साल 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारत में पेंट के आयात पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया गया था. उस समय, केवल कुछ विदेशी पेंट कंपनियां और एक स्थापित भारतीय कंपनी, शालीमार पेंट्स ही बाज़ार में उपलब्ध थे. देशभर में भी स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था.
ऐसे मुश्किल समय के दौरान, एक नई पेंट कंपनी लॉन्च करना और मौजूदा कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन एक 26 वर्षीय उद्यमी - चंपकलाल चौकसी ने इसे एक अवसर की तरह देखा और अपने तीन दोस्तों- चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकील के साथ मार्केट में एंट्री की. इन सभी ने शुरुआत में बॉम्बे में एक छोटे से गैराज में काम किया और अंत में एशियन पेंट्स लॉन्च किया.
साल 1952 तक, एशियन पेंट्स ने पहले ही ₹23 करोड़ का वार्षिक कारोबार कर लिया था, और 1967 तक, यह भारत की अग्रणी पेंट निर्माण कंपनी बन गईं - और आज भी इस मुकाम पर कायम है. एशियन पेंट्स एक ऐसा ब्रांड बन गया है जो सभी भारतीयों से जुड़ा हुआ है. एशियन पेंट्स, उद्योग में भारत की पहली सबसे बड़ी और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी के रूप में स्थापित है.
गैराज से शुरू हुआ विशाल साम्राज्य
एक छोटे से गैराज से शुरुआत करके अपनी खुद की पेंट कंपनी शुरू करने तक का सफर आसान नहीं था. पुराने समय में, एशियन पेंट्स बॉम्बे के पुराने बड़े डिस्ट्रिब्यूटर्स को मना नहीं सका. इसलिए, बॉम्बे जैसे बड़े शहरों में वॉल्यूम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, एशियन पेंट्स ने एक उपेक्षित बाजार की सेवा करने का विकल्प चुना जो कि भारतीय ग्रामीण क्षेत्र थे.
उन्होंने अपना पहला प्रत्यक्ष डीलर महाराष्ट्र के सांगली, सतारा में खोला. धीरे-धीरे, जब एशियन पेंट्स ग्रामीण इलाकों के बाजार में जीत हासिल करने लगा, तो बॉम्बे के बड़े वितरकों ने उनसे संपर्क करना शुरू कर दिया और एशियन पेंट्स पर स्टॉक करना शुरू कर दिया.
मार्केटिंग का है कमाल
फिनोलॉजी के मुताबिक, पेंट उद्योग का मार्केट साइज 60,000 करोड़ रुपये के करीब है, जिसमें से संगठित पेंट कंपनियों की हिस्सेदारी लगभग 70% है. मार्केट लीडर एशियन पेंट्स की बाजार हिस्सेदारी 50% से अधिक है, जो इसके तीन निकटतम प्रतिस्पर्धियों - अक्ज़ो नोबेल, बर्जर पेंट्स, कंसाई नेरोलैक और शालीमार पेंट्स की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी से अधिक है.
यह सब एक मजबूत ब्रांड, मार्केटिंग और प्रौद्योगिकी-संचालित, अत्यधिक कुशल सप्लाई चेन बनाने पर कंपनी के फोकस के कारण हासिल किया गया है. एशियन पेंट्स ने भारत में इतने सालों में अपने उत्पादों को सफलतापूर्वक अलग किया है. इसने पेंट उद्योग में एक उल्लेखनीय स्थान बनाया, ठीक उसी तरह जैसे कोलगेट ब्रांड ने भारत में टूथपेस्ट उद्योग में बनाया.
22 देशों में है एशियन पेंट्स
आज की तारीख में, एशियन पेंट्स समूह दुनिया भर के 22 देशों में काम करता है. यह मूल रूप से आठ कॉर्पोरेट ब्रांडों के माध्यम से चार क्षेत्रों, आइसा, मध्य पूर्व, दक्षिण प्रशांत और अफ्रीका में काम कर रहा है: एशियन पेंट्स, एशियन पेंट्स बर्जर, एससीआईबी पेंट्स, एप्को कोटिंग्स, और टूबमैन्स, कॉजवे पेंट्स और कादिस्को.
देश भर में विभिन्न स्थानों पर कंपनी के आठ मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट हैं. वहीं, दुनिया भर में 26 विनिर्माण संयंत्र और 65 से अधिक देशों में उपभोक्ताओं को सर्विस देते हैं. यह वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और कई अन्य देशों सहित 17 देशों में संचालित होता है. यह भारत में 150,000+ खुदरा विक्रेताओं को सेवा दे रहा है. यह दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी पेंट कंपनी के रूप में स्थापित है और पिछले 50 वर्षों से भारत में मार्केट लीडर रही है. यह एशिया की तीसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी है और दुनिया भर के 22 देशों में इसका परिचालन है. आज तक, इसने कई अंतर्राष्ट्रीय सहयोग किए हैं और भारत में पेंट उद्योग में अपना नंबर 1 स्थान बनाए रखा है.
शानदार है बिजनेस मॉडल
एशियन पेंट्स की मजबूती का श्रेय उनकी रणनीति को जाता है जो उन्होंने कंज्यूमर ट्रेंड्स और पैटर्न की शुरुआत से ही पहचान करके बनाई. इस कारण वह सही उत्पाद और सही रणनीति के साथ सही वर्ग के लोगों को टारगेट कर पाए. सफल एडवरटाइजिंग भी कंपनी की मार्केटिंग रणनीति का मूलमंत्र बना हुआ है. 1954 में, जब कंपनी ने अपना मस्कोट- गट्टू, हाथ में पेंटब्रश पकड़े हुए शरारती बच्चे को पेश किया, तो इसने मध्यमवर्गीय भारतीय उपभोक्ताओं को आकर्षित किया.
बाद में, कंपनी के लिए निर्णायक मोड़ 1970 का दशक था, जब उसने मेनफ्रेम कंप्यूटर खरीदने के लिए 8 करोड़ रुपये खर्च किए; भारत में ऐसा कंप्यूटर खरीदने वाली यह पहली निजी कंपनी थी जिसका उपयोग डेटा एनालिटिक्स की मदद से मांग का पूर्वानुमान लगाने और सप्लाई चेन में सुधार करने के लिए किया गया था. एशियन पेंट्स व्यवसाय में हमेशा एक कदम आगे रहा.
बिजनेस में किया इनोवेशन
आगे बढ़ते हुए, 1982 में आईपीओ से प्राप्त आय का उपयोग कंपनी ने क्षमता विस्तार और नए उत्पाद लॉन्च करने के लिए किया. एशियन पेंट्स का एकमात्र ध्यान पेंट उद्योग के उपभोक्ता पक्ष पर था. यही कारण है कि यह एक मजबूत मदर ब्रांड और अल्टिमा, रोयाल और अन्य जैसे सब-ब्रांड बनाने में कामयाब रहा.
आज के समय में, एशियन पेंट्स ने अब बाथ फिटिंग्स, किचन और वॉटरप्रूफिंग सॉल्यूशंस, कलर कंसल्टेंसी, पेंटिंग सर्विसेज और इंटीरियर डिजाइनिंग जैसी सेवाओं में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है.