झारखंड में महुआ का इस्तेमाल सबसे अधिक देसी शराब बनाने में होता है और यही कारण है की पौष्टिक महुआ सब जगह बदनाम है. महुआ में कई औषधीय गुण होते हैं और यह बहुत ही उपयोगी फल है. पर गलत कारणों के लिए यह मशहूर हो गया. हजारीबाग के चरही थाना क्षेत्र का जरबा गांव कभी महुआ से देसी शराब बनाने के लिए बदनाम था. लेकिन अब यहां बदलाव की बयार बह रही है. इस गांव में एक स्वयं सहायता समूह है जो से स्वादिष्ट अचार बना रहे हैं.
हजारीबाग के पुराने सदर ब्लॉक परिसर में अचार के व्यवसायिक उत्पादन के लिए वर्ल्ड बैंक की सहायता से अचार बनाने का पूरा संयंत्र लगाया गया है. पहले महिलाएं अपने गांव जरबा में ही अचार बनाया करती थीं. उनके उत्पाद को लोगों ने हाथों हाथ लिया और धीरे-धीरे इनका यह काफी प्रसिद्ध हो गया.
पारंपरिक रेसिपी से बनाती हैं अचार
महिलाओं को झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी यानी जेएसएलपीएस से सहायता मिली और उन्हें हजारीबाग में एक परिसर दिया गया. जहां अब वे बड़ी मात्रा में अचार का उत्पादन कर रही हैं. स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बताती हैं कि जब ग्रुप की महिलाओं ने आचार बनाकर आमदनी बढ़ाने का विचार किया तो सवाल उठा कि परंपरागत चीजों का ही अचार बनाया जाए या कुछ नया किया जाए. काफी विचार करने के बाद महुआ पर सहमति बनी.
घरों में पहले इसका उपयोग जानवरों को खिलाने में भी किया जाता था. लेकिन इलाके में इसका इस्तेमाल सबसे अधिक देसी शराब बनाने में होता था. गांव में देसी शराब बनने से सबसे अधिक परेशानी और नुकसान महिलाओं को ही था. क्योंकि इस देसी शराब के सेवन के बाद घर के पुरुष एक तो पैसे की बर्बादी करते थे और दूसरा गृहकलह खूब होता था.
दूसरे जिलों में जा रहा है अचार
धीरे-धीरे इन महिलाओं ने महुआ से अचार बनाना शुरू किया और फिर इस इलाके में महुआ का अचार काफी लोकप्रिय होने लगा. आज इनके बनाए प्रोडक्ट न केवल हजारीबाग में बल्कि जेएसएलपीएस के माध्यम से कई जिलों में सप्लाई किए जा रहे हैं. अब यह महिलाएं एक बड़ा मार्केट तलाश रही है ताकि अपने इस प्रोडक्ट को ऑनलाइन भी बेच सकें. इसके लिए काम किया जा रहा है अगर यह सफल होता है तो फिर झारखंड के हजारीबाग के महुआ का अचार पूरे देश में उपलब्ध हो सकेगा.
(बिस्मय की रिपोर्ट)