Turning plastic into biofuel: कचरे से कमाई कर रहा है यह स्टार्टअप, बेकार प्लास्टिक से इंडस्ट्रीज के लिए बनाते हैं बायोफ्यूल

उत्तर प्रदेश के मथुरा में दो युवा Non-Recyclable प्लास्टिक से Bio-Fuel बनाकर मिसाल पेश कर रहे हैं. उनकी कंपनी आने वाले समय में E-Waste पर भी काम करेगी.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 03 मई 2023,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST
  • प्लास्टिक से बन रहा है फ्यूल 
  • कॉलेज से लेकर प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग तक

एक इंडस्ट्री रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सालाना लगभग 3.4 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, लेकिन इसका केवल 30 प्रतिशत ही रिसायकल होता है. सालों से, प्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है क्योंकि प्लास्टिक किसी न किसी रूप में वापस आता है. लेकिन प्लास्टिक के कचरे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अभी भी लैंडफिल में जाता है या खुले में जला दिया जाता है - ये दोनों बातें पर्यावरण के लिए अच्छी नहीं हैं.

इसका एक बड़ा कारण यह है कि प्लास्टिक बहुत कॉम्प्लेक्स है. प्लास्टिक के कई अलग प्रकार हैं इसलिए इन्हे अलग करके रिसायकल करना मुश्किल है. पीईटी और पीवीसी जैसे कुछ सबसे क़मन सिंगल यूज वाले प्लास्टिक आसानी से रिसायकल किए जाते हैं, जबकि एलएलडीपीई और एचआईपीएस जैसे प्लास्टिक रिसायकल नहीं होते हैं. लेकिन ऐसे नॉन-रिसायकलेब्ल प्लास्टिक से मथुरा स्थित एक रिसायकलर, इको ग्रीन रिसाइक्लिंग कंपनी बायोफ्यूल बनाकर मिसाल पेश कर रही है. 

प्लास्टिक से बन रहा है फ्यूल 
इको ग्रीन रिसाइक्लिंग के संस्थापक अपूर्व चतुर्वेदी और योगेश्वर बायोफ्यूल बनाकर सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं. प्लास्टिक को बायो फ्यूल यनी जैव ईंधन जैसे ऊर्जा स्रोतों में बदलने की प्रक्रिया को पायरोलिसिस कहा जाता है. इस प्रोसेस में लिक्विड ऑयल का उत्पादन करने के लिए ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में थर्मल डिग्रेडेशन का उपयोग करके मॉलेक्यूल्स को ब्रेक किया जाता है. 

एलएलडीपीई और एचआईपीएस जैसे प्लास्टिक को कुछ केमिकल्स के साथ मिलाया जाता है. इसे फिर उच्च तापमान पर जलाया जाता है. इंडियाटाइम्स के मुताबिक, पायरोलिसिस के माध्यम से उत्पन्न जैव ईंधन का उपयोग मिट्टी के तेल और कुछ हद तक डीजल के विकल्प के रूप में किया जा सकता है. लेकिन चतुर्वेदी का कहना कि जैव ईंधन का इस्तेमाल वाहनों में भी किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि वे ज्यादातर बायोफ्यूल ऐसी इंडस्ट्रीज को बेचते हैं जो भट्टियों का उपयोग करती हैं. इस बायोफ्यूल को और शुद्ध किया जा सकता है और वाहनों में उपयोग किया जा सकता है. इको ग्रीन की वर्तमान में प्रति दिन 10 टन की क्षमता है और बायोफ्यूल फिलहाल 50 रुपए लीटर के हिसाब से बेचा जाता है. 

कॉलेज से लेकर प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग तक
बायो फ्यूल के अलावा, इको ग्रीन मुख्य रूप से निगमों और शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से इकट्ठा किए गए अन्य प्लास्टिक, कागज और ई-कचरे को भी प्रोसेस करता है. अपुर्व और योगेश्वर दोनों ने MBA किया और उसके बाद यह काम शुरू किया. उन्हें अपनी पहली फंडिंग अपने कॉलेज के प्रजीडेंट से मिली और उनका पहला गोदाम कॉलेज परिसर में ही था. वर्तमान में, उनके पास पांच अलग-अलग प्लांट हैं जो पेपर, प्लास्टिक और ई-कचरे की प्रोसेसिंग करते हैं और उनकी मासिक क्षमता 15,000 मीट्रिक टन है.


इको ग्रीन ने भी हाल ही में ई-कचरे की प्रोसेसिंग शुरू की है और अगले साल तक लिथियम-आयन बैटरी शुरू करने की योजना है. इको ग्रीन के एमआरएफ (मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी) में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को नष्ट किया जाता है और धातुओं को प्लास्टिक से अलग किया जाता है. उनका कहना है कि प्लास्टिक कचरे के संबंध में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मल्टीलेवल प्लास्टिक (एमएलपी) की रिसायकलिंग है, जो पैकेजिंग में भारी मात्रा में उपयोग होता है, लेकिन इसे प्रोसेस करना मुश्किल होता है क्योंकि इसमें कई घटक होते हैं. हालांकि, अपुर्व और उनकी टीम एमएलपी को टाइल्स में बदलने पर भी शोध कर रहे हैं, जिसका उपयोग फर्नीचर बनाने के लिए किया जा सकता है.
 

 

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