साइकिल अगरबत्ती घर-घर में अपनी जगह बना चुकी है. ये अगरबत्ती हर पूजा घर में सुगंध बिखरता मिल जाएगा. आज ये कंपनी हजारों करोड़ का कारोबार करती है. लेकिन इसकी शुरुआत एक शख्स ने 4000 रुपए से की थी. उस शख्स का नाम एन. रंगा राव था. बिजनेस शुरू करने के लिए उन्होंने अपनी मां के गहने गिरवी रख दिए थे. राव बचपन में पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए बिस्कुट बेचा करते थे. चलिए आपको साइकिल अगरबत्ती का एक ब्रांड बनने की कहानी बताते हैं.
6 साल में पिता का साथ छूटा-
साइकिल प्योर अगरबत्ती की शुरुआत करने वाले एन. रंगा राव का जन्म साल 1912 में हुआ था. वो एक साधारण परिवार से थे. उनके पिता एक टीचर थे. जब वो 6 साल के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया. परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. राव को पढ़ाई से खासा लगाव था, लेकिन इस शौक को पूरा करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
स्कूल में बिस्कुट बेचकर की पढ़ाई-
एन. रंगा राव को पढ़ाई करने में दिक्कत आने लगी. फीस के लिए पैसे नहीं थे. राव ने इसके लिए एक तरीका निकाला. उन्होंने स्कूल में बिस्कुट बेचना शुरू किया. वो स्कूल के गेट के बाहर बिस्कुट बेचते थे और जब स्कूल का समय होता था तो पढ़ाई करने चले जाते थे. इससे उनकी फीस भी पूरी हो जाती थी और जो पैसे बचते थे, उससे वो घर का खर्च उठाते थे. ट्यूशन फीस के लिए पैसे नहीं थे तो उन्होंने इसके लिए भी एक तरीका निकाला. उन्होंने टीचर से कहा कि फीस के बदले वो 6 छात्रों को दाखिला कराएंगे. राव ने अपना वादा पूरा किया और ट्यूशन फीस नहीं देना पड़ा.
सरकारी नौकरी का ऑफर लेटर फाड़ा-
साल 1948 में एन. रंगा राव ने अगरबत्ती कंपनी की शुरुआत की. इसके कुछ समय बाद ही उनको सरकारी नौकरी का ऑफर मिला. लेकिन उन्होंने इस फाड़ दिया और बिजनेस करने की ठान ली. जिस समय उनको सरकारी नौकरी का ऑफर मिला था, उस वक्त वो 4 बच्चों के पिता थे और परिवार की जिम्मेदारी थी. इसके बावजूद उन्होंने लेटर फाड़ दिया.
मां के गहने गिरवी रखकर शुरू किया बिजनेस-
वासु एंड साइकिल ब्रांड के फाउंडर एन. रंगा राव ने बिजनेस शुरू करने के लिए मां के गहने गिरवी रख दिए. साल 1948 में उन्होंने सिर्फ 4 हजार रुपए से बिजनेस की शुरुआत की. 10 साल के भीतर इस बिजनेस ने 10 हजार रुपए का कारोबार किया.
ब्रांड का नाम साइकिल क्यों रखा-
ब्रांड का नाम साइकिल रखने के पीछे उनकी ये सोच थी कि ये कॉमन नाम है. वो खुद साइकिल पर अगरबत्ती का बंडल रखकर बाजार में बेचने जाते थे. उस समय एक आने में 25 अगरबत्तियों का पैकेट मिलता था. अगरबत्ती ज्यादा महंगी ना हो, इसके लिए उन्होंने पैकेजिंग का खर्च कम कर दिया था. इसके लिए उन्होंने ग्रीसप्रूफ पेपर के रोल में पैक अगरबत्तियों को बेचना शुरू किया. उन्होंने मार्केटिंग का जिम्मा खुद उठाया. वो अगरबत्तियों को लेकर चिकमंगलूर और हासन जैसे बाजारों में जाते थे.
महिलाओं को दिया रोजगार-
एन. राव ने अगरबत्ती बनाने का काम महिलाओं को सौंपा. उन्होंने महिलाओं को रोजगार दिया. साल 1978 तक एन. रंगा राव ने कंपनी को संभाला. साल 1980 में एन. रंगा राव का देहांत हो गया. उसके बाद कंपनी की कमान उनके बेटों के हाथ में आ गई. आज कंपनी को उनकी तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. शुरुआती दौर में महिलाओं हाथों से अगरबत्तियां बनाती थीं. लेकिन साल 2005-06 में कंपनी से अगरबत्ती बनाने के लिए घरों में मशीनें उपलब्ध कराने लगी.
65 देशों में फैला है कंपनी का कारोबार-
आज कंपनी तेजी से ग्रो कर रही है. कंपनी का कारोबार 65 देशों में फैला है. कंपनी की मार्केट वैल्यूशन 7 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. कंपनी ने अपने ब्रांड को और भी बेहतर करने के लिए मार्केटिंग का सहारा लिया है. कई फेमस चेहरे कंपनी के ब्रांड एंबेसडर हैं. इसमें अमिताभ बच्चन से लेकर सौरभ गांगुली तक शामिल हैं. आज कंपनी के एमडी और सीईओ अर्जुन मूर्ति रंगा हैं.
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