इजराइल से सीखी Hydroponics Farming, कम जगह में ले रहे हैं ज्यादा उत्पादन, दुबई तक पहुंचा काम

मध्य प्रदेश में एक किसान लोगों को नए तरीके से खेती करना और मुनाफा कमाना सिखा रहा है. यह कहानी है रतलाम के अरविंद धाकड़ की, जो पिछले कई सालों से Hydroponics Farming कर रहे हैं.

Hydroponics Farmer Arvind Dhakad
मनीष चौरसिया
  • रतलाम ,
  • 18 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 8:27 AM IST
  • 2015 में अरविंद धाकड़ ने हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया था
  • हाइड्रोपोनिक खेती का मतलब है बिना मिट्टी के खेती करना

मध्य प्रदेश के जिले रतलाम से लगभग 45 किलोमीटर दूर बसे गांव रियावन के रहने वाले अरविंद धाकड़ पिछले कुछ सालों से अपने गांव और आसपास के इलाकों में बेहद चर्चा में हैं. उनकी चर्चा की वजह बहुत ही दिलचस्प है जिसे बच्चों से लेकर बड़ों तक, खासकर कि किसान परिवारों के युवाओं को जाननी चाहिए. 

दरअसल, अरविंद ने अपने गांव या यूं कहिए कि मध्य प्रदेश में कुछ साल पहले एक नई शुरुआत की. साल 2015 में अरविंद धाकड़ ने हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया. हाइड्रोपोनिक खेती का मतलब है बिना मिट्टी के खेती करना. जिससे आज उन्हें अच्छा-खासा मुनाफा हो रहा है. 

इजरायल से सीखी तकनीक
अरविंद बताते हैं कि वह और उनका परिवार शुरू से ही खेती करते आए हैं. वह बताते हैं कि अपनी अंगूर की ट्रेडिशनल खेती के चलते वह कुछ दिन के लिए इजराइल गए थे. लेकिन वहां उन्होंने पहली बार हाइड्रोपोनिक तकनीक से स्ट्रॉबेरी की खेती होते हुए देखी. वहां उन्होंने इस तकनीक के बारे में जाना. 

अरविंद कहते हैं कि जब लौटकर अपने घर आए तो उन्होंने इस तकनीक के बारे में और जानने की कोशिश की. लेकिन उनको अपने आसपास इस तकनीक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. जब कुछ भी नहीं मिला तो उन्होंने खुद से ही, अपनी एक छोटी-सी जगह में प्रयोग के तौर पर हाइड्रोपोनिक तकनीक से स्ट्रॉबेरी लगाई. अरविंद का यह एक्सपेरिमेंट सफल रहा और यहीं से बदलाव की शुरुआत हुई. 

अरविंद का हाइड्रोपॉनिक फार्म

लोगों को नहीं था भरोसा 
अरविंद बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से कम जगह में ज्यादा फॉर्मिंग कर सकते हैं. इस तकनीक में प्लास्टिक के पाइप्स का इस्तेमाल किया जाता है. प्लास्टिक के पाइप्स की मल्टी लेयर बनाई जाती है. अरविंद बताते हैं कि इसमें मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. मिट्टी से किसी भी फसल को जो तत्व मिलते हैं उन्हें पानी में मिलाकर सीधे पौधों तक पहुंचाया जाता है. 

शुरुआत थोड़ी मुश्किल थी क्योंकि तकनीक नई थी और लोगों को इसके बारे में नहीं पता था. अक्सर लोग अरविंद से आकर कहते थए भी कि इससे कुछ नहीं होगा. लेकिन अरविंद की सफलता ने सबकी सोच बदल दी. अब लोग उनसे आकर कहने लगे हैं कि उन्हें भी यह तकनीक सिखानी है. 

छोटी जगह और कम लागत
अरविंद बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के लिए ट्रेडिशनल फार्मिंग की तरह बहुत ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं होती. अगर कोई चाहे तो सिर्फ 500 स्क्वायर फीट से भी शुरुआत कर सकते हैं. इतना ही नहीं अरविंद बताते हैं कि इस सेटअप को तैयार करने में 250 रुपए/स्क्वायर फीट का खर्च आता है. बड़ी बात यह है कि इसके लिए लोगों को न फावड़ा चलाना पड़ेगा और न ही ट्रैक्टर दौड़ाने की जरूरत होगी. 

मिर्च, टमाटर जैसी सब्जियां उगा रहे हैं अरविंद

अरविंद बताते हैं हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के बाद उनकी जिंदगी में बहुत सारे सकारात्मक बदलाव आए हैं. उनके काम को देखकर दूर-दूर से लोग उनसे ट्रेनिंग लेने आते हैं. अरविंद कहते हैं उन्होंने देश के लगभग हर शहर का सफर किया है. इतना ही नहीं उनके काम ने उन्हे नेपाल और दुबई तक पहुंचाया है. 

मौजूदा वक्त में किसान का बेटा किसानी नहीं करना चाहता और दूसरे बड़े शहरों में जाकर रोजगार की तलाश करता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि किसान को अपने काम में मुनाफा नहीं मिलता है. हाइड्रोपोनिक खेती किसान के मुनाफे को 5 से 7 गुना तक बढ़ाने की ताकत रखती है. यह तकनीक गांव के युवाओं को गांव में ही रहने की प्रेरणा दे सकती है और अरविंद इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाना चाहते हैं. 

 

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