जब भी कहीं MDH मसाले के पैकेट्स दिखते हैं या नाम आता है तो एक ही लाइन जहन में गुंजती है- 'असली मसाले सच सच, एमडीएच... एमडीएच.' और साथ ही, लाल पगड़ी पहने MDH वाले दादाजी याद आते हैं. जो MDH की हर एक एडवरटाइजमेंट में नजर आते थे.
जी हां, यह कहानी है मसाला ब्रांड 'एमडीएच' के मालिक और एफएमसीजी क्षेत्र में भारत के सबसे अधिक वेतन पाने वाले सीईओ महाशय धर्मपाल गुलाटी की. आज वह हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी फैन-फॉलोइंग उतनी ही है.
बंटवारे के समय आए थे दिल्ली
साल 1923 में अविभाजित भारत में सियालकोट में जन्मे, धर्मपाल गुलाटी को महाशय जी और दादाजी जैसे नामों से भी जाना जाता है. स्कूल ड्रॉपआउट होने के कारण, वह बहुत कम उम्र में ही अपने पिता के मसालों के व्यवसाय में शामिल हो गए थे.
कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, उन्होंने 5वीं कक्षा पूरी करने से पहले पढ़ाई छोड़ दी. साल 1937 में उन्होंने अपने पिता की मदद से कई छोटे-बड़े व्यवसाय शुरू किए लेकिन आखिरकार उन्होंने पिता के मसालों के व्यवसाय को ही संभाला. हालांकि, बंटवारे ने सबकुछ बदल गया.
उनका फलता-फूलता पारिवारिक व्यवसाय रातों-रात छिन गया और उन्हें अपने परिवार के साथ भारत आकर अमृतसर के एक शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा. साल 1947 में मात्र 1,500 रुपये लेकर वह अमृतसर से दिल्ली आ गए.
तांगा चलाकर शुरू किया मसालों का काम
कई मीडिया रिपोर्ट्स के हिसाब से 1500 रुपए में से उन्होंने 650/- रुपये में एक तांगा खरीदा और इसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक दो आना/सवारी में चलाया. कुछ समय तक तांगा चलाने के बाद उन्होंने अपने पांरपरिक काम को करने का फैसला किया.
गुलाटी ने एक छोटा लकड़ी का खोखा (दुकान / हट्टी) खरीदा. अजमल खान रोड, करोल बाग, नई दिल्ली में मसालों का अपना पारिवारिक व्यवसाय शुरू किया और इसे नाम दिया- महाशियां दी हट्टी (MDH). साल 1959 में MDH के जन्म के साथ एक मसाला ब्रांड बनने की यात्रा शुरू हुई.
पैकेजिंग ने किया कमाल
धीरे-धीरे उनके मसालों की खुशबू और स्वाद ने लोगों के दिलों में घर कर लिया. MDH को स्थानीय स्तर पर खूब प्रसिद्धि मिली. उनका व्यवसाय बढ़ता गया, और उन्होंने 1953 में एक और स्टोर शुरू किया. साल 1959 में, उन्होंने कीर्ति नगर, दिल्ली में एक प्लॉट खरीदा, ताकि पीसे हुए मसालों के उत्पादन के लिए एक कारखाना शुरू किया जा सके.
कंपनी की सबसे इनोवेटिव सोच रही पैकेज्ड मसाले पेश करना. दशकों से, MDH ने भारत में मसालों के बाजार में भारी सफलता हासिल की है और यह कई घरों में जाना-पहचाना स्वाद बन गया. साथ ही, गुलाटी भी MDH की पहचान बन गए.
बताया जाता है कि एक बार एमडीएच के लिए एक टीवी विज्ञापन की शूटिंग के दौरान, दुल्हन के पिता की भूमिका निभाने वाले अभिनेता समय पर पहुंचने में असफल रहे. धर्मपाल ने भूमिका निभाने और काम पूरा करने का फैसला किया. तब से, वे सभी सीआईएस विज्ञापनों में दिखाई दिए.
खड़ा किया करोड़ों का कारोबार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी अब 65 से अधिक उत्पाद बेचती है और देश भर में इसके लाखों खुदरा विक्रेता और कम से कम 1,000 थोक डीलर हैं. एक सूत्र के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में कंपनी ने परिचालन आय के तौर पर करीब 2,000 करोड़ रुपये और शुद्ध आय के तौर पर 420 करोड़ रुपये कमाए. आज, एमडीएच कारखानों की मशीनें एक ही दिन में 30 टन से अधिक मसालों का उत्पादन कर सकती हैं.
धर्मपाल का 3 दिसंबर, 2020 को 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया. मृत्यु से पहले, वृद्धावस्था में भी वे नियमित रूप से अपने कारखानों में जाकर काम का जायजा लेते थे. यह उनकी सोच और मेहनत थी जो आज MDH इतना बड़ा ब्रांड बन चुका है.