Exclusive: गृहिणी से लखपति किसान तक! घर के छोटे से बगीचे से की शुरुआत, हिमाचल की अनीता नेगी ने जैविक खेती में लिखी सफलता की नई इबारत, सालाना कमाई 40 लाख

अनीता देवी की यह कहानी सिर्फ एक किसान की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रमाण है कि सही दृष्टिकोण और मेहनत से कोई भी व्यक्ति नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है. उनकी यह यात्रा हजारों किसानों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है.

Anita Negi Natural Farming
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 24 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:35 PM IST

हिमाचल प्रदेश के बंजार उपमंडल के तरगाली गांव की अनीता देवी की चर्चा आज जैविक खेती की दुनिया जमकर हो रही है. 2018 में महज 12 बिस्वा जमीन पर खेती शुरू करने वाली अनीता आज 13 बीघा भूमि में जैविक कृषि कर सालाना 40 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी कर रही हैं. यह यात्रा सिर्फ आर्थिक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि एक ऐसी प्रेरणादायक दास्तान भी है जिसने कई अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई है.

शुरुआत का संघर्ष और जैविक खेती की ओर रुख
अनीता देवी ने GNT डिजिटल को बताया, "मैं कुल्लू से ताल्लुक रखती हूं और खेती करते हुए मुझे 25 साल हो गए हैं. शादी के बाद से ही मैंने खेती को अपनाया, लेकिन शुरुआत में मैं भी रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करती थी. हम लहसुन, गोभी, मटर और टमाटर उगाते थे और मुनाफा भी ठीकठाक होता था, लेकिन धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ कि रासायनिक खेती से हमारी जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है. यहां तक कि जब मैं खेत में स्प्रे करने जाती थी, तो मेरा शरीर बीमार पड़ने लगा. हाथों में खुजली हो जाती थी और थकान भी बढ़ गई थी."

इसी दौरान, अनीता ने हिमाचल प्रदेश के नेचुरल फार्मिंग डायरेक्टर द्वारा आयोजित एक कैंप में भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में सीखा. उन्होंने फैसला किया कि अब वे रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की ओर बढ़ेंगी.

तीन बीघा में मॉडल फार्मिंग और नई तकनीकों का प्रयोग
अनीता ने 12 बिस्वा जमीन से शुरुआत की और गोबर खाद का इस्तेमाल करना शुरू किया. वे बताती हैं, "हमारी जमीन जो पहले बंजर हो चुकी थी, जैविक खाद डालने के बाद धीरे-धीरे उर्वरक बन गई. इसके बाद मैंने 3 बीघा में जैविक कृषि का एक मॉडल तैयार किया. इसमें मुख्य फसल सेब है, लेकिन इसके साथ-साथ मैं मिश्रित खेती भी करती हूं, जिसमें 10-12 फसलें उगाती हूं."

उन्होंने नर्सरी का काम भी शुरू किया. वे कहती हैं, "2020-21 में मैंने 1500 पेड़ लगाए थे. अगले साल यह संख्या 15,000 हुई और फिर 20,000. इस बार मैंने 40,000 पौधे तैयार किए हैं. इन पेड़ों की अच्छी गुणवत्ता देखकर लोग इन्हें खरीदने आने लगे. इससे मुझे यह समझ में आया कि सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि पौधों की नर्सरी से भी अच्छी कमाई की जा सकती है."

रासायनिक खेती से जैविक खेती का फायदा
अनीता बताती हैं, "रासायनिक खेती में हमारा खर्चा 50,000 रुपये से 1 लाख तक चला जाता था, लेकिन जबसे नेचुरल फार्मिंग शुरू की है, तबसे खर्चा केवल 10,000-15,000 रुपये तक ही रहता है. साथ ही, उत्पादन भी बेहतर हुआ है."

वे अपनी आमदनी के बारे में कहती हैं, "सेब की खेती से हम 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं, जिससे सालाना 4-5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. लेकिन असली मुनाफा नर्सरी से हो रहा है. 40,000 पौधों में से अभी तक 25,000 पौधे बिक चुके हैं, जिससे 32-33 लाख रुपये की आय हो चुकी है. बाकी 15,000 पौधों की बिक्री होने के बाद कुल आमदनी करीब 38-39 लाख रुपये तक पहुंच जाएगी."

परिवार और समाज का बदलता नजरिया
अनीता शुरू में अकेली थीं और उनके परिवार वाले जैविक खेती के पक्ष में नहीं थे. वे बताती हैं, "शुरुआत में घरवाले तैयार नहीं थे, लेकिन मैंने पहले छह महीने मेहनत की और उन्हें दिखाया कि यह मिट्टी कैसे उपजाऊ बन सकती है. जब उन्होंने नतीजे देखे तो वे भी मेरे साथ खड़े हो गए और आज पूरा परिवार मिलकर इस काम में लगा है."

महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा
जैविक खेती में सफलता के बाद अनीता को 2019 में बंजार ब्लॉक की मास्टर ट्रेनर की जिम्मेदारी दी गई. वे अब तक 36 प्रशिक्षण शिविरों में 300 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत महिलाएं हैं. इनमें से करीब 200 महिलाएं किचन गार्डन से लेकर खेतों तक जैविक खेती कर रही हैं और लाखों रुपये कमा रही हैं.

सम्मान और उपलब्धियां
अनीता की मेहनत और सफलता को कई मंचों पर सराहा गया है. वे कहती हैं, "2010 में मुझे बेस्ट फार्मर अवार्ड मिल चुका है. इसके अलावा, हाल ही में लुधियाना में आईसीएआर की ओर से इनोवेटिव वुमन एंटरप्रेन्योर अवार्ड मिला. पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने मुझे 'उन्नत एवं प्रेरणास्रोत कृषि दूत' सम्मान से नवाजा, जबकि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, हरियाणा ने भी मुझे सम्मानित किया है."

आगे की राह और भविष्य की योजनाएं
अनीता अपनी खेती के विस्तार और नई तकनीकों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. वे कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि और भी किसान जैविक खेती की ओर बढ़ें. मेरा सपना है कि हिमाचल प्रदेश में जैविक कृषि एक आंदोलन बने और किसान अपनी जमीन की उर्वरता को बनाए रखते हुए अच्छी आमदनी कमा सकें."

अनीता देवी की यह कहानी सिर्फ एक किसान की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रमाण है कि सही दृष्टिकोण और मेहनत से कोई भी व्यक्ति नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है. उनकी यह यात्रा हजारों किसानों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है, जो अब अपने खेतों में रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं.


 

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