पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी न मिल पाना बहुत से युवाओं की समस्या है. ऐसे में युवा अक्सर गलत रास्ते पर चलने लगते हैं या छोटा-मोटा काम करते हैं. लेकिन यह कहानी एक ऐसे युवा की है, जिन्होंने अपने पारंपरिक काम को अपनाकर अच्छी सफलता हासिल की है.
यह कहानी है कश्मीर में श्रीनगर के निशात इलाके में रहने वाले 26 वर्षीय मोहम्मद उमर कुमार की. जो मिट्टी के रंग-बिरंगे सजावटी उत्पाद और शुद्ध व स्वच्छ बर्तन बना रहे हैं. उनके बिजनेस को लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. अच्छी आजीविका कमाने के साथ-साथ मोहम्मद कश्मीर की बरसों पुरानी 'ग्लेज़ पॉटरी' कला को भी सहेज रहे हैं.
यह सच है कि हमारे देश के लगभग सभी इलाकों में अलग-अलग तरह से मिट्टी के बर्तन और अन्य सजावटी चीजें बनती हैं. कहीं खुले में आंच पर मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं और फिर इनपर एक खास पत्ते से पॉलिश की जाती है. तो कहीं पर भट्ठी में मिट्टी के बर्तनों को पकाकर इन्हें प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है और चमकदार बनाते हैं.
हालांकि आज के आधुनिक जमाने में लोगों के घरों से मिट्टी की चीजें कम होने लगी हैं. और जो लोग खरीदते हैं उनके साथ बिडंवना यह है कि लोगों का रुझान अमेरिका और चीन से इम्पोर्ट किए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों और अन्य चीजों की तरफ बढ़ने लगा है. ऐसे में हमारी अपनी भारतीय कलाएं और कारीगर पिछड़ रहे हैं.
सहेज रहें पूवजों की कला:
इसे देखते हुए मोहम्मद उमर कुमार एक बार फिर मिट्टी के बर्तनों पर कश्मीरी कला को सहेजने में जुटे हैं. 26 वर्षीय कॉमर्स ग्रेजुएट मोहम्मद उमर कुमार बताते हैं कि उन्हें बीकॉम के बाद कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली. इसलिए उन्होंने वह काम करने की सोची जो उन्हें दादा-परदादा किया करते थे. और आज उन्हें इसमें अच्छी सफलता मिल रही है.
केंद्र सरकार की 'कारखाना' परियोजना के अंतर्गत उन्हें बतौर शिक्षक भी नियुक्त किया गया है. ताकि वह और भी कश्मीरी युवाओं को यह काम सिखाएं. वह मिट्टी से कई तरह की सजावटी टाइल्स से लेकर मटके और ‘कांगड़ी’ भी बना रहे हैं. इन मिट्टी के उत्पादों को आंच में पकाने के बाद इन्हें अलग-अलग रंगों का उपयोग करके चमकदार बनाया जाता है.
लोगों से मिल रही है अच्छी प्रतिक्रिया:
मोहम्मद ने अपनी यूनिट में बहुत सी कृतियों को प्रदर्शित किया हुआ है. जिनमें हाथ से बने मिट्टी के कटोरे, गमले, गुलदस्ते और टाइलें आदि शामिल हैं. चीन से आने वाले सभी बर्तन मशीनों पर बनते हैं और इनकी तकनीक यूट्यूब पर उपलब्ध है. लेकिन ये बर्तन कितने स्वच्छ और शुद्ध हैं, यह कह पाना मुश्किल है.
इसलिए उन्होंने घाटी के युवाओं से आग्रह किया कि वे अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करें और अपनी स्थानीय कला को सहेजने पर ध्यान दें. उनका कहना है कि युवाओं को सरकारी नौकरी के इंतजार में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. बल्कि समय की कीमत समझते हुए अपने पूर्वजों की कला को अपनाकर इसे आगे बढ़ाना चाहिए.
मिट्टी के बर्तनों की कला कश्मीरी समाज से लगभग गायब होने लगी थी. लेकिन अब उनके प्रयासों से इसे लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. क्योंकि आजकल लोग अच्छे स्वास्थ्य से भी मिट्टी के बर्तनों को जोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि अपने इस काम से वह अच्छा कमा भी रहे हैं.
(अशरफ वानी की रिपोर्ट)