Success Story: ट्रक ड्राइवर से मिलेट्स मिलेनियर तक, जानिए कैसे किसान ने खड़ा किया सफल फूड बिजनेस

वीर शेट्टी तेलंगाना के संगारेड्डी जिले में अपने 15 एकड़ के खेत में मिलेट्स की खेती और प्रोसेसिंग करते हैं. उन्होंने हजारों पुरुषों और महिलाओं को रेडी-टू-ईट मिलेट्स प्रोडक्ट्स तैयार करने में भी प्रशिक्षित किया है.

Millet Man of Telangana
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 15 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST
  • हमेशा से करना चाहते थे अपना काम 
  • लोगों ने मजाक बनाया, पर वह पीछे नहीं हटे

मिलेट्स को लेकर पिछले काफी समय देशभर में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. भारत सरकार के प्रयासों से दुनियाभर मे साल 2023 को International Year of Millets के रूप में मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि मिलेट्स सिर्फ सेहत ही नहीं बल्कि किसानों की कमाई बढ़ने का भी जरिया बन रहे हैं. और इस बात को साबित किया है तेलंगाना के किसान  बिराधर वीर शेट्टी ने. 

साल 2009 में महाराष्ट्र के बीड की यात्रा के दौरान शेट्टी को मिलेट्स की खेती करने और इनसे स्नैक्स बनाने बनाने का विचार आया. तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के 9वीं कक्षा पास शेट्टी कभी आजीविका के लिए ट्रक चलाते थे. लेकिन आज वह 1 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार के साथ एक सफल फूड बिजनेस चला रहे हैं और हजारों किसानों की मदद भी कर रहे हैं. 

हमेशा से करना चाहते थे अपना काम 
50 वर्षीय शेट्टी ने अपना बचपन तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के गंगापुर गांव में बिताया है. किसान परिवार से होने के कारण उनकी रुचि खेती में थी. हालांकि, उनका परिवार चाहता था कि उन्हें एक अच्छी नौकरी मिले. इसलिए, शेट्टी रोजाना स्कूल आने-जाने के लिए 10 किमी की पैदल यात्रा करते थे. 

गांव में स्कूल केवल कक्षा 9 तक था और बच्चों को बड़ी कक्षाओं में पढ़ने के लिए 25 किमी दूर जाना पड़ता था. शेट्टी को आगे पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इसलिए, 1990 में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और एक ट्रक ड्राइवर के हेल्पर बन गए. बाद में, वह खुद ट्रक चलाने लगे. और 1997 तक एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम किया. हालांकि, वह हमेशा सोचते थे कि उन्हें अपने दम पर कुछ करना चाहिए. लेकिन उन्हें नहीं पता था कि क्या करना है. 

ICRISAT ने बदली जिंदगी 
2006 में, शेट्टी को हैदराबाद में अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) में ड्राइवर-कम-जनरल असिस्टेंट के रूप में नौकरी मिल गई. उन्होंने संस्थान के दोनों वैज्ञानिकों डॉ. सीएच रवींद्र रेड्डी और डॉ. अशोक अलुर के अधीन काम किया. यहां पर हमेशा से उद्यमशील रहे शेट्टी ने फिर से पढ़ाई शुरू की और 10वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की. 

उन्होंने अपनी नौकरी के साथ-साथ स्नातक की पढ़ाई भी की. उनके विभाग ने उनकी मेहनत को देखते हुए उनके कंप्यूटर और फोटोग्राफी कोर्सेज को फंड किया. साल 2009 में उन्हें एक प्रोजेक्ट के तहत महाराष्ट्र जाने का मौका मिला. यहीं पर उन्हें कुछ अलग करने का ख्याल आया. शेट्टी ने अपने बॉस डॉ. रेड्डी से कहा कि वह एक व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं. डॉ. रेड्डी ने उन्हें 20,000 रुपये दिए.
इस पैसे से, शेट्टी ने 2009 में एक छोटी सी दुकान खोली जहां उन्होंने ज्वार की रोटियां बेचीं. 

