आनंद महिंद्रा का नाम सुनते ही ज्यादातर लोगों के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है. इसकी वजह है आनंद महिंद्रा को ट्वविटर पर एक्टिव रहना. आनंद सोशल मीडिया के जरिए हर तरह के तबके के लोगों से जुड़ते हैं, उनकी कहानियां शेयर करते हैं और कई बार उनकी मदद करते हैं.
चाहे वह 'जूतों के डॉक्टर (मोची) हों' या कोई दिव्यांग, जिसकी मेहनत से प्रभावित होकर उन्होंने उसे नौकरी दी. Mahindra and Mahindra का नाम आज हर क्षेत्र में है. कार, ट्रेक्टर, डिफेंस वाहन से लेकर आईटी, हॉस्पिटैलिटी तक, महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी का सब जगह बोलबाला है.
हालांकि, साल 1945 में जब यह कंपनी शुरू हुई तब यह स्टील ट्रेडिंग कंपनी थी. इस कंपनी को मुहम्मद एंड महिंद्रा के नाम से जाना जाता था. पर भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, मुहम्मद पाकिस्तान चले गए (और वहां के पहले वित्त मंत्री बने). इसके बाद हरिकृष्ण और जयकृष्ण महिंद्रा ने इसका नाम बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा कर दिया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कंपनी को जीप बनाने का अवसर मिला.
पर कहते हैं कि महिंद्रा एंड महिंद्रा के लिए 4 अप्रैल 1991 को एक नई शुरूआत हुई, जब आनंद महिंद्रा ने कंपनी जॉइन की. आज आनंद महिंद्रा अपना 67वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस मौके पर जानते हैं कि कैसे उन्होंने कदम-कदम पर रिस्क लेकर महिंद्रा एंड महिंद्रा को देश-विदेश की बेहतरीन कंपनियों में शामिल कर दिया.
बनाई कंपनी की अलग पहचान
फिनोलॉजी के मुताबिक, आनंद महिंद्रा के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी जब उन्हें 1991 में एमएंडएम की कांदिवली फैक्ट्री का काम सौंपा गया था. उस समय, कर्मचारी हड़ताल पर थे और सबने उनके ऑफिस को घेर लिया. जिसके बाद सबको लगा कि आनंद महिंद्रा ने उनकी मांग पूरी की होगी.
पर आनंद महिंद्रा ने दूसरा तरीका अपनाया और कहा कि अगर कर्मचारी काम पर नहीं लौटे तो उन्हें दिवाली बोनस नहीं दिया जाएगा. औप हड़ताल रुक गई. किसने सोचा होगा कि इस तरह हड़ताल खत्म की जा सकती है. पर बाद में उनके नेतृत्व में कंपनी की प्रडक्टिविटी 50% से बढ़कर 150% हो गई.
इसके बाद एक बार महिंद्रा ग्रुप ने एकदम स्क्रैच से कार बनाने की ठानी पर उनके पास तकनीक का अभाव था. इसलिए, उन्होंने फोर्ड के साथ एक संयुक्त प्रोजेक्ट किया. पर एस्कॉर्ट कार बाजार में लॉन्च होने पर ज्यादा नहीं चली. पर आनंद महिंद्रा ने हार नहीं मानी. उन्होंने रिस्क लिया और बिना किसी के सहयोग के अकेले ही कार बनाने का निर्णय किया. सबने कहा कि वह बर्बाद हो जाएंगे.
पर यह उनका सबसे सफल प्रोजेक्ट रहा. इस कार का नाम है- स्कॉर्पियो. और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को अन्य कंपनियों के मुकाबले काफी कम लागत में पूरा किया.
कंपनी को किया रीब्रांड
2009 तक, Mahindra and Mahindra हर एक भारतीय घर में प्रसिद्ध हो गई थी. उन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय किसी से पीछे नहीं हैं. यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता भी है. सिर्फ ट्रैक्टर ही नहीं कई तरह के खेती के उपकरण यह कंपनी बनाती है. आनंद महिंद्रा की अलग सोच के कारण, महिंद्रा एंड महिंद्रा ट्रैक्टर और लाइट वेहिक्ल के मामले में बाजार की अग्रणी कंपनी बन गई है.
ऑटोमोबाइल के अलावा, यह आईटी, फाइनेंशियल सर्विसेज और वैकेशन जैसे क्षेत्रों में भी आगे है. कंपनी की आज अंतरराष्ट्रीय पहुंच है. इसका संचालन 72 देशों में है और 100 से अधिक देशों में कंपनी आज बिजनेस कर रही है.
...फिर भी बेटी ने कहा लूजर:
जी हां, इस बारे में खुद आनंद महिंद्रा ने ट्वीट किया था. दरअसल, एक बार आनंद महिंद्रा ने शेयर किया कि भारत में बिल गेट्स के दौरे के समय उनकी मुलाकात हुई थी. और वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बिल गेट्स से क्लासमेट रहे हैं. इसी दौरान आनंद महिंद्रा ने एक फनी किस्सा भी साझा किया.
आनंद का कहना था कि उन्हें बिल से एक दुश्मनी है. और बिल ने जब पूछा कि क्या दुश्मनी तो उन्होंने कहा कि इसकी वजह उनके बच्चे हैं. एक बार उनकी बेटी ने उनसे पूछा था कि आपके कॉलेज में ऐसा कौन-सा क्लासमेट था जो अब बहुत मशहूर है तो उन्होंने बिल गेट्स का नाम लिया. जिसके बाद उनकी बेटी ने उन्हें लूजर कहा. आनंद ने कहा कि आपका धन्यवाद, मैं हमेशा अपने बच्चों के लिए लूजर रहुंगा. यह किस्सा सुनकर बिल गेट्स भी खूब हंसे.
हालांकि, भारत के लिए आनंद महिंद्रा सबसे सफल बिजनेस मैन और एक बेहतरीन इंसान हैं. जिनकी कोशिश सिर्फ अपने बिजनेस को ही नहीं बल्कि अपने देश और लोगों को आगे बढ़ाने की है.