बुरा दौर हर व्यक्ति की जिंदगी में आता है. फर्क होता है तो सिर्फ नजरिये और निरंतर चलते रहने का. आज जो व्यक्ति कमाई के लिए सड़क पर ठेला लगा रहा है या फिर एसी वाले कमरे में बैठकर कंपनी चला रहा कोई मालिक या बिजनेसमैन सब ने बुरा दौर देखा या झेला होता है. लेकिन निरंतर आगे बढ़ते रहना और हर हार से कुछ सीखना ही हमारे आगे का रास्ता तय करता है.आज की कहानी भी ऐसे ही एक सफल बिजनेसमैन की है. जयराम, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में बुरे से बुरा दौर देखा मगर हार नहीं मानी. उसका परिणाम उन्हें ये मिला कि आज वो देश के कामयाब बिजनेसमैन में से एक माने जाते हैं.
बर्तन धोने का काम किया
मुंबई में एक कैंटीन में बर्तन धोने के लिए 18 रुपये कमाने से लेकर सागर रत्न रेस्टोरेंट की फूड चेन शुरू करने तक, जयराम बानन के लिए यह आसान यात्रा नहीं रही है. कभी चंद रुपयों की मजदूरी के लिए बर्तन मांजने वाले जयराम बनान आज उनका बिजेनस 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का बिजनेस खड़ा कर चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जयराम बनान के आज देश भर में 60 से ज्यादा आउटलेट चल रहे हैं.
13 साल की उम्र में जयराम बानन ने अपने पिता के बटुए से कुछ पैसे चुरा लिए और घर से भाग गए. जब लोगों ने उन्हें मुंबई जाने वाली बस में रोते हुए देखा, तो वे उन्हें नवी मुंबई के पनवेल में हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स (HOC) की कैंटीन में ले गए. वहां उन्हें डिशवॉशर के रूप में अपनी पहली नौकरी मिली और उन्हें 18 रुपये प्रति माह मिलने लगे.
बाद में दिल्ली आ गए
करीब आठ साल तक कैंटीन में डिशवॉशर का काम करते-करते जयराम बानन धीरे-धीरे वेटर बन गए और मैनेजर के पद पर पहुंच गए. वह 200 रुपये महीना कमाने लगे. इसी दौरान उन्हें समझ आया कि साउथ इंडियन फूड रेस्टोरेंट कैसे काम करता है और फिर उन्होंने मुंबई में अपना पहला आउटलेट खोलने का फैसला किया. लेकिन जल्द ही उनका मन बदल गया और उन्हें एहसास हुआ कि शहर में बहुत सारे रेस्तरां हैं. साल 1973 में वो दिल्ली आ गए और शादी कर ली. इस दौरान सरकार ने गाजियाबाद में सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) की स्थापना की थी. जयराम बानन उस दौरान 1974 में सीईएल में कैंटीन स्थापित करने का ठेका हासिल करने में कामयाब रहे. यह उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. उन्होंने तीन रसोइयों रखे और यह सुनिश्चित किया कि कैंटीन में क्वालिटी भोजन परोसा जाए. उनके स्वादिष्ट खाने और सरल व्यवहार ने उनके ग्राहकों को काफी प्रभावित किया और कैंटीन सफल हो गई.
उधार लेकर शुरू की दुकान
उस समय, लोग दक्षिण भारतीय व्यंजनों का आनंद लेने के लिए दिल्ली के वुडलैंड और दासप्रकाश रेस्टोरेंट में जाना पसंद करते थे. अवसर को देखते हुए बनन ने एक महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई. उन्होंने स्ट्रीट फूड के रेट पर वुडलैंड्स को गुणवत्ता वाली इडली और डोसा परोसने का फैसला किया. साल 1986 में, उन्होंने अपनी बचत और दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार की मदद से दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी में सागर नाम से अपना पहला आउटलेट खोला. इसके लिए वो एक हफ्ते के 3,250 रुपए किराया देते थे. इस रेस्टोरेंट में 40 लोगों के बैठने की जगह थी और पहले दिन उन्हें 408 रुपये की बिक्री हुई. यहां वो इडली, डोसा और सांभर जैसे दक्षिण भारतीय स्टेपल परोसते थे. तीन हजार के मासिक किराया देना उनके लिए थोड़ा मुश्किल जरूर था लेकिन हर दिन सुबह सात बजे से आधी रात तक बिना थके काम करके, जयराम सागर रत्ना की बिक्री बढ़ाने में कामयाब रहे. कुछ ही समय बाद, बनान को अपनी बैठने की क्षमता बढ़ाने के लिए रेस्टोरेंट के ऊपर की जगह किराए पर लेनी पड़ी. लेकिन सागर की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, एक्सट्रा जगह भी उस भीड़ के लिए कम पड़ गई और लोग अब उनके रेस्तरां के बाहर लंबी लाइनों में खड़े होने लगे. चार साल बाद, 1991 में बनान ने वुडलैंड्स को टेकओवर कर लिया.
विदेश में भी खोले आउटलेट
वर्तमान में, सागर रत्न के कनाडा, सिंगापुर और बैंकॉक जैसे देशों में कई सारे आउटलेट हैं. जयराम बनान को डोसा किंग के नाम से भी जाना जाता है. सागर रत्ना के अलावा उन्होंने 2001 में स्वागत नाम की एक और रेस्टोरेंट चेन शुरू की थी. ये प्रोजेक्ट जयराम दिल के काफी करीब है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि जयराम वैसे तो ज्यादातर दिल्ली में रहते हैं लेकिन वो जिस भी शहर में होते हैं वहां के आउटलेट्स जरूर जाते हैं. इसका मेन मकसद हाइजीन, खाने की क्वालिटी और वातावरण को देखना होता है. उनकी फूड चेन हर साल 20 से 25 प्रतिशत का मुनाफा कमाती है.