Explainer: संस्कृत की रक्षा के लिए ऋषिकुलम की स्थापना, जानिए क्या होगा इसमें खास

यहां के विद्यार्थी आपस में भी संस्कृत भाषा में ही बात करते हैं.  यहां के महंत ब्रह्मचारी विनय शर्मा की मानें तो यहां लुप्त हो रही संस्कृत भाषा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. इस कोशिश का मकसद आने वाली पीढ़ी को संस्कृत भाषा के महत्व से अवगत कराना है. जब ये यहां से आचार्य बनकर बाहर निकलेंगे तो इससे संस्कृत का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार होगा.

यहां के विद्यार्थियों को 14 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा.
gnttv.com
  • यमुनानगर ,
  • 01 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 2:17 AM IST
  • कंप्यूटर, अंग्रेजी और अन्य विषयों की भी होगी पढ़ाई
  • संस्कृत भाषा का संरक्षण है मकसद 
  • संस्कारों का दिया जाएगा पूरा ज्ञान

जल्द ही भारत के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी के साथ-साथ फर्राटेदार संस्कृत भी बोलेंगे. जी, ये सच है. आदिबद्री में बने ऋषिकुलम विद्यापीठ में अब प्राचीन समय के ऋषिकुल पद्धति से संस्कृत में पढ़ाई कराई जाएगी. इस विद्यापीठ में पुरानी पद्धति की तरह विद्यार्थियों के लिए निःशुल्क रहने और खाने की भी व्यवस्था है. इस विद्यापीठ में छात्रों को ‘ब्रह्मचारी’ कह कर संबोधित किया जाएगा और यहां के विद्यार्थियों को 14 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा. इस विद्यापीठ का शुभारंभ 3 फरवरी को शिक्षा मंत्री कंवरपाल करेंगे. इसके संस्थापक विनय स्वरूप ब्रह्मचारी ने जानकारी दी कि यह इस क्षेत्र में पहला ऐसा विद्यापीठ है. 

कंप्यूटर, अंग्रेजी और अन्य विषयों की भी होगी पढ़ाई 

यहां पहली से आठवीं तक के बच्चों को अंग्रेजी कोर्सों और कंप्यूटर की पढ़ाई के साथ-साथ कर्मकांड, वेद और पुराणों की शिक्षा दी जाएगी. वैदिक काल की पढ़ाई के लिए नेपाल से बच्चे यहां पढ़ने आए हैं. सुबह शाम यहां बच्चों को संस्कृत में मंत्र उच्चारण करना सिखाया जाता है. इस विद्यापीठ के मंत्रोच्चारण आस-पास के पहाड़ों में गूंजते रहते हैं. हरियाणा के साथ यहां बिहार व उत्तर प्रदेश से भी बच्चे आए हुए हैं. फिलहाल यहां 26 बच्चे शिक्षा लेने के लिए आए हुए हैं. 

संस्कृत भाषा का संरक्षण है मकसद 

यहां पर बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी महाऋषि श्री संस्कृतानंद हरी आचार्य आशुतोष गौतम, अध्यापक रंगनाथ स्वामी की है. आधुनिक युग में जहां हर कोई इंग्लिश बोलना पसंद करता है वहीं, ऋषिकुल आश्रम में पढ़ने वाले बच्चे आधुनिकता की चकाचौंध से दूर संस्कृत का उच्चारण करते हैं. यहां के विद्यार्थी आपस में भी संस्कृत भाषा में ही बात करते हैं.  यहां के महंत ब्रह्मचारी विनय शर्मा की मानें तो यहां लुप्त हो रही संस्कृत भाषा को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. इस कोशिश का मकसद आने वाली पीढ़ी को संस्कृत भाषा के महत्व से अवगत कराना है. जब ये यहां से आचार्य बनकर बाहर निकलेंगे तो इससे संस्कृत का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार होगा.

संस्कारों का दिया जाएगा पूरा ज्ञान

इसके संस्थापक विनय स्वरूप ब्रह्मचारी ने बताया ऋषिकुल के छात्रों को संस्कारों का भी पूरा ज्ञान दिया जाएगा. संस्कार का मतलब होता है - किसी को शुद्ध करके उपयुक्त बनाना. ऐसा कहा जाता है कि इन संस्कारों का पालन  करने से मनुष्य जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. ये 16 संस्कार हैं - गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, मुंडन संस्कार, कर्णवेधन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, उपनयन संस्कार, वेदारंभ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार अन्त्येष्टि संस्कार. इन संस्कारों के अनुसार जीवन-यापन करने से मनुष्य जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.

 

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