महिलाओं ने मिलकर रखी Made in Sitapur ब्रांड की नींव, जलकुंभी से बन रहे Eco-Friendly प्रोडक्ट्स, बिजनेस के साथ बचा रहीं पर्यावरण

यूपी में महिलाएं Made in Sitapur प्रोडक्ट्स बनाकर न सिर्फ आय कमा रही हैं बल्कि पर्यावरण को भी बचा रही हैं. ये महिलाएं जलकुंभी से तरह-तरह के प्रोडक्ट्स बना रही हैं.

Women making products from water hyacinth
शिल्पी सेन
  • लखनऊ,
  • 30 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:44 AM IST
  • महिलाओं ने खड़ा किया Made in Sitapur ब्रांड
  • 34 महिलाओं को मिली ट्रेनिंग

कहा जाता है कि भारत गांवों में बसता है. लेकिन आज भी दूर दराज़ के गांवों में जल स्रोत के रूप में नदी - तालाबों का ही सहारा है. हालांकि, आजकल तालाबों में जलकुंभी (Water Hyacinth) एक बड़ी समस्या है. पर अब इस समस्या से निजात पाने का रास्ता दिखा रही हैं उत्तर प्रदेश के सीतापुर की महिलाएं. ।

सीतापुर के मिश्रिख ब्लॉक की महिलाएं जलकुंभी से तरह-तरह के प्रॉडक्ट्स तैयार कर रही हैं और उन्होंने अपना खुद का ब्रांड खड़ा किया है. जिसे अब अमेजन से लेकर कंपनियों में कॉर्पोरेट गिफ्टिंग के लिए पहचान मिल रही है.  

महिलाओं ने खड़ा किया Made in Sitapur ब्रांड
प्रसिद्ध तीर्थ नैमिशारण्य (Naimisharanya) की वजह से दूर-दूर तक सीतापुर की पहचान है. हर साल बहुत से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं. और अब यहां की महिलाओं के हाथों का हुनर भी अपनी पहचान बना रहा है. महिलाएं अपने बनाए प्रॉडक्ट्स को 'कुंभी' ब्रांडनाम से प्रोमोट कर रही हैं और उनकी टैगलाइन है ‘Made in Sitapur.’ 

वे एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत पर्स, जूते, हैट, बॉटल कवर, गमले, सजावटी सामान जलकुंभी से बना रही हैं. हालांकि, उनके प्रोडक्ट्स इसलिए खास हैं क्योंकि ये ‘जीरो कॉस्ट प्रोडक्ट्स’ हैं यानि वो उत्पाद जिनको बनाने के लिए किसी भी तरह की लागत नहीं लगी है. 

कैसे मिला यह आइडिया
अब सवाल है कि जलकुंभी के जरिए अपना हुनर दिखाने का आइडिया इन महिलाओं को कैसे मिला? दरअसल, इसके लिए मिश्रिख की महिलाओं की सूझबूझ ने एक रास्ता बनाया तो अधिकारियों और महिला समूह ने उनको राह दिखायी. जलकुंभी से प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग रंजीता जैसी युवाओं की वजह से शुरू हुई. 

रंजीता कहती हैं कि जलकुंभी की वजह से गांव में बहुत समस्या होती थी. कभी मवेशी इसमें फंस जाते थे तो तालाब होने के बावजूद मछली पालन भी लोग नहीं कर पाते थे. वजह थी कि जलकुंभी पानी का सारा ऑक्सीजन ले लेती थी. इस परेशानी का हल ढूंढते हुए इन महिलाओं को आइडिया मिला कि अगर बांस और मूंज की डलिया और दूसरी चीजें बन सकती हैं तो जलकुंभी की क्यों नहीं? 

34 महिलाओं को मिली ट्रेनिंग  
सीतापुर प्रशासन के अधिकारियों ने इस पर गौर किया और इस आइडिया को हकीकत बनाकर महिलाओं के लिए ट्रेनिंग आयोजित की. इसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 34 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गयी और एक समस्या ने रोज़गार का रूप ले लिया. 

जलकुंभी से प्रोडक्ट बनाकर महिलाओं ने जहां अपना हुनर दिखाना शुरू किया वहीं महिला समूह ने इसकी ब्रांडिंग की. अब कई गांव में जलकुंभी निकालने का काम पुरुष करते हैं और घर की महिलाएं प्रोडक्ट बनाती हैं. धीरे- धीरे इसमें और वैराइटी जुड़ रही है. 

जीरो कॉस्ट और इको-फ्रेंडली
जलकुंभी से बने उत्पादों की ख़ास बात ये है कि ये ज़ीरो कॉस्ट प्रॉडक्ट्स हैं यानी उनको बनाने में किसी भी तरह की कोई लागत नहीं लगती है. साथ ही, ये इको-फ्रेंडली भी हैं. एक और ख़ास बात इन उत्पादों को अलग बनाती हैं कि ये कि पानी में भीगने के बाद भी ख़राब नहीं होते. 

अब महिलाएं जलकुंभी को समस्या न मानकर उनको रोज़गार का ज़रिया मानती हैं. जिससे उनको एक के बाद एक लक्ष्य हासिल होता जा रहा है. जलकुंभी से बनी चीज़ें अब आस-पास के दूसरे इलाक़ों के लोगों को भी रास्ता दिखा रही हैं. 

 

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