दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का पार्थिव शरीर गुरुवार शाम को पंचतत्व में विलीन हो गया. मुंबई के वर्ली श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम यात्रा में सैकड़ों गणमान्य लोग शरीक हुए. इनमें 31 साल के शांतनु नायडू (Shantanu Naidu) भी शामिल थे. वह सबसे आगे-आगे चल रहे थे. इस युवक की इस समय खूब चर्चा हो रही है. आइए जानते हैं आखिर रतन टाटा से शांतनु का क्या संबंध था?
कौन हैं शांतनु नायडू
शांतनु नायडू का जन्म साल 1993 में महाराष्ट्र के पुणे में एक तेलुगु परिवार में हुआ था. शांतनु का रिश्ता रतन टाटा के किसी भी परिवार के सदस्य से नहीं है. इसके बावजूद रतन टाटा उन्हें अपना दोस्त और बेटे जैसा मानते थे. शांतनु हमेशा साए की तरह रतन टाटा के साथ रहते थे. उनकी उम्र भले ही रतन टाटा से काफी कम थी लेकिन फिर भी वे बिजनेस में उन्हें तमाम तरह के सलाह देते थे.
वह रतन टाटा को स्टार्टअप में निवेश के लिए बिजनेस टिप्स देते थे. आज शांतनु नायडू न सिर्फ बिजनेस की दुनिया में अपनी अलग समझ के लिए जाने जाते हैं बल्कि समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी उन्हें अलग पहचान दिलाती है. शांतनु एक उद्यमी हैं और गुड फेलोज स्टार्टअप के संस्थापक भी हैं. शांतनु की लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक वह रतन टाटा की निजी निवेश कंपनी आरएनटी कार्यालय में महाप्रबंधक हैं.
शांतनु का कैसा रहा है करियर
1. शांतनु ने साल 2010 में सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 2014 में यहां से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) की पढ़ाई पूरी की.
2. शांतनु ने साल 2014 में पुणे में टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के तौर पर काम शुरू किया.
3. टाटा एलेक्सी में शांतनु ने सितंबर 2014 से जुलाई 2016 तक काम किया.
4. इसके बाद शांतनु अमेरिका चले गए. यहां न्यूयॉर्क के कॉर्नेल जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में 2016 से 2018 के बीच एमबीए की पढ़ाई की.
5. जुलाई 2018 में शांतनु को टाटा ट्रस्ट्स में चेयरमैन के कार्यालय का उप महाप्रबंधक बना दिया गया.
6. मई 2022 में वह रतन टाटा की निजी निवेश कंपनी आरएनटी कार्यालय में महाप्रबंधक बन गए.
कैसे हुई थी रतन टाटा से दोस्ती
शांतनु नायडू समाज सेवा और पशु प्रेम के लिए जाने जाते हैं. वह पशुओं से अथाह प्रेम करते हैं. रतन टाटा भी पशुओं के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते थे. शांतनु नायडू से उनकी दोस्ती की एक बड़ी वजह पशु प्रेम भी रहा था. रतन टाटा से शांतनु की मुलाकात साल 2014 में हुई थी, जब वह पुणे में टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे. पुणे में देर रात हाईवे से गुजरते समय शांतनु को सड़क पर कुत्तों के शव दिखाई देते थे, जिनकी तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों के नीचे आने से मौत हो जाती थी.
चंदा करके बनाया डॉग कॉलर
शांतनु आए दिन कुत्तों की मौत देख काफी परेशान रहने लगे. वह सोचने लगे आखिर कैसे इन कुत्तों की जान बचाई जा सकती है. शांतनु ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने उन लोगों से मुलाकत की जो आवारा कुत्तों की वजह से सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे. इन हादसों में कई कुत्तों की जानें भी चली गईं थी. घायल लोगों ने बताया कि रात में कम रोशनी के चलते और आचानक सड़क पर कुत्तों के आने की वजह से कुछ दिखाई नहीं पड़ने के कारण अधिकतर हादसा हुआ है.
