के शंकर और उनके बेटे सेंथिल शंकर, तमिलनाडु स्थित कंपनी, श्री रेंगा पॉलिमर और इकोलाइन (Shree Renga Polymers and Ecoline)को एक नई दिशा देने में लगे हुए हैं. इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने फेंकी गई पीईटी बोतलों (polyethylene terephthalate) को फिर से तैयार करके उन्हें स्टाइलिश, इको फ्रेंडली गार्मेंट्स में बदलकर फैशन की अवधारणा में क्रांति लाने के मिशन पर है. इकोलाइन सस्टेनेबल फैशन मूवमेंट में सबसे आगे है. पीईटी बोतलों को रिसाइकल करके, वे जैकेट, टी-शर्ट, ब्लेजर और बॉटम्स सहित कई फैशनेबल कपड़ों का उत्पादन करते हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक टी-शर्ट बनाने के लिए केवल आठ पीईटी बोतलें लगती हैं जबकि जैकेट बनाने के लिए बीस और ब्लेजर बनाने के लिए तीस बोतलें लगती हैं.
मोदी ने भी पहनी कंपनी की बनी जैकेट
कंपनी सुर्खियों में तब आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इकोलाइन क्लोदिंग की ओर से बनाई गई जैकेट पहनी थी.पीएम मोदी ने इसी साल फरवरी में संसद में इकोलाइन की बनाई हुई नीली सदरी जैकेट पहनी थी. इसके बाद उन्होंने जापान के हिरोशिमा में G7 शिखर सम्मेलन में फिर से इकोलाइन जैकेट पहनी. हाल ही में, इकोलाइन ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रिसाइकल पीईटी बोतलों से बनी एक यूनीक मंदारिन रंग की जैकेट भी भेंट की. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जैकेट उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. अरुण कुमार सक्सेना ने भेंट की.
सेंथिल ने एक न्यूज वेबसाइट के माध्यम से कहा, "आप देख सकते हैं कि टेक्सटाइल वैल्यू चेन बहुत जटिल होती है. हमारे पास एक गंदी प्लास्टिक की बोतल को एक सुंदर परिधान में बदलने का सपना था और हमने इसे पूरा किया. प्रधानमंत्री को भी ये पसंद आई. हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पीएम मोदी इकोलाइन के कपड़ों के उत्पाद पहनेंगे. मुझे इस बात पर अधिक गर्व महसूस होता है कि इस समर्थन के साथ, करूर एक जगह जिसे भारत में शायद ही कोई जानता हो स्पॉटलाइट बन गई."
कौन है के शंकर और सेंथिल शंकर?
के शंकर विदेश में काम करते थे और भारत के बाहर तीन दशकों तक समय बिताने के बाद, वे प्लास्टिक के खतरे से निपटने के दृष्टिकोण के साथ भारत लौटे.साल 2008 में, के शंकर ने श्री रेंगा पॉलिमर (Shree Renga Polymers)की स्थापना की. कंपनी आज भारत में pet बोतल रीसाइक्लिंग और टिकाऊ वस्त्रों में अग्रणी है. इसका सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपये है. अपने होम टेक्सटाइल उद्योगों के लिए जाना जाने वाला शांत शहर करूर में कंपनी का प्रोडक्शन हाउस है, कंपनी उत्पादन लाइनों को और मजबूत बनाने के लिए जर्मन तकनीक का उपयोग करती है.
जीत चुके हैं पुरस्कार
के शंकर विभिन्न देशों में वैश्विक कार्य अनुभव और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सी-लेवल के कार्य अनुभव के साथ एक आईआईटीयन हैं. उन्हें तमिलनाडु सरकार की ओर से "Best Entrepreneur of the Year" पुरस्कार 2018 दिया जा चुका है. उन्होंने CII, करूर के अध्यक्ष के रूप में और नेटिव लीड, करूर के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.
उनके बेटे सेंथिल शंकर अगली पीढ़ी के इंटरप्रेन्योर हैं. सेंथिल शंकर ने वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में कार्यकारी शिक्षा कार्यक्रम किया. उन्होंने अपने पिता का बिजनेस ज्वाइन करने से पहले तीन साल तक टीसीएस के साथ काम किया. वह कई स्टार्टअप्स के एंजेल इन्वेस्टर भी हैं.
क्या आईं चुनौतियां
शंकर के सामने स्थिरता मुख्य समस्या नहीं थी, बल्कि तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों से कचरा इकट्ठा करना शंकर के लिए वास्तविक संघर्ष था. उन्हें यह सबकुछ सहना पड़ा क्योंकि समाज ने एक IITian को खेतों से कचरा इकट्ठा करने की स्वीकृति नहीं दी थी.
उस समय सेंथिल स्कूल में ही थे. उस समय को याद करते हुए वह कहते हैं कि वह अपने पिता को वह सब काम करते हुए देखते थे, लेकिन व्यवसाय कभी शुरू नहीं हुआ. सेंथिल ने प्रकाशन को बताया, "मेरी मां भी एक आईआईटियन हैं लेकिन वो घर चलाने के लिए सहारा देती थीं." जैसे ही सेंथिल ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की, शंकर चाहते थे कि उन्हें विदेश में एक आरामदायक नौकरी मिल जाए. हालांकि, अपने पिता की तरह, सेंथिल अपना खुद का कुछ करना चाहते थे. साल 2015 में, सेंथिल अपने पिता के संघर्षपूर्ण बिजनेस में शामिल हो गए.
कोई नहीं कर रहा था निवेश
सेंथिल के अनुसार, उनके पास कोलेटरल नहीं थे जो ऋण प्राप्त करने के लिए गिने जाते थे और कोई भी निवेशक ऐसे व्यवसाय में निवेश नहीं करना चाहता था जिसका राजस्व मॉडल स्थिर न हो. सेंथिल बोले हम मौत की घाटी में थे. साल 2019 तक, श्री रेंगा पॉलिमर ने ऑटोमोटिव, कपड़ा, टेक्निकल टेक्सटाइल, और कई अन्य उद्योगों सहित विभिन्न उद्योगों को आपूर्ति करने वाले यार्न और फाइबर बनाने में प्रवेश किया था. इस तरह इतने सारे स्पीड ब्रेकर के बाद,आखिरकार उनके बिजनेस ने रफ्तार पकड़ी.
उनका यह भी मानना था कि कंज्यूमर का माइंडसेट भी कंपनी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था. सेंथिल ने कहा कि ग्राहक अभी भी प्लास्टिक से बने कपड़े पहनने को लेकर संशय में हैं. सेंथिल को उम्मीद है कि 2030 तक, इकोलाइन क्लॉथिंग कंपनी द्वारा बनाए जा रहे सभी रेशों को कपड़ों में बदल देगी और सात साल बाद, हम एक पूरी तरह से अलग कंपनी होंगे.