नई बीमा कंपनी को दूसरी चल रही पॉलिसी के बारे में बताना जरूरी है? या इससे क्लेम रिजेक्ट हो सकता है? Supreme Court क्या कहता है?

महावीर शर्मा के पिता ने एक दूसरी पॉलिसी की जानकारी पहले ही दे दी थी. छिपाई गई पॉलिसियों की कुल राशि सिर्फ 2.3 लाख रुपये थी, जबकि जो पॉलिसी उन्होंने बताई थी, वह 40 लाख रुपये की थी. यानि कि बीमा धारक ने कोई जरूरी जानकारी नहीं छुपाई थी! फिर भी कंपनी ने दावा गलत तरीके से खारिज कर दिया.

Insurance and Claim
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 28 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:39 AM IST
  • 25 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी
  • पूरा भुगतान करने का आदेश दिया गया

अगर आपने भी कोई बीमा पॉलिसी (Insurance Policy) ले रखी है, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है! सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे लाखों बीमा धारकों को राहत मिलेगी. Exide Life Insurance ने 25 लाख रुपये के बीमा दावे को खारिज कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को आड़े हाथों लेते हुए 9% ब्याज के साथ भुगतान करने का आदेश दिया है. 

क्या था मामला? 
मामले में याचिकाकर्ता के पिता ने Exide Life Insurance कंपनी से 25 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी. उनके निधन के बाद, उनके बेटे (याचिकाकर्ता) ने बीमा दावा दायर किया. लेकिन बीमा कंपनी ने दावा यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता के पिता ने अपनी दूसरी बीमा पॉलिसियों की जानकारी छिपाई थी.

बीमा कंपनी का दावा था कि याचिकाकर्ता के पिता ने सिर्फ एक पॉलिसी की जानकारी दी थी, जो उन्होंने Aviva Life Insurance से ली थी, जबकि उन्होंने अन्य बीमा पॉलिसियों की जानकारी नहीं दी. इस आधार पर बीमा कंपनी ने दावा अस्वीकार कर दिया. 

याचिकाकर्ता पहले स्टेट कंज्यूमर कमीशन और फिर नेशनल कंज्यूमर कमीशन में गए, लेकिन दोनों जगह से उन्हें राहत नहीं मिली. इसके बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 

क्या सच में ऐसा था?
महावीर शर्मा के पिता ने एक दूसरी पॉलिसी की जानकारी पहले ही दे दी थी. छिपाई गई पॉलिसियों की कुल राशि सिर्फ 2.3 लाख रुपये थी, जबकि जो पॉलिसी उन्होंने बताई थी, वह 40 लाख रुपये की थी. यानि कि बीमा धारक ने कोई जरूरी जानकारी नहीं छुपाई थी! फिर भी कंपनी ने दावा गलत तरीके से खारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला!
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा, "बीमा एक 'अत्यंत विश्वास' (Utmost Good Faith) का कॉन्ट्रैक्ट होता है. पॉलिसी धारक को सभी जरूरी जानकारी देनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि छोटी-मोटी बातें छिपाने से पूरा दावा रद्द कर दिया जाए!"

कोर्ट ने साफ किया कि अगर कंपनी को पहले से पता था कि पॉलिसी धारक की भुगतान करने की क्षमता है, तो अन्य पॉलिसियों की जानकारी छिपाना महत्वपूर्ण तथ्य (Material Fact) नहीं माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में पिछले कुछ मामलों का हवाला दिया, जिसमें बीमा दावा अस्वीकार करने का तर्क सही पाया गया था. उदाहरण के लिए- Reliance Life Insurance Co. Ltd. & Anr. v. Rekhaben Nareshbhai Rathod मामले में, बीमा कंपनी ने दावा अस्वीकार किया क्योंकि बीमाधारक ने अपनी पहले की बीमा पॉलिसियों की जानकारी छुपाई थी. कोर्ट ने माना कि गर बीमाधारक ने सभी पॉलिसियों की जानकारी दी होती, तो बीमा कंपनी उनकी वित्तीय स्थिति और बीमा की जरूरत को लेकर और जांच कर सकती थी. लेकिन, मौजूदा मामले में स्थिति अलग थी.

 बीमा कंपनी ने दावा अस्वीकार कर गलत किया और उसे 9% ब्याज के साथ पूरा भुगतान करने का आदेश दिया गया.

आपके लिए जरूरी सबक! 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बीमा पॉलिसी लेने वालों के लिए कई महत्वपूर्ण सबक देता है:

  1. हमेशा पूरी जानकारी दें: अगर आप बीमा पॉलिसी ले रहे हैं, तो किसी भी अन्य बीमा पॉलिसी की जानकारी छुपाने की गलती न करें.
  2. प्रीमियम भुगतान की क्षमता साबित करें: अगर आप कई पॉलिसियां ले रहे हैं, तो बीमा कंपनी को भरोसा दिलाएं कि आप सभी पॉलिसियों की किश्तें चुका सकते हैं.
  3. बीमा कंपनी के निर्णय को चुनौती दें: अगर बीमा कंपनी गलत तरीके से आपका दावा अस्वीकार कर रही है, तो आप कंज्यूमर कोर्ट में अपील कर सकते हैं.

 

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