सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला! UPSC हो या SSC… सभी सरकारी भर्ती परीक्षाओं में बदलने जा रहा नियम, अब हर दिव्यांग को परीक्षा में मिलेगी स्क्राइब सुविधा

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में दिव्यांगों के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है. इससे न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं में दिव्यांगों को समान अवसर मिलेगा, बल्कि सरकारी और निजी संस्थानों को भी दिव्यांग उम्मीदवारों के अधिकारों का सम्मान करना होगा. 

Supreme Court
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST
  • सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
  • निजी कंपनियों को भी लागू होगा फैसला

सोचिए, एक प्रतिभाशाली छात्र जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है, लेकिन उसके हाथ की मांसपेशियां सही तरीके से काम नहीं करतीं. वह लिखने में सक्षम नहीं है, लेकिन उसका दिमाग तेज है, ज्ञान गहरा है. क्या उसे सिर्फ इस वजह से परीक्षा देने से रोका जाना चाहिए? इसी सवाल का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि हर दिव्यांग व्यक्ति को, उसकी दिव्यांगता की गंभीरता चाहे जो भी हो, परीक्षा में स्क्राइब (लिखने में सहायक) और अतिरिक्त समय जैसी सुविधाएं दी जानी चाहिए.

कैसे आया यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक?
यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति, जो फोकल हैंड डिस्टोनिया (Focal Hand Dystonia) नामक बीमारी से पीड़ित था, ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. यह बीमारी हाथों की मांसपेशियों को प्रभावित करती है, जिससे व्यक्ति के लिए लिखना कठिन हो जाता है. परीक्षा के दौरान उसे स्क्राइब और अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया गया था. इससे उसे मानसिक और शारीरिक रूप से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा.

याचिकाकर्ता ने यह दलील दी कि सरकार द्वारा 10 अगस्त, 2022 को जारी किए गए ज्ञापन में कुछ दिव्यांगों को विशेष सुविधाएं देने का प्रावधान था, लेकिन सभी दिव्यांग व्यक्तियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा था. केवल ‘बेंचमार्क दिव्यांगता’ (40% या उससे ज्यादा दिव्यांगता वाले लोग) वाले व्यक्तियों को ही यह सुविधाएं दी जा रही थीं. याचिकाकर्ता ने इसे भेदभाव करार दिया और अदालत से न्याय की गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला रहा?
जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने इस याचिका पर विचार करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह 2022 के ज्ञापन में संशोधन करे और परीक्षा में बैठने वाले सभी दिव्यांग व्यक्तियों को समान रूप से स्क्राइब और अतिरिक्त समय जैसी सुविधाएं देने का प्रावधान करे. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “दिव्यांग व्यक्तियों को परीक्षा में सुविधाएं देने से इनकार करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है. ‘उचित अवसर’ (Reasonable Accommodation) का सिद्धांत यह कहता है कि हर दिव्यांग को एक जैसा मौका मिलना चाहिए. स्क्राइब या अतिरिक्त समय जैसी सुविधा से इनकार करना संविधान में दिए गए समानता के अधिकार के भी खिलाफ है.”

क्या है ‘बेंचमार्क दिव्यांगता’ और कोर्ट का इस पर रुख?
सरकार ने अब तक दिव्यांगों को दो कैटेगरी में बांटा था:

  • बेंचमार्क दिव्यांगता- वे लोग जिनकी दिव्यांगता 40% या उससे अधिक हो.
  • सामान्य दिव्यांगता- वे लोग जिनकी दिव्यांगता 40% से कम हो.

अब तक केवल ‘बेंचमार्क दिव्यांगता’ वालों को विशेष सुविधाएं मिलती थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर दिव्यांग व्यक्ति को सुविधाएं मिलनी चाहिए, चाहे उनकी दिव्यांगता 40% से कम ही क्यों न हो.

सरकार और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं के लिए कड़ा संदेश
कोर्ट ने यह भी पाया कि कई परीक्षाओं में स्पष्ट शिकायत निवारण प्रणाली (Grievance Redressal Mechanism) नहीं होने के कारण दिव्यांग उम्मीदवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

कोर्ट ने कहा, “यह देखा गया है कि कई बार परीक्षा करवाने वाली संस्थाओं ने दिव्यांगों को उनके अधिकार नहीं दिए हैं, क्योंकि इसको लेकर पॉलिसी साफ नहीं थी. यह असमानता अब खत्म होनी चाहिए.”

क्या निजी कंपनियों को भी लागू होगा यह फैसला?
कई निजी कंपनियां और भर्ती एजेंसियां यह दावा करती हैं कि वे दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) के दायरे में नहीं आतीं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि निजी संस्थानों पर भी मौलिक अधिकार लागू होते हैं और वे भी इस कानून का पालन करने के लिए बाध्य हैं.

अब आगे क्या होगा?

  1. हर दिव्यांग व्यक्ति को परीक्षा में स्क्राइब और अतिरिक्त समय जैसी सुविधाएं मिलेगी.
  2. 40% से कम दिव्यांगता वाले व्यक्ति भी इन लाभों के हकदार होंगे.
  3. परीक्षा करवाने वाली संस्थाओं को स्पष्ट दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.
  4. सरकार को 2022 के ज्ञापन में बदलाव करना होगा ताकि कोई भी दिव्यांग भेदभाव का शिकार न हो.
  5. निजी कंपनियों और भर्ती संस्थानों को भी दिव्यांगों को समान अवसर देने होंगे.

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में दिव्यांगों के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है. इससे न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं में दिव्यांगों को समान अवसर मिलेगा, बल्कि सरकारी और निजी संस्थानों को भी दिव्यांग उम्मीदवारों के अधिकारों का सम्मान करना होगा. 

 

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