National Teachers' Award: अनाथ-आश्रम में पले-बढ़े, पढ़ने के लिए मेहनत-मजदूरी की और बने आर्ट टीचर, मिला नेशनल टीचर्स अवॉर्ड

कोल्हापुर के रहने वाले टीचर सागर बगाड़े को National Teachers' Award 2024 से नवाज़ा गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों से सम्मानित होकर सागर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.

Sagar Bagade awarded with National Teachers' Award
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 05 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:12 AM IST
  • कोल्हापुर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं सागर
  • सागर बना चुके हैं दो वर्ल्ड रिकॉर्ड

हमारे स्कूल टीचर्स का हमारी जिंदगी में अहम रोल होता है. स्कूल टीचर्स ही बच्चों को कच्ची उम्र में सही-गलत सिखाकर आगे बढ़ने का हौसला देते हैं. हमारी कामयाबी में खुशी भी सबसे ज्यादा वहीं होते हैं. अगर स्कूल टीचर सही राह दिखाने वाले हों तो बच्चे अपनी मंजिल ढूंढ ही लेते हैं. आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक ऐस ही टीचर से जिनकी शिक्षा और मार्गदर्शन सिर्फ स्कूल की चारदीवारी नहीं बल्कि इसके बाहर तक भी फैला है. जो अपने छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए लीक से हटकर काम कर रहे हैं. 

यह कहानी है महाराष्ट्र के कोल्हापुर से ताल्लुक रखने वाले 57 वर्षीय शिक्षक सागर बगाड़े की. सागर कोल्हापुर के सौ. एसएम. लोहिया हाई स्कूल में आर्ट टीचर हैं. सागर बगाड़े का काम सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं है, वह एक कोरियोग्राफर, आर्ट डायरेक्टर, और आर्टिस्ट भी हैं. दिलचस्प बात यह है कि वह अपने छात्रों को इन सब विषयों पर शिक्षा देकर काबिल बना रहे हैं. सागर को इस साल नेशनल टीचर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. सागर सिर्फ एक बेहतरीन शिक्षक ही नहीं है बल्कि उनकी पूरी जिंदगी लोगों के लिए प्रेरणा है. 

GNT Digital के साथ बातचीत करते हुए सागर बगाड़े ने अपने जीवन के सफर और छात्रों के साथ अपने काम के बारे में बताया. 

अच्छा करियर बना रहे हैं उनके छात्र
अपने काम के बारे में बात करते हुए सागर ने बताया, "साल 2007 में मेरी इस स्कूल में पोस्टिंग हुई थी. मैं बच्चों को आर्ट पढ़ाता हूं. लेकिन स्कूल में मैंने एक ट्रेंड देखा है कि छोटे बच्चे जब कुछ क्रिएटिव करते हैं जैसे डांस, पेंटिंग या थिएटर, तो सब उनकी तारीफें करते हैं. लेकिन जैसे ही बच्चा 9th क्लास में आता है तो अचानक से हर कोई पढ़ाई का प्रेशर डालने लगता है. अगर कोई बच्चा आर्ट्स में अच्छा है तो भी माता-पिता और बाकी लोग यह चाहते हैं कि वह इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सोचे." 

सागर ने अपने स्कूल में आने वाले बच्चों के माता-पिता की इस सोच पर काम किया. उन्होंने पैरेंट्स को समझाया कि अगर कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं है लेकिन उसमें कोई आर्टिस्टिक स्किल है तो उसे उसकी रुचि के क्षेत्र में आगे बढ़ने दिया जाए. इससे वह ज्यादा अच्छा करेगा जिंदगी में. वहीं, कुछ बच्चे पढ़ाई और आर्ट्स दोनों में अच्छे होते हैं. इन बच्चों को सागर आर्ट्स को हॉबी की तरह हमेशा अपने साथ रखने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि उनकी मेंटल हेल्थ अच्छी रहे. सागर के समझाने से बहुत से बच्चों को उनकी मंजिल मिली है. 

उन्होंने बताया, "आज मेरे पढ़ाए हुए बहुत से छात्र अलग-अलग आर्टिस्टिक सेक्टर्स में काम कर रहे हैं. कोई एडिटर है कोई कैमरामैन, तो आज कोई आर्ट डायरेक्टर बनकर एड कंपनियों के साथ काम कर रहा है. मैं अपने छात्रों को आर्ट से संबंधित करियर विकल्पों के बारे में विस्तार से बताता हूं. उनके कई छात्रों को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन में दाखिला मिला है. वे बच्चों को VFX, एनिमेशन और अब AI आदि के बारे में पढ़ाते हैं. 

