GMR Group Success Story: तीन लाख रुपए से 80 हजार करोड़ की कंपनी तक.... मैकेनिकल इंजीनियर ने खड़ी की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी, इन क्रिकेट टीमों में खरीदी हिस्सेदारी

GMR Group की मूल कंपनी, GGPL ने हैम्पशायर की मूल कंपनी, हैम्पशायर स्पोर्ट एंड लीजर होल्डिंग्स लिमिटेड में 53% हिस्सेदारी खरीदी है और अगले 24 महीनों के भीतर जीएमआर कंपनी हैम्पशायर का पूरा 100% अधिग्रहण करेगी. इस ग्रुप के पास और भी कई क्रिकेट टीमों में शेयर्स हैं.

Success story of GMR Group
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 01 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 3:14 PM IST

भारत की मशहूर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी, GMR ग्रुप ने इंग्लैंड की हैम्पशायर काउंटी क्रिकेट क्लब में शेयर्स खरीदे हैं. हैम्पशायर पहली इंग्लिश काउंटी है जिसे किसी विदेशी कंपनी ने खरीदा है. धीरे-धीरे GMR ग्रुप की पैरेंट कंपनी, GGPL अगले दो सालों में काउंटी पर पूरा मालिकाना हक ले लेगी. आपको बता दें कि GMR ग्रुप भारत की लीडिंग इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी है. दिलचस्प बात यह है कि इस ग्रुप ने सिर्फ हैम्पशायर काउंटी क्रिकेट क्लब में नहीं बल्कि दुनियाभर में और कई क्रिकेट टीमों को खरीदा है. 

जीएमआर ग्रुप ने इन क्रिकेट टीम्स को खरीदा है- इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) और महिला प्रीमियर लीग (WPL) में दिल्ली कैपिटल्स, इंटरनेशनल लीग ट्वेंटी-20 (ILT20) में दुबई कैपिटल्स और दक्षिण अफ्रीका 20 (SA20) में प्रिटोरिया कैपिटल्स शामिल हैं. और अब इंग्लैंड के क्रिकेट क्लब में स्टेक खरीदकर कंपनी ने खुद को और मजबूत किया है. 

आज हम आपको बता रहे हैं GMR ग्रुप की कहानी. आखिर कैसे सिर्फ तीन लाख रुपए इंवेस्ट करके ग्रांडी मल्लिकार्जुन राव ने 80 हजार करोड़ से ज्यादा टर्नओवर की कंपनी खड़ी कर दी. 

अपनी फैमिली के पहले ग्रेजुएट थे जीएम राव  
14 जुलाई 1950 को जन्म; ग्रांडी मल्लिकार्जुन राव या जीएम राव के नाम से बेहतर जाने जाने वाले अरबपति उद्योगपति और जीएमआर समूह के संस्थापक हैं. उनका जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. उनका परिवार कमोडिटी ट्रेडिंग से जुड़ा था और राजम में उनके पिता ज्वेलरी की एक छोटी दुकान चलाते थे. राव 10वीं कक्षा की परीक्षा में फेल हो गए थे और तब घरवालों ने उनसे पढ़ाई छोड़कर पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होने के लिए कहा. 

दो साल तक उन्होंने बिजनेस में पिता का हाथ बंटाया. लेकिन फिर उन्होंने अपनी मां से एक बार फिर स्कूल जाने का अनुरोध किया. पढ़ाई की परमिशन मिली तो राव ने अच्छे से पढ़ाई की और उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली. राव अपने परिवार के पहले ग्रेजुएट थे. इसके तुरंत बाद, उनके पिता ने परिवार की संपत्ति का बंटवारा कर दिया और उनके हिस्से में लगभग 3 लाख रुपये और एक घर आया. राव को उनकी मां ने बिजनेस करने की सलाह दी. लेकिन उन्होंने कुछ समय के लिए नौकरी कर ली ताकि तय कर सकें कि क्या बिजनेस करना है. 

नौकरी छोड़ शुरू किया बिजनेस
राव आंध्र प्रदेश पेपर मिल्स में शिफ्ट इंजीनियर के रूप में शामिल हुए. इस कार्यकाल के दौरान, उन्हें एक बेहद अनुभवी मारवाड़ी व्यवसायी से सीधे तौर पर व्यवसाय सीखने का अवसर मिला. कुछ समय के बाद उन्होंने लोक निर्माण विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी ले ली. यहां से कुछ समय बाद राव ने अपनी नौकरी छोड़ने और अपने भाईयों के साथ ट्रेडिंग व्यवसाय में आने का फैसला किया और यहीं से शुरू हुई जीएमआर ग्रुप की कहानी. 

वस्तुओं का व्यापार करते-करते दोनों भाइयों ने अपनी ऑयल मिल, राइस मिल भी शुरू कर ली और ट्रांसपोर्ट बिजनेस में भी उतर गये. 1978 में उन्हें चेन्नई में जूट मिल का लाइसेंस मिला. राव और उनके भाईयों ने अपने अलग-अलग बिजनेस को संभालना शुरू किया. कुछ दिन बाद भाईयों ने आपसी सहमति से सभी व्यवसायों को अलग-अलग कर लिया. राव ने समय के साथ और कई व्यवसायों में हाथ आजमाया. लेकिन 90 से दशक से उनकी जिंदगी बदलना शुरू हुई. 

खड़ी की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी 
वर्ष 1991 में, जीएम राव एलएंडटी जैसे प्रतिस्पर्धियों को पछाड़ते हुए हैदराबाद एयरपोर्ट का टेंडर जीस लिया. लेकिन इस बार मामला अलग था, एयरपोर्ट बनाना उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने एक निर्णय लिया. उन्होंने इस सेक्टर के एक्सपर्ट से सीखना शुरू किया. उन्होंने अपना समय, ऊर्जा और पैसा सीखने में लगाया. इस बीच, एक मलेशियाई कंपनी और शिकागो स्थित एक कंपनी को मैंगलोर में एक बार्ज-माउंटेड प्रोजेक्ट के लिए चार बार्ज-बोट लाइसेंस मिले थे. लेकिन मलेशियाई अर्थव्यवस्था उस समय मुश्किल में थी, इसलिए वे उन्हें लागू करने में सक्षम नहीं थे, और इसलिए जीएमआर ग्रुप उनसे लाइसेंस खरीदकर प्रोजेक्ट को पूरा किया. 

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने छह सड़कों की पहचान की थी, जिन्हें सड़क वार्षिकी योजना के माध्यम से प्राइवेट सेक्टर को बनाने के लिए दिया जाना था. इनमें से तीनों सड़कों का ठेका जीएमआर ग्रुप को मिला. ग्रुप ने एनएचएआई की अपेक्षाओं को पूरा किया और दोनों परियोजनाओं को समय से पहले पूरा किया. इस सफलता के कारण वे चार और सड़क प्रोजेक्ट्स हासिल करने में कामयाब रहा. 1999 में, आंध्र प्रदेश सरकार से ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का प्रोजेक्ट भी उन्हें मिला.  2003 में दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण का प्रोजेक्ट भी उन्हें मिला. आज GMR ग्रुप देश की सबसे बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में से एक है. वर्तमान में, राव के बेटे उनके बिजनेस को आगे बढ़ा रहे हैं.

 

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