शांतनु ने बताया कि चूंकि मैं एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर था, इसलिए मेरे मन में कुत्तों के लिए कॉलर बनाने का ख्याल आया. जिससे कुत्ते रात में स्ट्रीट लाइट के बिना भी दिखाई दे सकें. शांतनु के पास उस समय महज 23 साल के थे, उनके पास डॉग कॉलर बनाने के लिए उतने पैसे नहीं थे. उन्होंने चंदा करके पैसै जुटाया और डॉग कॉलर बनाया. शांतनु नायडू ने पशुओं की सेवा और खासतौर पर कुत्तों की सेवा के लिए मोटोपॉज नाम की एक संस्था बना रखी थी. शांतनु और उनकी संस्था ने सड़क पर घूमने वाले जानवरों के लिए बनाए गए विशेष तौर पर डेनिम कॉलर को पहनाना शुरू कर दिया. इन कॉलर में रिफ्लेक्टर लगा होता था, जिससे की रात के समय गाड़ी की लाइट उनपर पड़ते ही वाहन चालक को पता चल जाता था कि सामने कोई जानवर है. इस कॉलर की वजह से कई जानवर सड़क हादसे का शिकार होने से भी बच रहे हैं. नायडू के नेतृत्व में मोटोपॉज ने 17 शहरों में विस्तार किया और 8 महीनों में 250 कर्मचारियों को काम पर रखा है.
जब रतन टाटा को शांतनु के काम की हुई जानकारी
शांतनु का यह काम टाटा समूह और रतन टाटा तक पहुंच गया जिनका खुद कुत्तों से काफी लगाव था. एक युवा के इस नेक काम के बारे में टाटा समूह की कंपनियों के न्यूजलेटर में लिखा गया और यह रतन टाटा के ध्यान में आया. साल 2014 में एक दिन शांतनु को रतन टाटा से मुंबई में उनके कार्यालय में मिलने का निमंत्रण मिला. टाटा ने शांतनु के काम के लिए बहुत प्यार जताया क्योंकि उन्हें भी स्ट्रीट डॉग्स से बहुत प्यार था.
इस जुड़ाव के बाद शांतनु रतन टाटा के संपर्क में रहे और अक्सर उनसे सलाह और मार्गदर्शन लेते रहे. इस तरह से दोनों में दोस्ती बढ़ती गई. शांतनु ने इंटरव्यू में बताया था कि एक दिन मैंने रतन टाटा को कॉर्नेल में एमबीए करने की अपनी योजना के बारे में बताया. जैसे ही मुझे कॉर्नेल में दाखिला मिला मैंने टाटा को बताया कि मैं स्नातक होने के बाद टाटा ट्रस्ट में योगदान करने का अवसर तलाशने के लिए भारत लौटूंगा. जब शांतनु अपनी डिग्री लेकर वापस लौटे तो रतन टाटा ने उन्हें अपने कार्यालय में शामिल होने के लिए कहा. शांतनु जून 2017 से ही टाटा ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं. इसका जिक्र उन्होंने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल में भी किया है. शांतनु नायडू टाटा समूह में काम करने वाले अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी हैं.
इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन पैदा कर दिया है...
गुरुवार को जब रतन टाटा के पार्थिव शरीर को ब्रीच कैंडी अस्पताल से मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स हॉल तक ले जाने के समय उनकी इस यात्रा में सबसे आगे शांतनु नायडू दिखे. नम आंखों के साथ शांतनु नायडू बाइक से रतन टाटा की अंतिम यात्रा में आगे-आगे चल रहे थे. उन्होंने सुबह एक इमोशनल पोस्ट भी शेयर किया था. शांतनु नायडू ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में अपनी मित्रता के बारे में लिखते हुए कहा कि इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन पैदा कर दिया है, मैं अपनी बाकी ज़िंदगी उसे भरने की कोशिश में बिता दूंगा. प्यार के लिए दुख की कीमत चुकानी पड़ती है. अलविदा, मेरे प्यारे लाइटहाउस. उन्होंने एक पुरानी तस्वीर भी शेयर की जिसमें वे दोनों साथ में दिखाई दे रहे हैं.