Making vegan leather using coconut water: नारियल के पानी से वीगन लेदर बना रहा है यह स्टार्टअप, बड़ी-बड़ी ब्रांड्स को कर रहे हैं सप्लाई

इस चमड़े को बनाने में किसी जानवर को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है. केरल के नारियल पानी से एक टेक्सचर्ड, वाटर-रेस्सिटेंट प्लैदर बनाया जा रहा है, जिसका उपयोग बैग, पाउच, पर्स और जूते बनाने में किया जाता है.

Malai making pleather
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 15 जून 2023,
  • अपडेटेड 3:14 PM IST
  • कंपोस्टेबल है यह वीगन लेदर
  • साल 2018 में किया मलाई लॉन्च 

आज के जमाने में दुनिया भर में लोग वीगन डाइट को अपनी रहे हैं और ऐसे में केरल स्थित एक कंपनी मलाई ने पारंपरिक चमड़े की जगह वीगन लैदर की पेशकश की है. मलाई बायोमटेरियल्स डिज़ाइन प्राइवेट लिमिटेड एक बायो-कॉम्पोजिट मैटेरियल बनाया है जो लेदर की तरह दिखता और फील होता है. उन्होंने नारियल पानी का उपयोग करके टेक्सचर्ड और जल प्रतिरोधी प्लैदर बनाया है, जिसका उपयोग अब बैग, पाउच, पर्स और जूते बनाने के लिए किया जाता है. 

साल 2018 में किया लॉन्च 
साल 2018 में लॉन्च किया गया, मलाई स्लोवाकिया की एक मैटेरियल रिसर्चर और फैशन डिजाइनर ज़ुज़ाना गोम्बोसोवा और केरल के एक प्रोडक्ट डिजाइनर और मेकर, सुस्मित सी एस के दिमाग की उपज है. आज, गोम्बोसोवा केरल के एक नए बिजनेस पार्टनर अकील सैत के साथ कंपनी की हेड हैं. 

सुस्मिथ और ज़ुज़ाना दोनों ही रोजाना प्लास्टिक सामग्री के संपर्क में आने से घुटन महसूस करते थे. हम दोनों स्वस्थ और प्राकृतिक मैटेरियल के साथ काम करने के इच्छुक हैं. बैक्टीरियल सेलुलोज कई वर्षों तक ज़ुज़ाना ने स्टडी किया है. वह इसकी निर्माण प्रक्रिया, व्यवहार, गुणों और क्षमता से प्रभावित थी. उन्होंने अध्ययन किया कि फिलीपींस में खाद्य उद्योग और फैशन उद्योग में बहुत कम जगहों पर नारियल में होने वाले बैक्टीरिया का उपयोग कैसे किया जा रहा है. 

लेकिन यूके में उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे. इसलिए सुस्मित से मिलकर वह केरल पहुंची और वहां उन्होंने नारियल पानी में बैक्टीरियल सेलूलोज़ के साथ प्रयोग करना शुरू किया और यही मलाई के निर्माण का कारण बना. 

कंपोस्टेबल है यह वीगन लेदर
मलाई का प्लैदर बायोडिग्रेडेबल और कम्पोस्टेबल है. केरल में एक नारियल प्रोसेसिंग यूनिट से नारियल पानी लेते हैं और फिर इसे जीवाणुरहित किया जाता है जिसके बाद बैक्टिरीयल कल्चर को उस पर फीड करने की अनुमति दी जाती है. फर्मेंटेशन के परिणामस्वरूप सेलूलोज़ जेली की एक शीट बनती है जिसे बाद में काटा जाता है, रिफाइन किया जाता है, और फिर प्राकृतिक रेशों, रेजिन और गोंद के साथ प्रबलित किया जाता है. इससे मिलने वाला मैटेरियल फ्लेक्सिबल होती है जिसे शीट्स में ढाला जाता है और कुछ मामलों में रंगा जाता है, और उसके बाद सामान में तैयार किया जाता है. 

इसके अतिरिक्त वे अपने उत्पादों में बेकार नारियल, केले के तने, सिसाल के रेशे और सन के रेशों का भी इस्तेमाल करते हैं. मीडिया के मुताबिक, एक टीयूवी प्रमाणीकरण पुष्टि करता है कि सैंपल को उत्पाद सुरक्षा के लिए परीक्षण किया गया है और जर्मन उपकरण और उत्पाद सुरक्षा अधिनियम की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करता है. सर्टिफिकेट के अनुसार, यग उत्पाद चमड़े की तुलना में काफी अच्छा है. 

आगे बढ़ रहा है काम 
लंदन डिजाइन वीक और प्राग डिजाइन वीक जैसे प्लेटफार्मों पर प्रदर्शन ने मलाई को बहुत जरूरी एक्सपोजर दिया है, जिससे इसे पेटा-अनुमोदित लेबल बना दिया गया है. इसके अलावा, उन्हें एले डेकोर डिज़ाइन अवार्ड, ग्रैंड चेक डिज़ाइन और सर्कुलर डिज़ाइन चैलेंज जैसे कई पुरस्कार मिले हैं. मलाई  से अब भारत में रीति, यूके स्थित एथिकल लिविंग और जर्मनी में लकी नेली जैसे ब्रांड्स भी प्लैदर खरीद रही हैं. 

COVID-19 ने कंपनी को प्रभावित किया था. उनकी प्रोसेसिंग यूनिट ने कई महीनों तक उत्पादन बंद कर दिया, फिर भी वे कई जगह सफलता हासिल करते रहे, जिसमें पहली बार वर्चुअल लैक्मे फैशन वीक 2020 में शामिल होना भी है.उनका कहना है कि मलाई से बना उत्पाद कई वर्षों तक टिकेगा. यहां तक ​​कि अगर आप इसका निपटान करना चाहते हैं, तो भी आप उत्पाद को अपने कंपोस्टेबल कचरे के साथ रख सकते हैं, और स्वाभाविक रूप से बायोडिग्रेड हो जाएगा. 

 

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