आकाश से ऊंची उड़ान! लकवा जैसी गंभीर बीमारी को हराकर किया सेना में जाने का सपना साकार, आज कर रहे हैं सभी को प्रेरित 

IMA PASSING OUT PARADE: IMA की पासिंग आउट परेड में इसबार 377 कैडेट्स ने भाग लिया था. इनमें से बाहरी देशों के भी कैडेट्स शामिल हैं. अकेडमी में कैडेट्स के माता-पिता और परिवार के सदस्य भी मौजूद रहे.

Baba Danish Langer (Photo: India Today)
gnttv.com
  • देहरादून,
  • 12 जून 2022,
  • अपडेटेड 10:48 AM IST
  • 2017 में दानिश को मार गया था लकवा 
  • बचपन से करना चाहते थे दानिश देश की सेवा 

शनिवार को लगभग 288 कैडेट उत्तराखंड में भारतीय सैन्य अकादमी (Indian Military Academy) से पास आउट हो गए है. देहरादून स्थित भारतीय मिलिट्री एकेडमी के पासिंग आउट परेड के समापन के साथ कई प्रेरक कहानियां निकलकर सामने आई हैं. इन कहानियों से पता चलता है कि अगर आप में जज़्बा है तो आकाश से भी ऊंची उड़ान भरी जा सकती है. इन्हीं में से एक हैं बाबा दानिश लैंगर. ये लकवा जैसी गंभीर बीमारी को हराकर आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं. 
 
बता दें, आइएमए की पासिंग आउट परेड में 377 कैडेट्स ने भाग लिया था. पिछली बार जहां कोविड-19 की वजह से पासिंग आउट परेड केवल अकेडमी में ही मनाई गई थी वहीं इसबार अकेडमी में कैडेट्स के माता-पिता और परिवार के सदस्य भी मौजूद रहे. इसबार आईएमए से भारतीय थल सेना को 288 युवा सैन्य अधिकारी मिले हैं. 

2017 में दानिश को मार गया था लकवा 

दरअसल, युवा सैन्य अधिकारी बने जम्मू के बाबा दानिश लैंगर की कहानी हर युवा के लिए प्रेरणा है. बाबा दानिश लैंगर को 2017 में गुइलेन बर्रे सिंड्रोम (GBS) के कारण लकवा का सामना करना पड़ा था. लेकिन ये बीमारी भी उनके लिए बाधा नहीं बनी, वे इसे पार करते हुए सैन्य अधिकारी बन ही गए. इस बारे में लेफ्टिनेंट बाबा दानिश के पिता राजेश लैंगर ने इंडिया टुडे को बताया. 

बचपन से करना चाहते थे दानिश देश की सेवा 

लेफ्टिनेंट बाबा दानिश लैंगर की मां अंजू लैंगर कहती हैं, "बचपन से ही वह सेना में शामिल होकर अपने देश की सेवा करना चाहता था. जब दानिश कक्षा 6 में था, उसकी दादी ने उसे सैनिक स्कूल में जाने से मना कर दिया, लेकिन उसने अब अपने सपनों को पूरा किया है और हम सभी को गौरवान्वित किया है. 

विश्वास, अनुशासन और दिनचर्या है सफलता का राज 

लेफ्टिनेंट दानिश ने अपने पूरे सफर के बारे में कहा, मेडिकल साइंस, अनुशासन और रूटीन से चिपके रहने से उन्हें मदद मिली. भगवान, बड़ों, दोस्तों, मेंटर्स और भारतीय सेना की मदद से मैं अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम हुआ हूं."

लेफ्टिनेंट दानिश, ने छह महीने में ही जीबीएस-इंड्यूस्ड पैरालिसिस पर काबू पा लिया था, इसके बाद से ही दानिश सभी उम्मीदवारों को अपने सपनों को कभी न छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. 

कभी नहीं माननी चाहिए हार 

लेफ्टिनेंट दानिश ने कहा, "मैं सभी युवाओं को कभी हार न मानने की सलाह देता हूं. अपने लिए निर्धारित जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी को या किसी भी चीज को अपने रास्ते में न आने दें."

गौरतलब है कि जीबीएस, एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है. जिसके कारण एक साल तक किसी व्यक्ति की मोटर फंक्शनिंग प्रभावित हो सकती है. इसका आमतौर पर प्लाज्मा एक्सचेंज जैसे इम्यूनोथेरेपी के साथ इलाज किया जाता है.
 

(अंकित शर्मा की रिपोर्ट)
 

 

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