Srikanth Bolla in Shark Tank: बचपन से आंखों की रोशनी नहीं, MIT से पढ़ाई कर खड़ी की 500 करोड़ की कंपनी, अब बने शार्क टैंक के जज... जानिए श्रीकांत बोला के जीवन की कहानी

आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम जिले के सीतारामपुरम में एक चावल किसान के घर जब श्रीकांत का जन्म हुआ तो रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता को उनसे छुटकारा पाने की सलाह दी. वजह यह कि श्रीकांत देख नहीं सकते थे. आज वही बच्चा भारत में 500 करोड़ का बिजनेस चला रहा है. कैसा रहा है श्रीकांत के जीवन का सफर, देखिए.

श्रीकांत बोला (दाएं से पहले नंबर पर)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 17 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 1:18 PM IST

इंसान चाहे तो चट्टान काटकर उससे रास्ता निकाल सकता है. नदी का रास्ता मोड़ सकता है. बंजर ज़मीन पर फूल खिला सकता है. इंसान की इच्छाशक्ति के आगे कोई काम नामुमकिन नहीं. यह साबित किया है आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम गांव में जन्मे श्रीकांत बोला ने. श्रीकांत जब इस दुनिया में आए तब से वह देख नहीं सकते. उनके माता-पिता को सलाह दी गई थी कि श्रीकांत को त्याग दिया जाए. 

उनके माता-पिता ने ऐसा नहीं किया. अब 33 साल की उम्र में श्रीकांत अमेरिका की एक बड़ी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भारत में 150 करोड़ का बिजनेस खड़ा कर चुके हैं. इस सफलता के दम पर श्रीकांत अब शार्क टैंक इंडिया में एक जज भी बन गए हैं.आइए जानते हैं कैसा रहा है उनका सफर

जब माता-पिता से कहा गया, इसे छोड़ दो
आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम जिले के सीतारामपुरम में एक चावल किसान के घर जब श्रीकांत का जन्म हुआ तो रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता को उनसे छुटकारा पाने की सलाह दी. रिश्तेदारों का कहना था कि जो देख नहीं सकता, वह बुढ़ापे में उनके क्या काम आएगा? लेकिन श्रीकांत की किस्मत में बेबसी और लाचारी नहीं लिखी थी. वह ऐसे अनगिनत लोगों के लिए मिसाल बनने वाले थे जिन्हें लगता था कि आंखों की रोशनी न होना स्पेशल एबिलिटी नहीं बल्कि डिसेबिलिटी है.

स्कूलों ने नकारा, आईआईटी ने भी
बोला ने जब माध्यमिक स्तर की पढ़ाई पूरी कर ली और सीनियर स्कूल में विज्ञान पढ़ना चाहा तो उनके स्कूल ने उन्हें यह अनुमति नहीं दी. राज्य के कानून के अनुसार बोला जैसे दृष्टिहीन छात्रों के लिए डायग्राम और ग्राफ के साथ काम करना चुनौतीपूर्ण था. उन्हें कला, भाषा, साहित्य और सामाजिक विज्ञान पढ़ने की सलाह दी गई. 

निराश बोला ने एक टीचर की मदद लेकर अदालत में स्टेट बोर्ड के खिलाफ केस किया. उन्होंने केस जीत लिया. अदालत ने फैसला सुनाया कि अंधे छात्र आंध्र प्रदेश के सभी राज्य बोर्ड के स्कूलों में अपने वरिष्ठ वर्षों में विज्ञान और गणित पढ़ सकते हैं. हालांकि सीनियर स्कूल में विज्ञान और गणित की पढ़ाई पढ़ने के बाद भी उनकी जिंदगी आसान नहीं हुई. 

श्रीकांत ने 12वीं की परीक्षा में 98% अंक प्राप्त करने के बाद आईआईटी (Indian Institute of Technology) में आवेदन करने का फैसला किया. लेकिन उन्होंने जिन कोचिंग स्कूलों से संपर्क किया वे इसके लिए तैयार नहीं थे. बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में श्रीकांत बताते हैं, "मुझे शीर्ष कोचिंग संस्थानों ने कहा कि मैं इस पाठ्यक्रम का बोझ नहीं सह पाऊंगा. मुझे कोई पछतावा नहीं है. अगर आईआईटी नहीं चाहता था कि मैं आऊं तो मैं भी आईआईटी नहीं जाना चाहता था." 

श्रीकांत ने इसके बजाय अमेरिका के विश्वविद्यालयों में आवेदन किया. उन्हें पांच विश्वविद्यालयों ने सीट देनी चाही लेकिन श्रीकांत ने कैम्ब्रिज के मैसाचुसेट्स में एमआईटी (Massachusetts Institute of Technology) में दाखिला लिया. 

फिर भारत लौटकर शुरू किया बिजनेस 
श्रीकांत 2012 में हैदराबाद लौटे और बोलेंट इंडस्ट्रीज की स्थापना की. उनकी फर्म पर्यावरण के अनुकूल प्रोडक्ट तैयार करती है. खास बात यह है कि बोलंट इंडस्ट्रीज दृष्टिहीन लोगों को रोजगार के जरिए आत्मसम्मान का जीवन जीने का मौका देती है. बोलंट के चार उत्पादन संयंत्र हैं. इनमें से एक कर्नाटक के हुबली और तेलंगाना के निज़ामाबाद में है. दो तेलंगाना के हैदराबाद में हैं. 
 

बोला को वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की यंग ग्लोबल लीडर्स 2021 लिस्ट में भी शामिल किया गया था. उनके जीवन पर 'श्रीकांत' नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें राजकुमार राव ने उनका किरदार निभाया है. बोलेंट डॉट कॉम के अनुसार, उनकी कंपनी की वैल्यू इस वक्त 500 करोड़ है. और हर साल उन्हें 100 करोड़ का मुनाफा हो रहा है. अपनी इसी सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अब श्रीकांत शार्क टैंक इंडिया पर नए बिजनेस और इनोवेशन्स में इनवेस्ट करने के लिए तैयार हैं. 

 

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