कीमती सामान को रखने के लिए साधारण ताले और तिजोरियों से लेकर आपकी मजबूत अलमारी तक, सुगंधित साबुन से लेकर चंद्रमा तक पहुंचने तक, गोदरेज कंपनी सैकड़ों सालों से देश के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाती आ रही है. साल 1857 में स्थापित, गोदरेज कंपनी की जड़ें स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी हैं, जिसने लोगों के दिलों और घरों में तेजी से अपनी जगह बनाई और आज गोदरेज ग्रुप की वर्थ एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. गोदरेज ग्रुप में गोदरेज इंडस्ट्रीज, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, गोदरेज प्रॉपर्टीज, गोदरेज एग्रोवेट और एस्टेक लाइफसाइंसेज जैसी कंपनियां शामिल होती हैं.
वकील बनने का था सपना बन गए बिजनेसमैन
गोदरेज कंपनी की स्थापना अर्देशिर गोदरेज ने की थी, जिनका वकील बनने का सपना कभी पूरा नहीं हुआ और इसके बजाय उन्होंने सर्जिकल उपकरण बनाने का फैसला किया. हालांकि, उनके ग्राहकों ने उन पर "मेड इन इंडिया" ब्रांडिंग के कारण उपकरण लेने से इनकार कर दिया. लेकिन, बहुत जल्द ही 1897 में, उन्होंने ताले बनाकर और ताला बनाने की फैक्ट्री स्थापित करके अपनी पहली सफलता का स्वाद चखा.
अर्देशिर गोदरेज के ताले लाने से पहले, भारत कारखाने में बने ताले आयात करता था. 1908 तक, व्यवसायी ने दुनिया के पहले स्प्रिंगलेस ताले का पेटेंट करा लिया था और धीरे-धीरे अपने योगदान से भारत का इतिहास बदल दिया. ताले के बाद, अर्देशिर गोदरेज ने भारत में पहला शाकाहारी साबुन बनाया और यह बहुत हिट रहा. विदेशी कंपनी के साबुन जानवरों की चर्बी का उपयोग करके बनाए जाते थे, लेकिन अर्देशिर ने 1919 में वनस्पति तेल के अर्क से पहला शाकाहारी साबुन बनाया. उस समय यह न केवल क्रूरता-मुक्त था, बल्कि यह एक स्वदेशी विकल्प था जिसे भारतीय खरीदने के लिए तैयार थे. दिलचस्प बात यह है कि इसका समर्थन रवीन्द्रनाथ टैगोर, डॉ. एनी बेसेंट और सी राजगोपालाचारी ने भी किया था.
...जब सुरक्षित रही गोदरेज की तिजोरी
1944 में एक बड़ी दुर्घटना के बाद गोदरेज ने अपना नाम एक विश्वसनीय कंपनी के रूप में स्थापित कर लिया. दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में, बॉम्बे में एसएस फोर्ट स्टिकिन को डॉक किया गया था, जो गोला-बारूद, जहाजों और विमानों के लिए स्पेयर, सोने की छड़ें, ज्वलनशील माल और बहुत कुछ ले जा रहा था. 14 अप्रैल को एक आग लगी. कथित तौर पर यह इतनी घातक थी कि 700 लोगों की जान चली गई. हालांकि, मलबे के अलावा गोदरेज की तिजोरी के अंदर जो कुछ भी रखा था, वह उस आग से पूरी तरह सुरक्षित रहा, जिसके बाद गोदरेज का नाम मार्केट में उठ गया.
लोकतांत्रिक भारत में पहला आम चुनाव न केवल देश के लिए बल्कि गोदरेज कंपनी के लिए भी एक टेस्ट था, क्योंकि उन्होंने ही बैलेट बॉक्स बनाए थे. 60 और 70 के दशक के दौरान, गोदरेज स्टील की खिड़कियां और दरवाजे के फ्रेम भी बना रहा था. जैसे-जैसे कंपनी ने नई ऊंचाइयों को छुआ, उनके उत्पाद की मांग बढ़ी और मुंबई के कोलाबा में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के परिसर से लेकर लाइब्रेरी, एयर इंडिया बिल्डिंग और ओबेरॉय होटल तक में गोदरेज की छाप देखी जा सकती है.
इसरो के अभियानों में दिया योगदान
1963 में, आदि गोदरेज पारिवारिक बिजनेस में शामिल हो गए. उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि कंपनी पुराने ढंग से काम कर रही है और कुछ सुधारों की जरूरत है. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक कंपनी के संचालन का तरीका था. लेकिन जल्द ही, उन्होंने कंपनी में परिवार के सदस्यों की भागीदारी सीमित कर दी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रोफेशनल्स को लाने का फैसला किया. उन्होंने कंपनी के सीईओ या सीओओ जैसे पदों पर बाहरी लोगों को नियुक्त किया. जल्द ही, कंपनी को वैश्विक पहचान मिल गई.
गोदरेज जल्द ही टाइपराइटर का उत्पादन करने लगा और भारत में रेमिंगटन को कड़ी प्रतिस्पर्धा दी. टाइपराइटर के उत्पादन से कंपनी को भारत की पहली अंतरिक्ष यात्रा में अपनी जगह पक्की करने में मदद मिली. गोदरेज ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए एक हाई-प्रिसीजन सैटेलाइट विकसित किया और मंगलयान और चंद्रयान जैसे कई अभियानों में इसरो की मदद की है. और अब 127 साल बाद गोदरेज ग्रुप, गोदरेज परिवार के बीच बंट गया है. परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समझ के साथ बिजनेस को बिना किसी लड़ाई-झगड़े के बांटा गया है. उम्मीद है कि आगे भी गोदरेज ग्रुप इसी तरह देश का नाम रोशन करता रहेगा.