Success Story of Bata: हर भारतीय घर की पहचान है यह 125 साल से भी ज्यादा पुरानी यह कंपनी, लेकिन देशी नहीं विदेशी है यह ब्रांड

Bata Company: आज भी ज्यादातर भारतीय घरों में, खासकर कि मिडिल क्लास परिवारों में अच्छे फुटवियर के लिए बाटा कंपनी पर भरोसा किया जाता है. जानिए भारत की इस Iconic Brand कहानी.

Success Story of Bata
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 22 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:27 PM IST
  • 1894 में शुरू हुई थी कंपनी
  • पहले विश्व युद्ध में कंपनी को मिला था ऑर्डर

आपके घर में ऐसा कोई नहीं होगा जिसने कभी बाटा के जूते नहीं पहने हों. 129 साल के अपने सफर में बाटा कंपनी कई उतार-चढ़ाव से गुजरी है लेकिन आज भी भारतीयों के लिए उनकी  पहचान बनी हुई है. बाटा को जो चीज और अधिक सुलभ बनाती है वह है किफायती रेंज जो वे ग्राहकों को डिलीवर करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यह एक भारतीय ब्रांड नहीं है, फिर भी, भारतीयों को बाटा ब्रांड से 'देसी' वाली फीलिंग आती है. 

कई बार यह कंपनी बंद होने की कगार पर आई है लेकिन फिर उठ खड़ी हुई. आज हम आपको बता रहे हैं हिंदुस्तान की सबसे पुरानी कंपनियों में से एक बाटा के बारे में जो विदेशी ब्रांड होते हुए भी देशी लोगों के दिलों पर राज कर रही है. आपको बता दें कि बाटा एक स्विस ब्रांज है और स्विट्जरलैंड के लॉज़ेन में उनका मुख्यालय है. 

1894 में शुरू हुई थी कंपनी
बाटा एक बहुराष्ट्रीय फुटवियर, परिधान और फैशन एक्सेसरीज़ निर्माता और खुदरा विक्रेता है. इसकी स्थापना 24 अगस्त 1894 को ऑस्ट्रिया-हंगरी (अब चेक गणराज्य के रूप में जाना जाता है) में एंटोनिन बाटा, टॉमस बाटा और अन्ना बाटोवा नाम के तीन परिवार के सदस्यों द्वारा की गई थी. कंपनी मुख्य रूप से फुटवियर और एक्सेसरीज का कारोबार करती है. बाटा दुनिया की अग्रणी फुटवियर कंपनी है जहां सालभर में 150 मिलियन जोड़ी जूते बिकते हैं.

उनकी रिटेल उपस्थिति की बात करें तो वे 70 से अधिक देशों में फैले हुए हैं और लगभग 5300 दुकानें सुचारू रूप से चल रही हैं. बाटा में 32,000 से अधिक लोग कार्यरत हैं और 21 उत्पादन सुविधाएं हैं. उनकी कंपनी मूल रूप से तीन इकाइयों में विभाजित है- बाटा, बाटा इंडस्ट्रियल्स (सेफ्टी जूते), और एडब्ल्यू लैब (स्पोर्ट्स स्टाइल). फाइनेंशियल ईयर 2021 में, कंपनी ने कुल 17 बिलियन डॉलर का राजस्व दर्ज किया. बाटा के पोर्टफोलियो में 20 से ज्यादा ब्रांड हैं, जिनमें बाटा, नॉर्थ स्टार, बाटा 3डी, कैट, संदक, क्लेयर, मैरी आदि शामिल हैं. 

कंपनी का लक्ष्य ग्राहकों को किफायती मूल्य रेंज प्रदान करता है। आपको जूता लगभग हर मूल्य श्रेणी में मिल सकता है-निम्न, मध्य और उच्च. कंपनी एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप आदि देशों में फैली हुई है. बाटा ने अकेले भारत में 35% बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली है.

बाटा की सफलता की कहानी
टॉमस बाटा एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे. हालांकिसबसे बुरा तब बुआ जब उनके पिता की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई और वह केवल 17 वर्ष के थे. आजीविका के लिए वे जूते बनाते थे  और उनकी सभी पीढ़ियां इसी बिजनेस में हैं. हालांकि, एक समय ऐसा आया कि टॉमस ने अपने जूतों के कारोबार का विस्तार करने के बारे में सोचा. जेब में पैसे न होने के कारण उन्होंने अपनी मां से 350 डॉलर ले लिए. इस पैसे से, टॉमस ने अपने भाई और बहन के साथ ज़्लिन, चेकोस्लोवाकिया में टी और ए बाटा कंपनी शुरू की।

बाटा को कुछ ही महीनों में सफलता मिली और इस प्रकार, कार्यालय में 10 और घर से काम करने वाले 40 लोगों को रोजगार दिया गया. हालांकि उन्होंने अभी तक कोई मील का पत्थर हासिल नहीं किया था लेकिन जब उनके भाई ने आर्मी जॉइन की और 1895 में उनकी बहन की शादी हो गई, तो टॉमस का तनाव बढ़ गया. 19 वर्षीय टॉमस इस व्यवसाय के साथ अकेले रह गए. 

हालांकि राह आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. आर्थिक तंगी के कारण उनकी कंपनी ने चमड़े के बजाय कैनवास के जूते बनाने शुरू कर दिए. उन्होंने अपनी सस्ती कीमतों के कारण बहुत लोकप्रियता और सफलता (1900) हासिल की. साल 1897 में उन्होंने एक जूता बनाया, 'Batovka' और यह अपने साधारण स्टाइल, हल्केपन, और कीमत के कारण फेमस हो गया.  लेकिन उनका कंपटीशन बड़ी विदेशी ब्रांड्स से था और इससे पार पाने के लिए उन्होंने 1904 में अपने कुछ कर्मचारियों के साथ यूएसए जाकर मशीन-ऑपरेटेड शूफैक्ट्री में काम किया.  

