अगर कुछ करने गुजरने का जज्बा हो तो सफलता जरूर मिलती है. राजस्थान के राजसमंद जिले के दो लोगों ने मिलकर असंभव काम को संभव बना दिया. किसान नारायण सिंह और डॉक्टर महेश दवे ने मिलकर मेवाड़ की मरुधरा में स्ट्रॉबेरी की खेती का सपना सच कर दिखाया. दोनों ने 65 हजार वर्ग फीट इलाके में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. 2 महीने बाद खेत स्ट्रॉबेरी से भर गए. अब इनके पास स्ट्रॉबेरी खरीदने के लिए लोग आ रहे हैं.
मरुधरा में कैसे की स्ट्रॉबेरी की खेती?
नारायण सिंह का प्रोफेशन कुछ और था, लेकिन खेती में उनकी रुचि कुछ नया करने की तरफ ले गई. नारायण सिंह की मुलाकात डॉ. महेश दवे से हुई, जो प्रोफेसर हैं. लेकिन उनकी रुचि भी खेती में है. दोनों ने मिलकर स्ट्रॉबेरी उगाने का फैसला किया. आपको बता दें कि स्ट्रॉबेरी की खेती हिमाचल प्रदेश जैसी जगहों पर होती है. लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी. दोनों ने स्ट्रॉबेरी की खेती पर रिसर्च किया और इसके बारे में जानकारी हासिल की. रिसर्च के बाद इस सोच को जमीन पर उतारने का काम किया.
हो सकती है 16 लाख रुपए तक कमाई-
नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे ने मिलकर राजसमंद के कुंडा गांव में 65 हजार वर्ग फीट इलाके में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. दोनों ने अक्टूबर महीने में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए. इसके बाद पौधों की देखभाल की, जरूरी खाद दिए, परागण के लिए मधुमक्खियों का सहारा लिया. 2 महीने बाद दिसंबर में खेत स्ट्रॉबेरी के फल से भर गए. फसल की गुणवत्ता बेहतरीन थी और उत्पादन भी अच्छा था. इनके स्ट्रॉबेरी को खरीदने के लिए ग्राहक भी आने लगे.
इतने इलाके में स्ट्रॉबेरी की खेती पर 8 लाख रुपए खर्च हुए हैं. जबकि अब तक 2 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है. अनुमान लगाया जा रहा है कि फसल चक्र पूरा होने पर 16 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है.
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए क्या है जरूरी-
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 20 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए. बलुई दोमट मिट्टी और जैविक खाद का इस्तेमाल होता है. मिट्टी का पीएच 5-6.5 के बीच होना चाहिए. खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद डालनी चाहिए. सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ ही इसकी रेगुलर देखभाल भी जरूरी है. फसल तैयार होने में 60 से 80 दिन का समय लगता है. एक एकड़ में 6 से 10 टन स्ट्रॉबेरी का उत्पादन होता है.
नारायण सिंह और डॉ. दवे ने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सुबह से ही जुट जाते हैं. इसके लिए 4 लोगों की टीम भी बनाई है, जो स्ट्रॉबेरी के पौधों की देखभाल करते हैं. स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाजुक होता है. इसलिए इसका खास ध्यान रखना पड़ता है.
कौन हैं नारायण सिंह और डॉ. दवे-
नारायण सिंह मूल रूप से उदयपुर के मावली तहसील के आसलियों की मादड़ी गांव के रहने वाले हैं. नारायण बैंकिंग क्षेत्र में नौकरी करते थे. लेकिन खेती में कुछ नया करने के लिए वो हमेशा उत्सुक रहते हैं. जबकि डॉ. महेश दवे उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं. उनकी भी रुचि खेती में है. डॉ. दवे की कुछ जमीन कुंडा गांव में है. जब डॉ. दवे की मुलाकात नारायण सिंह से हुई तो दोनों ने मिलकर गांव की जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती का प्लान बनाया.
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