Badaun Lok Sabha Seat: Shivpal Singh Yadav बदायूं से क्यों नहीं लड़ना चाहते चुनाव ? हार का डर या बेटे को सियासत में स्थापित करने की कोशिश... समझिए सियासी गणित

बदायूं कभी मुलायम सिंह के गढ़ के नाम से विख्यात था. 1991 से 2019 तक समाजवादी पार्टी को यहां कोई हरा नहीं पाया था, लेकिन 2019 चुनाव में बीजेपी सपा के इस गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब रही. इस बार बीजेपी ने दुर्विजय सिंह को तो वहीं सपा ने शिवपाल यादव को टिकट दिया है. हालांकि शिवपाल यादव ने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया और अपने बेटे आदित्य यादव का नाम आगे कर दिया है.

Shivpal Yadav (File Photo)
कुमार अभिषेक
  • बदायूं,
  • 14 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST

लोकसभा चुनाव नजदीक है ऐसे में पूरे देश में चुनावी माहौल गरम हो गया है. सबसे ज्यादा सीटों वाले उत्तर प्रदेश पर सबकी निगाहें टिकी हुई है.अगर बात बदायूं की करें तो अखिलेश यादव ने इस बार धर्मेंद्र यादव से यह सीट छीन ली. पहले उनके नाम का ऐलान किया लेकिन फिर उनका टिकट काट दिया और चाचा शिवपाल के नाम का ऐलान कर दिया. शिवपाल यादव को इस बात की भनक भी नहीं थी कि अखिलेश यादव उनके नाम का ऐलान बदायूं से चुनाव लड़ने के लिए कर चुके हैं. खैर जब नाम का ऐलान हो गया तो शिवपाल यादव बदायूं चले आए और कुछ दिनों तक वह इस सीट पर जीत की थाह लेते रहे लेकिन कुछ दिनों तक बदायूं सीट को समझने के बाद उन्होंने खुद के चुनाव लड़ने से मना कर दिया.और अपनी जगह अपने बेटे आदित्य यादव को आगे कर दिया.

अब सार्वजनिक तौर पर शिवपाल यादव हर सभा में यह ऐलान कर रहे हैं कि बेशक आधिकारिक तौर पर सपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया हो लेकिन आदित्य ही चुनाव लड़ेंगे और 15 अप्रैल यानी सोमवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. यहां तक की आदित्य यादव के नाम का पर्चा भी खरीदा जा चुका है और बहुत ही ताम झाम से 15 अप्रैल को अब आदित्य यादव का नामांकन दाखिल होगा.

क्या बोले बीजेपी के उम्मदीवार दुर्विजय सिंह ?

बीजेपी के प्रत्याशी दुर्विजय सिंह ने आजतक से बातचीत में कहा कि अखिलेश यादव ने अपने चाचा को यहां निपटा दिया है. चाचा शुरू में तो जीतने आए थे लेकिन जब उन्हें जमीनी हकीकत का एहसास हुआ तब वह भाग खड़े हुए और अपनी जगह अपने बेटे को आगे कर दिया. अब उनका बेटा आदित्य यादव यहां बली का बकरा बन गया है.

जीत के लिए बहा रहे पसीना

बदायूं में अपनी जीत के लिए अब शिवपाल यादव और आदित्य यादव दोनों खूब पसीना बहा रहे हैं. एक गांव में शिवपाल यादव छोटी-छोटी सभाएं करते मिल रहे हैं तो दूसरे गांव में आदित्य यादव. आखिर अपनी जगह अपने बेटे को शिवपाल ने क्यों आगे किया और अखिलेश यादव ने अभी तक आदित्य यादव का नाम आधिकारिक तौर पर क्यों नहीं आगे बढ़ाया इस पर शिवपाल यादव कहते हैं कि यह उनकी रणनीति का हिस्सा है. उन्होंने आगे कहा कि जब अखिलेश यादव चुनाव लड़े थे तो 26 साल के थे. धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़े तो वह 28 साल के थे, उनका बेटा भी इसी उम्र का है. ऐसे में युवाओं की मांग पर वह अपनी जगह अपने बेटे को आगे कर रहे हैं. हालांकि शिवपाल यादव कहते हैं कि 15 तारीख को यह तय होगा कि वह चुनाव लड़ेंगे आदित्य चुनाव लड़ेंगे या फिर धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ेंगे.  शिवपाल के सूत्रों के मुताबिक ज्यादा परिवारवाद का आरोप ना लगे इसलिए आदित्य यादव के नाम के ऐलान को रोक दिया गया है जबकि पर्चा भरने को हरी झंडी दे दी गई है यहां तक की आदित्य के नाम का फॉर्म बी भी पहुंच गया है. परिवारवाद के आप पर शिवपाल यादव कहते हैं की यह परिवारवाद नहीं बल्कि परिवार का संघर्ष है.

परिवारवाद के आरोप पर आदित्य यादव ने क्या कहा

आदित्य यादव भी लगातार गांव-गांव घूम रहे हैं और अपने लिए वोट मांग रहे हैं. आदित्य यादव मुलायम सिंह यादव के नाम पर श्रद्धांजलि का वोट अपने लिए मांग रहे हैं लेकिन परिवारवाद के आरोप पर कहते हैं कि परिवार की कमाई परिवार में ही बंटती है. इसलिए अगर उन्हें टिकट मिला है तो इसे परिवारवाद नहीं कह सकते.

बदायूं का सियासी गणित

बदायूं की दो विधानसभा ऐसी है जो सपा को अकेले निर्णायक बढ़त दे देती है ,एक गुन्नौर विधानसभा है और दूसरी सहसवान विधानसभा है. 20 लाख वोट में यादव और मुसलमान ही 8 लाख से ज्यादा होते हैं. ऐसे में सपा हमेशा इस समीकरण से जीतती रही है. इस बार भी तमाम प्रत्याशी गुन्नौर और सहसवान में अपना जोर लगा रहे हैं. बीजेपी अगर गन्नौर में समाजवादी पार्टी को कम अंतर पर रोक लेती है और सहसवान में लगभग बराबर पर आती है तब बीजेपी बदायूं सीट जीत सकती है. लेकिन अगर गुन्नौर ने सपा को निर्णायक बढ़त दी तो बदायूं की सीट बीजेपी की फंस जाएगी. इसलिए चाहे बीजेपी हो या सपा दोनों ने अपना पूरा जोर इन्हीं सीटों पर लगाया है. 

गुन्नौर और सहसवान विधानसभा सीट से सपा मजबूत

गुन्नौर यादव बहुल माना जाता है. जिसमें 60 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी यादव बिरादरी की उसके बाद मुस्लिम बिरादरी हैं. सहसवान विधानसभा में मुसलमान की तादाद ज्यादा है. ऐसे में बीजेपी के लिए इस समीकरण को बदायूं में रोकना मुश्किल भरा काम है. बीजेपी के प्रत्याशी जो कि संगठन के बड़े नेता हैं ब्रज के क्षेत्रीय अध्यक्ष हैं, जिनके अंदर 19 जिले आते हैं वह इस बार बीजेपी के प्रत्याशी हैं. उन्हें उम्मीद है प्रधानमंत्री मोदी और योगी के नाम पर सारे समीकरण ध्वस्त हो जाएंगे और बीजेपी लगातार दूसरी बार बदायूं में जीत दर्ज करेगी.
 

 

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