अलविदा रतन टाटा: कैसे होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार? पारसियों में एकदम अलग है अंतिम संस्कार की विधि

रतन टाटा का निधन हो गया है. तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है. करीब शाम 4 बजे रतन टाटा का पार्थिव शरीर वर्ली के पारसी श्मशान भूमि लाया जाएगा, जहां उनका दाह संस्कार होगा.

Ratan Tata funeral last rites
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST
  • कैसे होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार
  • पारसियों में क्या है अंतिम संस्कार की विधि

रतन टाटा (Ratan Tata) का निधन हो गया है. वह उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे. तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में अंतिम दर्शन (Ratan Tata's last rites) के लिए रखा गया है. करीब शाम 4 बजे रतन टाटा का पार्थिव शरीर वर्ली के पारसी श्मशान भूमि लाया जाएगा, जहां उनका दाह संस्कार होगा.

टाटा पारसी समुदाय से थे लेकिन उनका अंतिम सस्कार पारंपरिक दखमा की बजाए उनका दाह संस्कार किया जाएगा.

कैसे होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार
अंतिम दर्शन के बाद वर्ली के पारसी श्मशान भूमि में रतन टाटा का पार्थिव शरीर लाया जाएगा. उनके पार्थिव शरीर को प्रेयर हॉल में रखा जाएगा. करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी. यहां पारसी रीति से ‘गेह-सारनू’ पढ़ा जाएगा. रतन टाटा के पार्थिव शरीर पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर ‘अहनावेति’ यानी शांति प्रार्थना का पहला पूरा अध्याय पढ़ा जाएगा. प्रेयर प्रक्रिया पूरा होने के बाद पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी.

Ratan Tata last rites

हालांकि पारसियों में अंतिम संस्कार की विधि बाकी धर्मों से काफी अलग है.

पारसियों में क्या है अंतिम संस्कार की विधि
पारसी धर्म में शव को न तो जलाया जाता है न ही दफनाया जाता है. दोखमे नशीन परंपरा के तहत पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार किया जाता है. इस परंपरा में शव को नहला-धुलाकर गिद्धों या अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है. इसके पीछे भी एक कारण है. दरअसल पारसी लोग जल, पृथ्वी और अग्नि को पवित्र मानते है और इस वजह से ये लोग पार्थिव शरीर को जल, पृथ्वी और अग्नि के सुपुर्द नहीं करते हैं. 

पार्थिव शरीर को हाथ नहीं लगाते पारसी
पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार विधि के लिए मुंबई में टावर ऑफ साइलेंस बनाया गया है. मृत शरीर को आसमान को सौंपने के लिए उसे इसी गोलाकार जगह की चोटी पर रख दिया जाता है. इसके बाद पक्षी शव खा जाते हैं. पारसी समुदाय में लोग शव को हाथ भी नहीं लगाते. इस रिवाज को पारसी समाज दुनिया के अन्य समुदाय के मुकाबले इको फ्रेंडली मानता है.

सिर्फ एक ही ईश्वर पर भरोसा करते हैं पारसी
दुनियाभर में पारसी समुदाय की आबादी 1 लाख के करीब है. भारत में पारसियों की संख्या पहले ही बहुत कम है. पारसी धर्म की स्थापना पैगंबर जराथुस्त्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी. भारत में ज्यादातर पारसी समुदाय के लोग मुंबई में रहते हैं. पारसी सिर्फ एक ही ईश्वर पर भरोसा करते हैं. पारसी समुदाय में अगर कोई लड़की दूसरे धर्म में शादी कर लेती है तो वो पारसी नहीं रह जाती.

 

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