लोगों ने मजाक बनाया, पर वह पीछे नहीं हटे
जब उन्होंने हैदराबाद में अपना पहला आउटलेट खोला, तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि कोई भी ज्वार की रोटी नहीं खाएगा. आज उनके पास अलग-अलग शहरों में पांच आउटलेट हैं, जहां रोटियां लेने के लिए लंबी कतारें लगती हैं. 

शेट्टी का कहना है कि उन्होंने ज्वार की रोटी के विचार पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि उन्होंने ICRISAT में काम करने के दौरान ज्वार पर व्यापक शोध किया था. साल 2016 में, शेट्टी ने किसानों को सपोर्ट करने के उद्देश्य से स्वयं शक्ति एग्री फाउंडेशन के नाम से एक एनजीओ शुरू किया.

मिलेट्स की प्रोसेसिंग पर काम 
शेट्टी किसानों को सिखाते हैं कि मिलेट्स की फसल कैसे लगाएं, कब पानी देना है और उसकी रोपाई कैसे करें. वह उन्हें फसल की कटाई, कटाई के बाद के प्रोसेसिंग, फसल के मूल्यवर्धन और बेहतर कीमतें लेने के लिए उत्पादों की पैकेजिंग और मार्केटिंग के बारे में भी प्रशिक्षित करते हैं. 

शेट्टी ने तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के गंगापुर में एक प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की है, जहां वह किसानों को मिलेट्स प्रोसेस करना सिखाते हैं. शेट्टी के सपोर्ट से, किसानों ने अपनी आय दोगुनी कर ली है. वह महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किसानों को मिलेट्स के बीज भी उपलब्ध कराते हैं. 

शुरू की Rurban परियोजना 
शेट्टी तेलंगाना के तीन जिलों - वारंगल, मेहबूबनगर और संगारेड्डी में केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित रूर्बन परियोजना भी लागू कर रहे हैं. परियोजना के तहत, 30 महिला सदस्यों और 500 किसानों के साथ तीन स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाए गए हैं. किसानों की उपज को महिलाएं खरीदती हैं और प्रोसेस करके फूड स्नैक्स बनाकर मार्केट करती हैं. 

वह महिलाओं को ज्वार, बाजरा और रागी के आटे से सूखी रोटी, मल्टीग्रेन लड्डू, नमकीन, मल्टीग्रेन चिक्की, रागी स्नैक्स और बिस्कुट, बाजरा खीर और बिरयानी बनाने का प्रशिक्षण देते हैं. बहुत सी महिलाओं ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है, स्थानीय दुकानों, हाइवे पर ढाबों और टोल प्लाजा पर स्टालों के माध्यम से उत्पाद बेच रही हैं. ये महिलाएं प्रति माह 12,000 रुपये से 15,000 रुपये तक कमाती हैं. 

मिले हैं कई पुरस्कार 
शेट्टी प्राकृतिक खेती करते हैं जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए अच्छी है. शेट्टी और उनके रिश्तेदार गंगापुर में अपनी 15 एकड़ जमीन पर बाजरा की खेती करते हैं. उन्होंने एक प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की है. उत्पादों को Millovit ब्रांड के तहत भवानी फूड्स के जरिए बेचा जाता है. उन्होंने 2016 में एक और कंपनी, एग्रो फूड्स की स्थापना की, जो किसानों से मिलेट्स खरीदती है और प्रोसेस करती है.

शेट्टी ने पांच आउटलेट खोले हैं, जो दिल्ली, हैदराबाद, वारंगल, मेहबूबनगर और सदाशिवपेठ में हैं. 40 कर्मचारियों के साथ, उनके मिलेट्स बिजनेस का टर्नओवर सालाना 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है. शेट्टी का कहना है कि आगे चलकर वह 1 लाख किसानों के साथ काम करना चाहते हैं और 200 लोगों को नौकरी देना चाहते हैं. 

अपने काम के लिए उन्होंने 2017 में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन से सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार, 2017 में भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) हैदराबाद से बेस्ट मिलेट मिश्रय्या पुरस्कार और कृषि मंत्रालय से सर्वश्रेष्ठ अभिनव किसान पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते हैं.

 

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