रूस और यूक्रेन के युद्ध का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है. दोनों देशों के बीच के तनाव के कारण अन्य देशों में महंगाई बढ़ रही है. रूस से कच्चे तेल का निर्यात बंद है और ऐसे में, सभी देशों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ना तय हैं.
इसके अलावा अन्य जरुरी उत्पाद जैसे गेहूं की आपूर्ति पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है. बताया जा रहा है कि रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद काला सागर के रास्ते आने वाला गेहूं सप्लाई रूट काफी प्रभावित हुआ है. जिस कारण विदेशों में बहुत से खरीददार काला सागर के रास्ते आने वाले गेहूं का विकल्प खोज रहे हैं.
रूस और यूक्रेन में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है और दुनिया के कुल गेहूं निर्यात का 30 फीसदी इन्हीं दोनों देशों से आता है. अब स्थिति बदल चुकी है और दुनिया की निगाहें गेहूं के निर्यात के लिए भारत पर टिकी हैं क्योंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है.
विदेशी खरीददार कर रहे भारतीय व्यापारियों से सम्पर्क:
दूसरे देशों के खरीददार अब भारत में व्यापारियों को गेहूं के लिए सम्पर्क कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि भारत ने पिछले कुछ समय में पांच लाख टन गेहूं के निर्यात की डील की हैं. रॉयटर्स के मुताबिक, गेहूं की कीमतें बढ़ने से भारतीय व्यापारियों को बहुत फायदा हो रहा है.
बताया जा रहा है कि भारत में पिछले कुछ सालों में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है. जिस कारण देश में गेहूं काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद है. इसलिए भारतीय व्यापारी भी गेहूं निर्यात की संभावनाओं को लेकर खुश हैं. हालांकि, भारत में गेहूं का न्यूनतम दाम काफी अच्छा मिलता है इसलिए व्यापारियों को गेहूं निर्यात में फायदा तभी होता है जब ग्लोबल लेवल पर कीमतें ज्यादा हों.
निर्यात होगा 70 लाख टन गेहूं:
फिलहाल, दूसरे देशों के डीलरों को भारत में ही गेहूं का एक स्थिर सप्लायर नजर आ रहा है. इसलिए भारत इस साल 70 लाख टन गेहूं का निर्यात करेगा. कुछ ही दिनों में पांच लाख टन गेहूं के निर्यात का सौदा हुआ है. यूनिकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड में काम करने वाले एक ट्रेडर का कहना है कि बहुत से सप्लायर ने 340 से 350 डॉलर प्रति टन के भाव पर सौदा किया जबकि इससे पहले 305-310 डॉलर प्रति टन तक का भाव मिला था.
सरकार भी गेहूं के निर्यात का समर्थन कर रही है. क्योंकि इससे गेहूं किसानों और व्यापारियों को बड़े स्तर पर फायदा हो सकता है. साथ ही, भारत के लिए गेहूं के क्षेत्र में ग्लोबल लेवल पर बड़ी संभावनाएं बढ़ सकती हैं.
और बढ़ सकती हैं गेहूं की कीमतें:
गेहूं सप्लाई प्रभावित होने के कारण सोमवार को यूरोपीय गेहूं की कीमत 400 यूरो प्रति टन यानी लगभग 33 हजार रुपये पर पहुंच गई थी. यह पिछले 14 साल में सबसे ज्यादा है. वहीं, भारत में गेहूं उत्पादकों को लगभग 19,700 रुपये प्रति टन का न्यूनतम मूल्य मिलता है.
इसके अलावा खेतों में इस्तेमाल होने वाला खाद और उर्वरक भी महंगा हो रहा है. क्योंकि रूस फ़र्टिलाइज़र का निर्यातक देश है और युद्ध के कारण लगे प्रतिबंधों के चलते रूस दूसरे देशों को खाद निर्यात नहीं कर सकता है. सप्लाई पूरी न मिलने से घरेलू बाजारों में खाद के दाम बढ़ेंगे और इस कारण फसलों की कीमत भी बढ़ेंगी.