अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है. कोर्ट की संविधान पीठ ने AMU को अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार माना है. कोर्ट ने साल 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें SC ने कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती है. दूसरे समुदायों को भी इस संस्थान में बराबरी का अधिकार है. ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने दिया है. कोर्ट ने अपना फैसला 4-3 के बहुमत से सुनाया है. ये फैसला देते हुए इसे 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. इस बेंच को ये जांच करनी है कि क्या एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यकों ने की थी?
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1875 में अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज के रूप में सर सैयद अहमद खान ने की थी. साल 1920 में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला. चलिए आपको अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्थापना से लेकर विवादों तक के बारे में बताते हैं.
कैसे हुई थी AMU की स्थापना-
सर सैयद अहमद खान की कोशिशों की बदौलत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अस्तित्व में आई थी. साल 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के बाद उनको लगा कि मुसलमानों को शिक्षित करना और उनको सरकारी सेवाओं में हिस्सा लेना जरूरी है. एएमयू की वेबसाइट के मुताबिक यूनिवर्सिटी की स्थापना में राजा जय किशन ने सर सैयद अहमद खान की मदद की थी.
सर सैयद अहमद खान के बेटे सैयद महमूद कैंब्रिज के पूर्व छात्र थे. 1872 में इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय के प्रस्ताव को मुहम्मद एंग्लो-ओरिंटल कॉलेज फंड समिति के सामने रखा. इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया. बाद में इसमें संशोधन भी किया गया.
शुरुआत में ये कॉलेज कलकत्ता यूनिवर्सिटी से संबंद्ध था. लेकिन साल 1885 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संबंद्ध कर दिया गया. साल 1907 में लड़कियों के लिए एक स्कूल की शुरुआत की गई. साल 1920 में इस कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला.
क्या था 1967 का मामला-
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर साल 1965 में उस समय विवाद शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने 20 मई 1965 को एएमयू एक्ट में संशोधन कर इसकी स्वायत्तता को खत्म कर दिया. सरकार के इस फैसले को अजीज बाशा ने कोर्ट में चुनौती दी.
साल 1967 में एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है. इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों की कोशिशों का नतीजा हो सकता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद साल 1981 में इंदिरा गांधी की सरकार ने एएमयू अधिनियम में बदलाव किया और इसे अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया. लेकिन साल 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने AMU संशोधन अधिनियम 1981 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे के प्रावधान को रद्द कर दिया.
इस मामले में कब क्या हुआ-
साल 2006 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. एएमयू ने भी इसके खिलाफ याचिका दायर की. साल 2014 में केंद्र में बीजेपी सरकार आई. साल 2016 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है. एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई मतलब नहीं है.
साल 2019 में सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 3 जजों की बेंच ने इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया.
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