दुनियाभर में सिंगल-यूज प्लास्टिक प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में से एक है. खासकर कि प्लास्टिक स्ट्रॉ जैसे उत्पाद ज्यादा हानिकारक हैं जो दिखने में छोटे हैं लेकिन इनके इस्तेमाल का पैमाना इतना बड़ा है कि इनका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है. इसलिए पिछले कुछ सालों से इको-फ्रेंडली स्ट्रॉ बनाने पर जोर दिया जा रहा है. जी हां, पेपर और मेटल के बाद और भी कई ऑर्गिनक मेटेरियल्स पर रिसर्च करके इको-फ्रेंडली स्ट्रॉ बनाई जा रही हैं. आप हम आपको बता रहे हैं ऐसा स्ट्रॉ के बारे में जो बनी हैं नारियल के पत्तों से.
बंगलुरु स्थित क्राइस्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर साजी वर्गीज़ ने साल 2017 में एक दिन परिसर में घूमते हुए एक सूखे नारियल के पत्ते को देखा. यह मुड़ा हुआ था और एक तरह से स्ट्रॉ के आकार में था. इसके बाद, दो सालों उन्होंने इस पर रिसर्च की. रिसर्च के बाद, वर्गीज से पेटेंटयुक्त मल्टी-लेयर्ड स्ट्रॉ विकसित की. ये स्ट्रॉ रसायन-मुक्त, एंटी-फंगल और हाइड्रोफोबिक है. साल 2020 में, इन इको-फ्रेंडली स्ट्रॉ को देशभर में पहुंचाने के लिए वर्गीज़ ने अपने स्टार्टअप- सनबर्ड स्ट्रॉ की स्थापना की.
पत्ती से स्ट्रॉ तक
कर्नाटक के 15 गांवों के सर्वेक्षण में पाया गया कि नारियल के पेड़ के पत्तों को या तो जला दिया जाता है या चूल्हे पर खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता है. वर्गीज़ का कहना है कि एक सूखे पत्ते से करीब 150-200 स्ट्रॉ बनाए जा सकते हैं.आज इन स्ट्रॉ को कासरगोड, तूतीकोरिन, बन्नूर, मेल्लाहल्ली और नागरकोइल में पांच प्रोडक्शन यूनिट्स में प्रोसेस किया जा रहा है.
फिलहाल, इन यूनिट्स के पास पर्याप्त कच्चा माल है. उत्पादन प्रक्रिया में हब-एंड-स्पोक मॉडल का इस्तेमाल होता है. जिसमें हब कासरगोड, तूतीकोरिन और बन्नूर में स्ट्रा उत्पादन केंद्र हैं. जबकि स्पोक- मेल्लाहल्ली और नागरकोइल में लीफ प्रोसेसिंग केंद्र हैं, जहां पत्तों की सफाई और चौड़ाई-काटने की मशीनें हैं.
यह है पूरी प्रक्रिया
स्पोक्स पर, पत्तियों को जेट वॉश प्रक्रिया के माध्यम से साफ किया जाता है, जिसके बाद उन्हें स्ट्रॉ के डायामीटर के आधार पर सटीक लंबाई और चौड़ाई में काटा जाता है. पत्तियों को खुरचा जाता है और अंत में उत्पादन के अगले चरण में भेजने से पहले उन्हें बंडलों में बांधा जाता है. इसके बाद, हब में इन्हें स्ट्रॉ का रूप दिया जाता है.
मेल्लाहल्ली में संसाधित पत्तियों को बन्नूर ले जाया जाता है, और नागरकोइल में साफ की गई पत्तियों को कासरगोड और तूतीकोरिन ले जाया जाता है. सनबर्ड स्ट्रॉ का प्राथमिक उद्देश्य प्लास्टिक और कागज के स्ट्रॉ की जगह इस स्ट्रॉ को पॉपुलर करना, ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देना और पत्तियों को जलाने पर होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करना था.
महिलाओं को मिला रोजगार
वर्गीज़ की कंपनी ने उन महिलाओं की मदद की है जिन्होंने कभी काम नहीं किया था लेकिन अब आजिविका कमा रही हैं. महिलाएं हर महीने, 5,000 रुपये तक कमा लेती हैं. इन महिलाओं को दस दिनों के लिए दो बैचों में प्रशिक्षित किया जाता है, प्रत्येक बैच में 15 महिलाएं शामिल होती हैं.
भारत देश के भीतर से ऑर्डर मिलने के अलावा, स्पेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके और यूएई में भी स्ट्रॉ की मांग है. बंगलुरु का होटल, फोर सीजन्स हर महीने 2,000-3,000 स्ट्रॉ का ऑर्डर देता हैं. वर्गीज का स्टार्टअप हर दिन 30,000 स्ट्रॉ का उत्पादन करता है. वहीं, 2023-24 तक हर दिन 3 लाख स्ट्रॉ उत्पादन का लक्ष्य है. इस स्ट्रॉ की शेल्फ लाइफ एक साल से ज्यादा है.