17 साल का एक लड़का बोर्डिंग स्कूल से घर लौटता है और गैराज में खड़ी एक लाल रंग की चमचमाती रॉयल इनफील्ड देखता है. वो लड़का उस बाइक का दीवाना हो जाता है. उस बाइक की चमक उस लड़के के आंखों में हमेशा के लिए बस जाती है. ये लड़का कोई और नहीं था, बल्कि रॉयल इनफील्ड की डूबती नैय्या को पार लगाने वाला सिद्धार्थ लाल थे. उनको कहां पता था कि जिस बुलेट के वो दीवाने हैं, उसको फिर से सड़क पर दौड़ाने के लिए उनको दिन-रात एक करना पड़ेगा.
27 साल को लड़के को मिली जिम्मेदारी-
साल 1973 में पैदा हुए 27 साल के सिद्धार्थ लाल को साल 2000 में रॉयल इनफील्ड का सीईओ बनाया गया. लेकिन 4 साल बाद ही उनको आयशर मोटर्स लिमिटेड का चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बना दिया गया. साल 2006 में सिद्धार्थ को आयशर मोटर्स लिमिटेड का सीईओ और एमडी बनाया गया. लेकिन इस दौरान सिद्धार्थ को कई ऐसे फैसले ने पड़े, जिसकी आलोचना भी हुई. उन्होंने ग्रुप के 15 कारोबार में से 13 को बंद कर दिया और पूरा फोकस रॉयल इनफील्ड और ट्रक पर लगाया.
सिद्धार्थ ने फिर से बुलेट को सड़क का राजा बनाया-
साल 2000 में कंपनी के चेयरमैन विक्रम लाल और सीनियर एग्जीक्यूटिव्स ने रॉयल इनफील्ड को बंद करने की सलाह दी थी. लेकिन इसी वक्त सिद्धार्थ लाल आगे आए और उन्होंने रॉयल इनफील्ड को फिर से खड़ा करने के लिए समय मांगा. इसके लिए सिद्धार्थ ने दिन-रात एक कर दिया. उन्होंने हजारों किलोमीटर बाइक चलाई और बाइक चलाने वालों की पसंद के बारे में जाना. उनकी प्राथमिकताओं को समझने की कोशिश करते थे. उन्होंने युवा वर्ग के मन-मिजाज को टटोला, रॉयल इनफील्ड के मॉडलों में बदलाव किए, कमियों को दूर किया. सिद्धार्थ की मेहनत रंग लगाई और 2 साल में एक बार फिर बुलेट सड़क का राजा बन गया. बुलेट सड़क पर दौड़ने लगी, निवेशकों का भरोसा कायम किया. इसके बाद सिद्धार्थ और बुलेट ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
साल 2014 में आयशर मोटर्स लिमिटेड ग्रुप में एनफील्ड की हिस्सेदारी बढ़कर 80 फीसदी हो गई. सिद्धार्थ ने रॉयल इनफील्ड की हंटर 350, रॉयल इनफील्ड हिमालयन 450, क्लासिक 350, meteor 350, 350 सीसी बुलेट इलेक्ट्रा और थंडरबर्ड मार्केट में लॉन्च किया. रॉयल इनफील्ड की इन बाइक्स ने मार्केट में धूम मचा दी. लोगों ने खूब पसंद किया और एक बार फिर बुलेट मार्केट का राजा बन गया.
भारत में रॉयल इनफील्ड का सफर-
भारत में रॉयल इनफील्ड की शुरुआत साल 1949 में हुई थी. साल 1954 में भारत सरकार ने आर्मी के लिए इसका ऑर्डर दिया था. इससे पहले भी दुनिया के कई देशों की सेनाओं ने इसका इस्तेमाल किया था. भारत सरकार ने 800 बाइक्स का ऑर्डर दिया था. जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान के बॉर्डर पर आर्मी वाले करने वाले थे. इसके साथ ही ब्रिटेन की एनफील्ड साइकिल कंपनी को बुलेट 350 का ऑर्डर मिल गया था. इसके साथ ही भारत में बुलेट का सफर शुरू हुआ था. जब ब्रिटिश कंपनी रेडिच को ऑडर्र मिला तो उसने साल 1955 में इंडिया की मद्रास मोटर्स के साथ मिलकर 350 सीसी बुलेट की असेंबलिंग के लिए एनफील्ड इंडिया नाम से एक कंपनी बनाई. ब्रिटेन की कंपनी ने साल 1971 तक इसका मालिकाना हक अपने पास रखा. लेकिन जब ब्रिटिश कंपनी बंद हो गई तो मद्रास मोटर्स ने इसके अधिकार खरीद लिए. लेकिन ये कंपनी 90 के दशक तक उबर नहीं पाई. साल 1994 में आयरश ग्रुप ने इसे खरीद लिया. लेकिन आयशर को भी घाटा लगने लगा तो कंपनी ने इसे बंद करने या बेचने का फैसला लिया था. लेकिन सिद्धार्थ लाल ने इसे नई दिशा दी.
अमेरिका और रूस की सेना ने किया था इस्तेमाल-
रॉयल इनफील्ड को साल 1890 में ब्रिटिश क्राउन ने अपने उत्पादों के लिए रॉयल एनफील्ड ब्रांडनेम के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी. साल 1901 में पहली रॉयल इनफील्ड मोटरसाइकिल का उत्पादन किया गया. इसके बाद कंपनी एक के बाद एक नए कीर्तिमान स्थापित करने लगी. साल 1914 में कंपनी ने 2 स्ट्रोक मोटरसाइकिल का उत्पादन शुरू किया. इसके बाद वर्ल्ड वॉर वन शुरू हो गया. रॉयल इनफील्ड ने 770 सीसी 6 एचपी वी-ट्विन का उत्पादन शुरू किया. विश्व युद्ध के दौरान कंपनी ने ब्रिटिश, बेल्जियम, अमेरिका और रसियन आर्मी को मोटरसाइकिलों को सप्लाई किया. इसके बाद रॉयल इनफील्ड की डिमांड पूरी दुनिया में बढ़ने लगी. ये बाइक शान की सवारी मानी जाने लगी.
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