उचित प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, उन्होंने अपनी कंपनी में मशीन से जूते बनाना शुरू किया और यूरोप में पहले मशीन से जूते बनाने वाले बन गए. बाटा का शुरू से मोटो रहा, 'ग्राहक हमारा मास्टर है.' साल 1905 में उनके पास 250 कर्मचारी थे और वे 2200 जोड़ी जूते हर रोज बना रहे थे. 

पहले विश्व युद्ध में कंपनी को मिला था ऑर्डर
कंपनी को एक बड़ी सफलता तब मिली जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया. सभी को नुकसान हुआ लेकिन वे मुनाफा कमा रहे थे. क्योंकि बाटा के जूते न केवल सस्ते थे बल्कि आरामदायक भी थे. इसी वजह से उन्हें ऑस्ट्रिया-हंगरी युद्ध में काम आने वाले जूते बनाने का ठेका मिला था. भारी सफलता को देखते हुए, टॉमस ने व्यवसाय में और अधिक पैसा लगाने और इसे थोड़ा और विस्तारित करने के बारे में सोचा. 

लेकिन विश्व युद्ध के नतीजे इतने गंभीर थे कि कंपनी को एक और नुकसान हुआ. युद्ध के कारण, विश्व अर्थव्यवस्था गिर गई और भारी बेरोजगारी का सामना करना पड़ा. इन हालातों ने बाटा को भी प्रभावित किया है. स्थिति से उबरने के लिए बाटा ने अपने उत्पादों की कीमतों में 50 फीसदी की कटौती की। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने कर्मचारियों के वेतन में 40% तक की कटौती कर दी। उनके इस फैसले में कर्मचारियों ने उनका तहे दिल से साथ दिया और बाटा एक बार फिर अपने सामान की मांग बढ़ाने में सफल रहा! 

भारत में बाटा बना मिडिल-क्लास की पहचान
भारत में बाटा की कहानी काफी दिलचस्प है. 1920 के दशक में, टॉमस बाटा ब्रिटिश भारत के दौरे पर थे जब उन्होंने बहुत सारे भारतीयों को नंगे पैर चलते देखा. उन्होंने इसे अपने व्यवसाय के लिए सही अवसर के रूप में देखा और 1931 में बाटा शू कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. इससे पहले, उन्होंने कैनवास और रबर के जूते बनाने वाली एक छोटी इकाई के साथ शुरुआत की थी. साल 1932 में टॉमस की मौत के बाद बाटा को उनके भाई जैन एंटोनिन बाटा ने संभाला. 

बाटा कंपनी को भारत में अच्छा रेस्पॉन्स मिला और धीरे-धीरे उन्हें एक बड़ी इकाई की आवश्यकता महसूस होने लगी और उन्होंने कोलकाता (1937) के पास भटनागर में इसे खोला. बाटा इंडिया के भारत में लगभग 1500 स्टोर हैं और यह अपनी मूल कंपनी का दूसरा सबसे अधिक फायदा कमाने वाला निर्माता है. 

1930 के दशक से पहले ब्रिटिश सेना के लिए जूते जापान से आयात किए जाते थे लेकिन बाटा की एंट्री के साथ, भारत में जूता व्यवसाय शुरू हो गया. बाटा ने 4000 लोगों को रोजगार दिया और 86 रिटेल आउटलेट खोले. 1942 में, उन्होंने हाथ से बने जूतों को फिर से बनाने के बारे में सोचा और बिहार के बाटागंज में चमड़े के जूतों का कारखाना खोला. कंपनी ने 1973 में सार्वजनिक होने का फैसला किया और इसका नाम बदलकर बाटा इंडिया लिमिटेड कर दिया. बाद के चरण में, बाटा ने एडिडास और जर्मनी के साथ हाथ मिलाकर भारत में स्पोर्ट्स फुटवियर और स्पोर्ट्सवियर का निर्माण और मार्केटिंग की. धीरे-धीरे, वे अपनी मौजूदा इकाइयों को अपडेट करने और समय के अनुसार रिटेल स्टोर विकसित करने लगे. 

2000 में, जब राष्ट्र ने इंटरनेट की ओर झुकाव करना शुरू किया, तब बाटा ने ब्रांड को फिर से बदलने की तत्काल आवश्यकता महसूस की. अपने ब्रांड को 'टिकाऊ और आरामदायक' के रूप में स्थापित करने से लेकर 'ट्रेंडी और स्टाइलिस्ट' के रूप में लेबल करने तक, बाटा ने एक लंबा सफर तय किया है! साल2006 में, बाटा ने 'रिटेलर ऑफ द ईयर' पुरस्कार और 2006 में आयोजित भारतीय खुदरा शिखर सम्मेलन के दौरान खुदरा उत्कृष्टता दिखाने के लिए टेलर पुरस्कार जीता. फिर, इसे 2006-07 में फुटवियर में वर्ष के सबसे प्रशंसित ब्रांड का पुरस्कार दिया गया. 

इतना ही नहीं, बल्कि बाटा को भारत का सबसे पसंदीदा खुदरा विक्रेता होने के लिए 'उपभोक्ता पुरस्कार 2010' भी मिला. इसके अलावा, इसे 2014 में 'द इंटरनेशनल ग्लोबल मीट' में उत्कृष्टता का प्रमाण पत्र और एक स्वर्ण पदक दिया गया. आज भी बाटा भारत में भरोसे का प्रतीक बनी हुई है. यही कारण है कि आज भी बहुत कम लोगों को पता है कि यह एक विदेशी कंपनी है. 

 

Read more!

RECOMMENDED