Good News: इंजीनियरिंग के छात्रों ने बनाई Banana Tiles, सेरेमिक टाइल्स से 7 गुना मजबूत

बंगलुरु में इंजीनियरिंग कॉलेज के चार छात्रों ने मिलकर Banana Fibres से खास तरह की टाइल्स बनाई हैं जो सिरेमिक टाइल्स से ज्यादा मजबूत हैं और साथ ही, वाटरप्रूफ भी हैं.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 06 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST

केले के पेड़ का हर एक हिस्सा किसी न किसी काम आता है. जैसे तने के रेशे से आप इको-फ्रेंडली उत्पाद बना सकते हैं, इसके पत्ते का इस्तेमाल प्लेट आदि बनाने में किया जाता है और इसके फल और शूट को खाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. और अब कुछ इंजीनियरिंग छात्रों ने टाइलें बनाने के लिए केले के रेशे का उपयोग करने का एक अनूठा तरीका खोजा है. 

केले के रेशे से बनी ये टाइलें सिरेमिक टाइलों की तुलना में लगभग सात गुना अधिक मजबूत हैं, और अपनी रेजिन कोटिंग के कारण वाटरप्रूफ हैं. सिरेमिक टाइलें 1,300 न्यूटन तक के दबाव का सामना कर सकती हैं, केले के रेशों का उपयोग करके बनाई गई ये टाइलें 7,500 न्यूटन का दबाव झेल सकती हैं और फ्लेक्सुरल परीक्षणों में 52.37% मेगापास्कल पर रजिस्टर हुई हैं. यह उनकी वजन वहन करने की क्षमता को बताती है. 

टाइल्स में हैं कई विशेषताएं
एमवीजे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के चार छात्रों ने ये टाइल्स बनाई हैं. उनका कहना है कि केले के रेशे का उपयोग इसकी हाई टेंसाइल स्ट्रेंथ के कारण किया जाता है. इस मिश्रण में कैल्शियम कार्बोनेट और सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे हार्डनर और रासायनिक सॉल्यूशन शामिल किए गए थे, जो दो सामग्रियों को मिलाकर बनाया गया है, ताकि इसके रेजिस्टेंस, टेंसाइल स्ट्रेंथ और मोटाई को बढ़ाया जा सके. 

टाइलों का निर्माण सात शीटों को एक दूसरे के ऊपर रखकर किया जाता है. रेज़िन कोटिंग लगाने से पहले इन शीटों को 0 डिग्री, 30 डिग्री और 60 डिग्री के कोण पर रखा जाता है और वैक्यूम का उपयोग करके टाइट पैकिंग की जाती है. 

क्या है प्रक्रिया 
यह प्रक्रिया केले के रेशे को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के घोल में भिगोने से शुरू होती है, इसके बाद हार्डनर का उपयोग किया जाता है. टाइल की मजबूती को बढ़ाने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट को 0% से 20% तक अलग-अलग प्रतिशत में शामिल किया जाता है. पानी के रेजिस्टेंस को मापने के लिए टेस्ट किए जाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रेजिन की कोट लगने के बाद टाइलें वाटरप्रूफ बनी रहें.

उन्होंने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में आमतौर पर लगभग दो महीने लगते हैं. इन अनूठी टाइलों को बनाने वाले मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्र अमित, कार्तिक, परसन्ना और पृथ्वीराज ने कहा कि टाइलों को कमर्शियल रूप से बेचने से पहले कई अन्य परीक्षणों से गुजरना होगा. 

 

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