Delhi police constable runs a free school: पुलिस हेड कांस्टेबल ने पेश की मिसाल, झुग्गी-झोपड़ियों के गरीब बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त में शिक्षा

हमारे देश में बहुत से ऐसे पुलिस वाले हैं जिनके नेक कामों से पब्लिक के बीच पुलिस की छवि बदल रही है. कभी वर्दी से खौफ खाने वाले लोगों के लिए यही वर्दी अब बदलाव की कहानी लिख रही है.

Than Singh
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 17 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST
  • बच्चों के लिए मसीहा बने वर्दी वाले अंकल
  • गरीब बच्चों की संवर रही जिंदगी 

हमारे देश में हर एक नागरिक के लिए शिक्षा मूल अधिकार है लेकिन फिर भी बहुत से बच्चे आज स्कूल और शिक्षा से वंचित हैं. झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले, गरीबी का दंश झेल रहे बहुत से बच्चों को दो जून की रोटी मिलने में मुश्किल होती है तो पढ़ाई तो आप भूल ही जाएं. पर सवाल यह है कि क्या इनका गरीब होना इन बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देगा? बिल्कुल नहीं, क्योंकि आज बहुत से नेक दिल लोग ऐसे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का जरिया बन रहे हैं. 

और ऐसे ही नेक दिल लोगों में से एक हैं दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल थान सिंह. थान सिंह को ये बच्चे पुलिस वाले अंकल कहते हैं और सिंह भी बच्चों से बहुत प्यार करते हैं. वह इनकी सभी जरूरतों का ध्यान रखते हैं. अब चाहे बच्चों को खेलने के लिए खिलौने चाहिए हों, या पढ़ने के लिए किताबें और स्कूल जाने के लिए ड्रेस. जरूरत कोई भी हो लेकिन उसे पूरा इनके पुलिस अंकल ही करते हैं.

बच्चों के लिए मसीहा बने वर्दी वाले अंकल
अब तक पुलिस वालों को वर्दी में लोगों की रक्षा करते देखा होगा लेकिन दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल थान सिंह लोगों की हिफाजत के साथ गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा भी दे रहे हैं. अब चाहे उनका स्कूल में दाखिला करवाना हो, गरीब बच्चों की ड्रेस लेनी हो, उन्हे पढ़ाना लिखाना हो या उन्हें रोजाना खाना खिलाना. 

थान सिंह की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी जैसी लगती है जिसकी शुरुआत साल 2015 में 4 बच्चों के साथ हुई थी और आज थान सिंह की पाठशाला में कुल 80 बच्चे हैं. यहां पहली से आठवीं तक के बच्चों की पढ़ाई करवाई जाती है. थान सिंह उनका स्कूल में दाखिला करवाते है और फिर स्कूल से लौटने के बाद बच्चों को फ्री में उनकी पाठशाला में पढ़ाया जाता है. अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए थान सिंह भावुक हो गए और बताया कि वह बचपन में खुद झुग्गी झोपड़ी में रहते थे. तभी उन्होंने तय किया था कि वह बड़े होकर झुग्गी में रहने वाले गरीब बच्चों की मदद करेंगे.

गरीब बच्चों की संवर रही जिंदगी 
दो कमरों में चलने वाले इस स्कूल की खासियत यह है कि यह स्कूल उनके बचपन के उस सपने जैसे लगता है जिसे उन्होंने अपनी खुली आंखों से देखा था. थान सिंह बताते है की शुरुआत के दिनों में लोगों ने उनका मजाक उड़ाया तो कई लोगों ने ये तक कहा कि ये सब करके उन्हें क्या हासिल होगा. लेकिन उन्होंने तो जैसे ठान लिया कि बच्चों की मदद करके रहेंगे.

थान सिंह की पाठशाला में पढ़ने वाले नन्हें मुन्ने बच्चे देखने में तो आम बच्चों जैसे है. लेकिन इन सबमें जज्बा और जुनून है कुछ करने का और बड़ा बनने का और इनके सपनों को साकार करने के लिए थान सिंह इनका ध्यान रखते है. गौर करने वाली बात है की बच्चों का बेस मजबूत हो इसलिए पहली- दूसरी क्लास के बच्चों के क्लासरूम में दीवारों पर ही किताबों को खूबसूरती से उकेरा गया है.

दूसरों से भी मिल रही है मदद 
बच्चों के दिनचर्या की बात करें तो वो रोजाना सुबह स्कूल जाते हैं, फिर वापसी थान सिंह की पाठशाला में होती है जहां उन्हें खाना खिलाया जाता है. फिर 3 बजे से शुरू होती है पढ़ाई. क्योंकि कुछ बच्चे दूर से आते है इसका ध्यान रखते हुए थान सिंह ने उनके जाने की व्यवस्था भी करवा दी है. बच्चों की जरूरत के साथ ही स्कूल में उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है.

थान सिंह बताते है उन्हें काफी लोगों का सहयोग भी मिला है चाहे उनका पुलिस विभाग हो या दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्राएं जो यहां पाठशाला में आ कर मुफ्त में शिक्षा देती है. पहली क्लास के अलावा अगर दूसरी क्लास की बात करें तो उसमें तीसरी से आठवीं तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं, कुछ तो ऐसे भी है जो कभी स्कूल नहीं गए थे और थान सिंह ने इन सबका स्कूल में दाखिला करवाया और जरूरत की सभी चीजें भी मुहैया करवाई.

(नीतू झा की रिपोर्ट)

 

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