बढ़ते डीजल-पेट्रोल के दामों ने आम नागरिकों की परेशानी बढ़ाई हुई है. इसके अलावा पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों से प्रदूषण भी काफी ज्यादा होता है. ऐसे में परिवहन मंत्रालय काफी समय से ‘फ्लेक्स-फ्यूल’ (Flex Fuel) वाहनों के निर्माण पर काम कर रहा है.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में बताया कि उन्होंने सभी बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों से इस बारे में बात की है. कंपनियों ने विश्वास दिलाया है कि छह महीनों के भीतर फ्लेक्स फ्यूल वाहनों का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा. जिसके बाद देश की पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी और साथ ही प्रदूषण भी.
लेकिन अब सवाल है कि आखिर ये फ्लेक्स फ्यूल वाहन क्या हैं? और इनके इस्तेमाल से कैसे पेट्रोल-डीजल की कीमत कम हो सकती है?
फ्लेक्स फ्यूल वाहन:
यहां पर ‘फ्लेक्स’ शब्द ‘फ्लेक्सिबल’ से लिया गया है. फ्लेक्स फ्यूल वाहन (Flex Fuel Vehicle) ऐसे वाहन होंगे जो फ्लेक्स फ्यूल इंजन से चलेंगे. फ्लेक्स फ्यूल इंजन (Flex Fuel Engine) से मतलब ऐसे इंजन से है जो एक से ज्यादा तरह के फ्यूल से चल सकता है या इसे आप मिक्स फ्यूल से भी चला सकते हैं.
वहीं बात अगर फ्लेक्स फ्यूल की करें तो एक्सपर्ट्स का कहना है कि फ्लेक्स फ्यूल गैसोलीन, इथेनॉल या मेथनॉल को मिलाकर बनाया जाने वाला एक अल्टरनेटिव फ्यूल है.
यह तकनीक नई नहीं है. इसे पहली बार 1990 के दशक की शुरुआत में विकसित किया गया था और कार बाइबिल के अनुसार 1994 में बड़े पैमाने पर उत्पादित फोर्ड टॉरस में इस्तेमाल किया गया था. ब्राजील फ्लेक्स फ्यूल इंजनों का इस्तेमाल करने वाला सबसे बड़ा देश है.
अब भारत में भी जल्द ही फ्लेक्स फ्यूल वाहनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया जायेगा. क्योंकि फ्लेक्स फ्यूल न सिर्फ तेल की बढ़ती कीमतों को बल्कि प्रदूषण को कम करने में भी सहायक होगा.
कैसे कम होंगी तेल की कीमतें:
काफी समय से भारत में अल्टरनेटिव फ्यूल को लेकर प्लानिंग हो रही है. बताया जा रहा है कि इथेनॉल और मेथेनॉल को मिलाकर फ्लेक्स फ्यूल बनाया जा सकता है. फ्लेक्स फ्यूल इंजन आने से आप वाहनों को सिर्फ पेट्रोल या डीजल या फिर फ्लेक्स फ्यूल पर चला पाएंगे.
दिलचस्प बात यह है कि फ्लेक्स फ्यूल में जिस इथेनॉल और मेथेनॉल की बात हो रही है, ये एक तरह के बायो प्रोडक्ट हैं. इन बायोप्रोडक्ट को गन्ना, मक्का और दूसरे एग्री वेस्ट से तैयार किया जाता है. खेती के बाद इन फसलों से बचे वाले वेस्ट की प्रोसेसिंग करके इन्हें बनाया का सकता है.
इसकी लागत भी कम होती है. इस तरह से फ्लेक्स फ्यूल को कम लागत में तैयार किया जा सकेगा और यह पेट्रोल व डीजल के इको-फ्रेंडली विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होगा. अगर फ्लेक्स फ्यूल इंजन बाजार में आते हैं तो उन्हें फ्लेक्स फ्यूल से चलाया जा सकता है जिससे पेट्रोल और डीजल की मांग घटेगी.
हम सब जानते हैं कि अगर पेट्रोल और डीजल पर देश की निर्भरता कम होगी तो ऐसे में तेल के दाम सस्ते हो जायेंगे.
प्रदूषण पर होगी रोकथाम तो किसानों की बढ़ेगी आय:
सबसे अच्छी बात है कि फसलों के बायोप्रोडक्ट होने के कारण फ्लेक्स फ्यूल इको-फ्रेंडली है. इससे कम से कम प्रदूषण होगा. हमारे देश में प्रदूषण आज बड़ी समस्याओं में से एक है. खासकर कि गाड़ियों से निकलने वाला धुआं इसकी एक बड़ी वजह है.
पेट्रोलियम फ्यूल किसी भी लिहाज से पर्यावरण के लिए ठीक नहीं होते हैं. ऐसे में अगर फ्लेक्स फ्यूल पर जोर दिया जाता है कि इससे कार्बन एमिशन कम होगा. पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ किसानों को भी आर्थिक सुरक्षा मिलेगी.
देश में अगर फ्लेक्स फ्यूल बनेंगे तो किसानों से फसलों का वेस्ट खरीदा जायेगा. जिससे उन्हें अतिरिक्त आय मिलेगी. साथ ही, किसानों को भी खेती के कामों में पंप, ट्रेक्टर आदि चलाने के लिए ये फ्लेक्स फ्यूल काम आ सकते हैं. जिससे उन्हें पेट्रोल-डीजल खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
'ईटी ग्लोबल बिजनेस समिट' के कार्यक्रम में नितिन गडकरी ने यह जानकारी दी. साथ ही उनका कहना है कि सरकार सार्वजनिक परिवहन को 100 प्रतिशत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से चलाने की योजना पर काम कर रही है. उम्मीद है कि जल्द ही फ्लेक्स फ्यूल वाहन आम आदमी के बीच पहुंचें.