मिले हैं दो एशिया पैसिफिक वर्ल्ड रिकॉर्ड 

छात्रों के साथ किया डांस प्रोग्राम


सागर पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों को एस्क्ट्रा-कर्रिकुलर एक्टिविटीज से भी जोड़कर रखते हैं ताकि वे और अच्छा कर सकें. फोक डांस में महारत रखने वाले सागर ने अपने बच्चों के साथ मिलकर दो एशिया पैसिफिक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए हैं. ये दोनों रिकॉर्ड उन्होंने अपने लोक-नृत्य को अलग रूप देने के आधार पर बनाए हैं. सागर ने बताया कि उन्होंने 2020 में स्कूल के वार्षिक प्रोग्राम में 200 से 250 बच्चों के साथ मिलकर एक फोक डांस तैयार करके प्रस्तुत किया था जिसके लिए उन्हों ने पहला एशिया पैसिफिक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. दूसरा रिकॉर्ड उन्होंने इसी साल बनाया है. 

उन्होंने कहा, "मैंने 300 छात्रों के साथ छत्रपति शिवाजी से संबंधित एक कार्यक्रम तैयार किया. इसमें हमने शिवाजी महाराज के 24 योद्धाओं की कहानी बताई जिनके बारे में ज्यादा बात नहीं होती है. यह 18 मिनट का था और हमने इसे बैले फॉर्म में प्रस्तुत किया. इससे पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था इसलिए हमारा दूसरी बार एशिया पैसिफिक वर्ल्ड रिकॉर्ड बना." इतना ही नहीं, सागर स्कूल से बाहर गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए भी काम कर रहे हैं. वह दिव्यांग, अनाथ, HIV+, कुष्ठ रोग से पीड़ित और सेक्स वर्कर्स के बच्चों के लिए भी काम कर रहे हैं. उन्हें आर्ट के जरिए समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. 

अनाथ-आश्रम में पले-बढ़े हैं सागर 
अब सागर के निजी जीवन की बात करें तो उन्होंने बताया, "मैं साल 1968 में किसी को सोलापुर रेलवे ट्रैक पर मिला था. उस भले इंसान ने मुझे पंढरपुर के नवरंगी बालक आश्रम में दे दिया. यहां पर मैं पला-बढ़ा और कुछ साल बाद, बगाड़े परिवार ने मुझे गोद ले लिया. लेकिन परिवार की खुशी ज्यादा दिन नहीं रही क्योंकि जब मैं 10वीं कक्षा में था तब मेरे दत्तक माता-पिता का साया भी सिर से उठ गया." ऐसे में एक बार फिर सागर दुनिया में अकेले थे. 

सागर ने आगे कहा, "अगर आप मेहनत करेंगे तो दुनिया में सब आपकी मदद करेंगे. सहानुभूति न बटोरें बल्कि खुद कुछ करने का जज़्बा रखें. मैंने खुद सर्वाइव करने के लिए सुबह जल्दी उठकर लोगों के घर दूध-अखबार बांटने का काम किया. क्लासेज के बाद में होटल में वेटर का काम करता था. यहां खाना भी मिल जाता था और टिप भी. इस तरह मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की." 

वंचित वर्ग के बच्चों के साथ करते हैं काम

अपने टीचर से मिली आर्ट्स पढ़ने की प्रेरणा 
आर्ट्स टीचर बनने के पीछे की प्रेरणा के बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें उनके एक शिक्षक ने इस बारे में बताया. सागर का कहना है कि वह पढ़ाई में बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे और तब उनके एक शिक्षक ने कहा कि तुम्हारी आर्ट्स अच्छी है तो आर्ट्स में करियर बनाओ और वही पढ़ो. तब उन्होंने सांगली में कलाविश्व महाविद्यालय में दाखिला लिया और यहां भी उनके शिक्षकों ने उनका अच्छा मार्गदर्शन किया. 

अपने परिवार के बारे में वह बताते हैं कि उनकी पत्नी सरिता उनकी सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने उनका हर कदम पर साथ दिया है और उनका बेटा आर्किटेक्ट है. सागर का कहना है कि उनका बेटा हर तरह से उनके सपनों को पूरा करने में उनका साथ दे रहा है. टीचर्स डे पर सम्मान मिलने पर सागर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं और उनका कहना है कि यह उनके लिए बहुत बड़ी बात है.

अगले साल सागर स्कूल से रिटायर हो जाएंगे और रिटायरमेंट के बाद भी वह रुकना नहीं चाहते हैं. बल्कि उनकी योजना है कि आगे वह महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के साथ काम करें. उन्हें सही राह दिखाएं ताकि वे जीवन में कुछ बन सकें. 

 

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