German के दो इंजीनियरों की सोच से 28 जून को बनी थी Mercedes-Benz, बिजनेसमैन की बेटी से मिला नाम, जानिए इस लग्जरी कार की कहानी 

Story of Mercedes-Benz: इंडिया में मर्सिडीज की एंट्री 1994 में हुई थी. कंपनी ने अपना पहला मैन्युफैक्चरिंग प्लांट महाराष्ट्र के पुणे शहर में बनाया. कार की बात करें तो मर्सिडीज की पहली कार मर्सिडीज-बेंज W124 को 1995 में इंडिया में लॉन्च किया गया था. 

Mercedes-Benz (photo twitter)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2023,
  • अपडेटेड 10:53 PM IST
  • कंपनी के आगे मर्सिडीज नाम साल 1902 में जुड़ा 
  • लोगो लग्जरी और क्वालिटी का माना जाता है पर्याय 

दुनिया में वैसे तो एक से बढ़कर एक कारें हैं लेकिन मर्सिडीज-बेंज की बात ही जुदा है. ऑटोमोबाइल के इतिहास में लग्जरी और परफॉर्मेंस की जब भी बात होगी तो इस कार का नाम जरूर लिया जाएगा. जर्मनी के दो इंजीनियरों गोतलिएब डैमलर और कार्ल बेंज की सोच से 28 जून 1926 को मर्सिडीज-बेंज का जन्म हुआ था. आइए जानते हैं इस लग्जरी कार की कहानी. 

दोनों एक-दूसरे से कभी मिले नहीं थे
19वीं सदी के आखिर में लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर घोड़ागाड़ी काम में लिया करते थे, इसके बाद हमारे सामने साइकिल आई. इन सब के बीच दो इंजीनियर जीवाश्म ईंधन से चलने वाली एक गाड़ी बनाने के बारे में सोच रहे थे. एक थे गोतलिएब डैमलर और दूसरे कार्ल बेंज. जर्मनी में रहते हुए दोनों एक-दूसरे से कभी मिले नहीं थे. डेमलर गैसोलीन से चलने वाला इंजन बना रहे थे तो बेंज एक चार पहिए वाले ऑटोमोबाइल इंजन को बनाने में लगे हुए थे.

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान प्रोडक्शन पर पड़ा असर
बेंज ने 1883 में अपने ही नाम से एक कंपनी खोल ली और 1886 में मोटरवैगन के नाम से अपना इंजन पेटेंट करवा लिया. वहीं, दूसरी तरफ डैमलर और उनके दोस्त विल्हेम मेबैक ने 1890 में डीएमजी नाम की कंपनी खोल ली. डैमलर की कंपनी ने ऐसा इंजन बनाया जिसको मोटरसाइकिल, नाव या किसी भी ट्रॉली से जोड़कर चला सकते हैं. कुछ दिनों बाद डैमलर की मौत हो गई और कंपनी उनके दोस्त मेबैक संभालते रहे. दोनों कंपनियां बाजार में अपनी-अपनी कारें उतार रही थीं. इसी दौरान प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया. इसका असर कंपनियों के प्रोडक्शन पर भी हुआ. बेंज और मेबाच दोनों कंपनियां घाटे में जाना शुरू हो गई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद दोनों कंपनियों ने घाटे से निकलने के लिए एक होने का फैसला किया. इसके बाद 28 जून 1926 आया. दोनों कंपनियों ने मिलकर एक कार  Mercedes-Benz W15 बनाई, जिसने इतिहास लिख दिया. कंपनी ने ऐसी 7000 गाड़ियां बेची.

ऐसे जुड़ा मर्सिडीज नाम
कंपनी के आगे मर्सिडीज नाम साल 1902 में एक बिजनेसमैन की वजह से जुड़ा. जर्मनी में एक एमिल जेलेनिक नाम के बिजनेसमैन थे. वह कार रेसिंग और कारों के शौकीन थे. 1901 में एक कार रेस के दौरान ही उन्होंने डैमलर-बेंज की 36 कारों को खरीद लिया और इसके बदले में कंपनी के सामने एक शर्त रख दी. एमिल ने कहा कि कार कंपनी अपने नाम के आगे उनकी बेटी के नाम को लगाए. एमिल की बेटी का नाम था मर्सिडीज जेलिनेक. इस तरह से कंपनी ने अपने नाम के आगे मर्सिडीज जोड़ा और बनी मर्सिडीज-बेंज.

1910 में जारी किया था लोगो
मर्सिडीज-बेंज का लोगो लग्जरी और क्वालिटी का पर्याय माना जाता है. एक गोले में घिरे तीन प्वाइंट वाले स्टार को गोटलिब डैमलर ने डिजाइन किया था. यह जमीन पर, समुद्र में और हवा में डैमलर इंजन के उपयोग का प्रतीक है. पानी और हवा इसलिए क्योंकि मर्सिडीज ने सालों पहले सबमरीन और एयरक्राफ्ट के इंजन भी बनाए हैं. मर्सिडीज-बेंज ने अपना यह लोगो 1910 में जारी किया था.

इंडिया में मर्सिडीज-बेंज की एंट्री
भारत में मर्सिडीज की एंट्री 1994 में हुई थी. कंपनी ने अपना पहला  मैन्युफैक्चरिंग प्लांट पुणे शहर में बनाया. मर्सिडीज की पहली कार मर्सिडीज-बेंज W124 को 1995 में इंडिया में लॉन्च किया गया था.1961 में आई मर्सिडीज-बेंज 190D कार जिसे अब ई क्लास के नाम से जाना जाता है. इसे खास जर्मनी से जेआरडी टाटा के लिए भारत लाया गया था. इसका रजिस्ट्रेशन 1 जनवरी 1962 को पुणे आरटीओ में कराया गया था. इस तरह भारत में लॉन्च होने से पहले ही मर्सिडीज को अपना पहला मालिक मिल गया था.

 

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