income Tax Filing 2023
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 7:20 PM IST
  • आईटीआर नहीं जमा करने पर लग सकता है जुर्माना
  • 31 जुलाई तक जरूर फाइल करें आईटीआर 

आयकर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2023 है. हालांकि कई लोगों ने इसे अभी तक नहीं भरा है. उधर, राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा ने कहा है कि सरकार आईटीआर भरने की डेडलाइन को किसी भी प्रकार से बढ़ाने नहीं जा रही है. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति समय पर आईटीआर नहीं जमा करता है तो 5 लाख रुपए तक की आय पर 1000 रुपए तक और इससे अधिक की आय पर 5000 रुपए तक का जुर्माना लग सकता है.

देश में कुल सात तरह के आईटीआर फॉर्म हैं. इनकी संख्या ITR-1 से लेकर ITR-7 तक होती है. इन फॉर्म को अलग-अलग आय और आय के स्रोत वाले लोगों के हिसाब से तैयार किया गया है.  इनके अलावा जीरो आईटीआर फॉर्म (Nil ITR) भी होता है. एवाई 2023-24 के लिए पुराने टैक्स स्लैब के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति की सालाना आय 2.5 लाख रुपए से ऊपर है या नए टैक्स स्लैब के मुताबिक 3.5 लाख रुपए से ऊपर है तो उसे आईटीआर जरूर फाइल करना होगा.

किसे और कौन सा भरना चाहिए आईटीआर
ITR-1: देश की ज्यादातर जनता टैक्स भरने के लिए इसका प्रयोग करती है. यह सैलरी, एक हाउस प्रॉपर्टी से किराया, सेविंग्स अकाउंट पर हासिल ब्याज आदि के जरिए कुल 50 लाख रुपए सालाना आमदनी करने वालों के लिए होता है. 

ITR-2: यह फॉर्म उन व्यक्तियों और हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) के लिए होता है, जिनकी आय हाउस प्रॉपर्टी या पूंजी के जरिए अर्जित होती है. यदि किसी के पास कुछ विदेशी संपत्ति है या उसे विदेश से कमाई हुई है, उसे भी आईटीआर-2 भरना जरूरी है. 

ITR-3: यह फॉर्म उनके लिए है जो खुद बिजनेस कर रहे हैं या किसी प्रोफेशन से आमदनी हासिल कर रहे हैं. 

ITR-4: इसके जरिए ऐसे इंडिविजुअल और HUF (हिंदू अविभाजित परिवार) और फर्म (LLP को छोड़कर) रिटर्न दाखिल करते हैं, जिनकी बिजनेस और प्रोफेशन से हुई इनकम 50 लाख रुपए तक है. ITR-4 अपने बिजनेस और प्रोफेशन से प्रॉफिट कमाने वाले लोगों पर लागू होता है. इसे सुगम फॉर्म भी कहा जाता है.

ITR-5: आइटीआर-5 फॉर्म संस्थाओं के लिए होता है. ऐसे संस्थान जो फर्म, LLPs, AOPs, BOIs के रूप में रजिस्टर्ड हैं को आइटीआर-5 फॉर्म भरना होता है.

ITR-6: यह किसी भी कंपनी के लिए होता है जो आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 11 से संबंधित छूट का दावा नहीं कर रही होती है. इस धारा के तहत आयकर रिटर्न दाखिल करने वाली फर्म इसे केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप से भर सकती हैं.

ITR-7: इस फॉर्म को राजनीतिक दल, अस्पताल, चिकित्सा संस्थान, विश्वविद्यालय, कोष, समाचार एजेंसियां, ज्ञानिक अनुसंधान संघ और अन्य शैक्षणिक संस्थान, कॉलेज या विश्वविद्यालय या व्यावसायिक ट्रस्ट की ओर से भरा जाता है.

निल आईटीआर क्या है
निल आईटीआर वह आईटीआर है, जिसमें करदाता पर कोई टैक्स लायबिलिटी नहीं होती है. यानी आप पर कोई टैक्स नहीं बन रहा है, फिर भी आप आईटीआर भर रहे हैं, तो वह निल आईटीआर होगी. जब किसी व्यक्तिगत करदाता की आय एक वित्तीय वर्ष में 2.5 लाख रुपए से कम होती है तो उस पर कोई टैक्स नहीं बनता है. क्योंकि ऐसे लोग टैक्स ब्रैकेट में नहीं आते हैं. 

निल आईटीआर भरने के फायदे 
1. लोन मिलने में आसानी: आयकर रिटर्न प्रमाणित आय प्रमाण के रूप में काम करता है, जिससे लोन देने वाले संस्थानों से लोन लेना आसान हो जाता है.
2. छात्रवृत्ति आवेदन: कुछ छात्रवृत्तियों के लिए छात्रों को आयकर रिटर्न प्रमाण जमा करने की आवश्यकता हो सकती है. भले ही आय मूल छूट से कम हो, आईटीआर दाखिल करने से छात्रवृत्ति आवेदन प्रक्रिया में मदद मिल सकती है.
3. टीडीएस का रिफंड: यदि किसी टैक्सपेयर का टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) कटता है तो वह निल आईटीआर दाखिल करने से वित्तीय संस्थानों की ओर से काटी गई टीडीएस राशि की वापसी का दावा करने में सक्षम हो सकता है.
4. वीजा प्रक्रिया: निल रिटर्न दाखिल करने से आपको वीजा या क्रेडिट कार्ड आवेदन में मदद मिलती है क्योंकि यह आपकी आय का प्रमाण बन जाता है.
5. टैक्स रिफंड का दावा करना: निल आईटीआर दाखिल करके व्यक्ति भुगतान किए गए अतिरिक्त कर के रिफंड का दावा कर सकते हैं.
6. लॉस को कैरी फॉर्वर्ड करने में सहायक : निल आईटीआर दाखिल करके व्यक्ति वित्तीय वर्ष के दौरान पूंजीगत घाटे, व्यापार घाटे या किसी अन्य नुकसान को आगे बढ़ा सकते हैं. इन नुकसानों को भविष्य की कर योग्य आय के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है, जिससे बाद के वर्षों में कर देनदारी कम हो सकती है.


 

 

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