Mayawati vs Akhilesh Yadav: आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर घमासान जारी है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को एक मंच पर लाने की कांग्रेस की कोशिश रंग नहीं ला पा रही है. कांग्रेस पार्टी को पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों के देखते हुए डर सता रहा है कि गठबंधन नहीं हुआ तो बीजेपी कहीं लोकसभा चुनाव में यूपी में सूपड़ा साफ न कर दे. आइए जानते हैं मायावती और अखिलेश में रार क्या है और कैसे रहे थे पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नतीजे?
सीट बंटवारे पर हुई चर्चा
मंगलवार को लोकसभा के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को लेकर सीट बंटवारे पर गठबंधन के नेताओं में चर्चा हुई. हालांकि इसमें किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा गया. अब फिर 12 जनवरी को यूपी को लेकर चर्चा का राउंड चलेगा. राज्य की 80 सीटों के लिए सीट बटवारा मुख्यत: एसपी, कांग्रेस, आरएलडी व अन्य छोटे दलों के बीच होना है. एक तरफ कांग्रेस जहां बसपा से गठबंधन को लेकर खुलकर सामने आ गई है तो वहीं, सपा इस पूरी कवायद से अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर रही है.
बीएसपी क्यों है कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण
यूपी सहित पूरे देश में बसपा की पहचान दलित पार्टी के रुप में है. यूपी में फिलहाल 21% दलित वोटबैक है. वहीं, कुल 80 सीटों में से 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं और 42 सीटों पर दलितों का ठीक-ठाक असर समझा जाता है. यही वजह है कि कांग्रेस किसी भी हाल में मायावती को इंडिया गठबंधन से जोड़ना चाहती है. यदि बसपा साथ आती है तब विपक्ष को मुस्लिमों और पिछड़े के अलावा दलितों का भी साथ मिल सकता है.
सपा और बसपा के नेताओं में जुबानी जंग
सपा और बसपा के नेताओं में जुबानी जंग छिड़ी हुई है. मायावती ने गेस्टहाउस कांड का जिक्र करते हुए सपा से खतरा बताते हुए यूपी सरकार से सुरक्षा मांगी है. मायावती ने कहा कि सपा के तत्व अराजकता फैला सकते हैं. मायावती ने 8 जनवरी को एक्स पर पोस्ट कर सपा को पिछड़ा और दलित विरोधी पार्टी बताया था. उधर, अखिलेश यादव भी मायावती और बीजेपी पर पलटवार करने से नहीं चूके. अखिलेश ने कहा- बाबा के पास बुलडोजर है, चाहे तो पुल गिरवा दें.
अखिलेश ने कहा कि ये पुल जाम से बचने के लिए बहुत जरूरी हैं. जिसे रेलवे और सेना से एनओसी मिलने के बाद बनाया गया था. साल 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजधानी के मॉल एवेन्यू स्थित बसपा राज्य मुख्यालय के सामने बनाए गए ओवर ब्रिज का लोकार्पण किया था. बसपा के संस्थापक कांशीराम की सोच पर चलने वाली मायावती चतुर नेत्री मानी जाती हैं. वहीं, दूसरी ओर यादव की छवि सौम्य स्वभाव के नेता की है. अब देखना है कि क्या सीट बंटवारे को लेकर दोनों में बात बनती है या नहीं.
2014 में बीजेपी ने मारी थी बाजी
कुल 543 लोकसभा सीटों में से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश 80 सीटें हैं. 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने बीजेपी की जीत में अहम योगदान निभाया था. साल 2014 में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में 71 सीटों को अकेले बीजेपी ने अपने नाम किया था. बीजेपी ने 43 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. अपना दल को 2 सीटों पर जीत मिली थी. सपा को 22 प्रतिशत वोट के साथ 5 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस 8 प्रतिशत वोट के साथ सिर्फ 2 ही सीट जीत पाई थी. आरएलडी का खाता तक नहीं खुल पाया था. मायावाती की पार्टी बसपा 20 प्रतिशत वोट पाकर भी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
2019 में भी लहराया विजयी पताका
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी ने सबसे अधिक सीटों पर बाजी मारी. हालांकि इस बार उसे कुछ सीट का नुकसान हुआ. वहीं बसपा अपनी साख बचाती नजर आई. 2019 के दौरान एनडीए में बीजेपी और अपना दल (एस) ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा. जिसमें 50 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बीजेपी ने 62 लोकसभा सीट अपने नाम की और अपना दल फिर से एक प्रतिशत वोट शेयर के साथ 2 सीट ही जीत पाई.
महगठबंधन (बसपा, सपा और आरएलडी) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. जिसमें बसपा को 19 प्रतिशत, सपा को 18 प्रतिशत और रालोद को 2 प्रतिशत वोट मिला था. इस बार बसपा ने 10 सीट तो सपा पिछली बार की ही तरह 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. आरएलडी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. साल 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे शर्मनाक रहा. 6 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. सिर्फ सोनिया गांधी को जीत मिली थी. राहुल गांधी तक को हार का मुंह देखना पड़ा था. उधर, इस बार भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में मिशन लोकसभा के तहत 80 में से 80 सीटें जीतने का नारा दिया है. बीजेपी ने 'अबकी बार 400 पार, तीसरी बार मोदी सरकार' के स्लोगन के साथ चुनाव में उतरने का फैसला किया है.