नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को पेश करेंगी. इसे केंद्रीय बजट कहा जाता है. क्या आपको पता है कि केंद्रीय बजट के एक दिन पहले यानि 22 जुलाई को इकोनॉमिक सर्वे संसद में पेश किया जा सकता है. इकोनॉमिक सर्वे ना सिर्फ सरकार के रिपोर्ट कार्ड की तरह होता है, जिसमें पिछले वित्त वर्ष का लेखा जोखा होता है. चलिए आपको आर्थिक सर्वे का इतिहास बताते हैं.
क्या होता है इकोनॉमिक्स सर्वे-
इकोनॉमिक सर्वे एक फाइनेंशियल डॉक्युमेंट होता है. बता दें कि इस साल फरवरी में अंतरिम बजट पेश हुआ था. जिसके चलते आर्थिक सर्वेक्षण पेश नहीं किया गया था. आर्थिक सर्वे के 3 हिस्से होते है.
पहले हिस्से में अर्थव्यवस्था से जुड़ी अहम बातें शामिल होती हैं. इसमें अर्थव्यवस्था के विकास की संभावनाओं, चुनौतियों और विकास की गति बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी होती है.
दूसरे हिस्से में अलग-अलग क्षेत्रों का प्रदर्शन और उससे जुड़े आंकड़े होते हैं.
तीसरे हिस्से में रोजगार, महंगाई, आयात-निर्यात, बेरोजगारी और उत्पादन जैसी दूसरी अहम जानकारियां होती हैं.
कौन तैयार करता है इकोनॉमिक सर्वे-
आर्थिक सर्वे रिलीज करने से पहले वित्त मंत्री की मंजूरी लेनी होती है. फिर आर्थिक सर्वे वित्त मंत्री के जरिए संसद में पेश किया जाता है. इसके बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार चालू वित्त वर्ष का ब्यौरा पेश करते हैं. वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों की इकोनॉमिक्स डिविजन इकोनॉमिक सर्वे को मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में तैयार करती है.
साल 1964 से बजट से 1 दिन पहले आर्थिक सर्वे की परंपरा-
पहला आर्थिक सर्वे 1950-51 में पेश हुआ था. लेकिन साल 1964 में इसे बजट से एक दिन पहले पेश करने की परंपरा शुरू हुई थी. इससे जनता को ना केवल अर्थव्यवस्था की सही स्थिति का पता चल जाता है, बल्कि कई चुनौतियों के बारे में सरकार बताती है और उन्हे दूर करने के बारे में भी सर्वे में जिक्र मिलता है.
इकॉनमिक सर्वे पर होती है निवेशकों की नजर-
सर्वे से आम जनता को महंगाई, बेरोजगारी के आंकड़े तो मिलते ही हैं. निवेश, बचत और खर्च करने का भी आइडिया मिल जाता है. फर्ज कीजिए कि सरकार का फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर पर है, तो यह सेक्टर निवेशकों को लुभा सकता है. यानी इससे सेक्टर वाइज संभावनाओं का अंदाजा लगता है. सर्वे ना केवल सरकार की नीतियों के बारे में जानकारी देता है, बल्कि भविष्य के आर्थिक दृष्टिकोण को भी बताता है. यही वजह है कि इसे बजट से पहले पेश करने की परंपरा बनी हुई है.
ऐसा हो सकता है केंद्रीय बजट-
पीएम मोदी ने चुनाव परिणाम आने के बाद मिडिल क्लास और घरेलू बचत बढ़ाने की बात कही थी. लिहाजा एक्सपर्ट कहते हैं कि मोदी सरकार 3 में मिडिल क्लास पर फोकस रहेगा. यानी तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में करदाताओं को राहत मिल सकती है. संभावना है कि न्यू टैक्स रिजीम में स्लैब में बदलाव से करदाताओं को राहत मिलेगी. नई कर व्यवस्था में कर मुक्त आय तीन से बढ़ाकर पांच लाख रुपए प्रति वर्ष तक की जा सकती है. इससे पचास लाख रुपए वार्षिक की आमदनी वालों को दस हजार रुपए तक की बचत हो सकती है.
(राम किंकर सिंह की रिपोर्ट)
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