Lok Sabha Election 2024: गिरगिट कहे जाने पर भी BSP मुखिया Mayawati पर क्यों नरम है Akhilesh Yadav की Samajwadi Party, ये है असली वजह

आम चुनाव 2024 को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी तापमान बढ़ने लगा है. सूबे में सियासी किला फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी दलित वोटर्स को लुभाना चाहती है. लेकिन बीएसपी इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाहती है. इस बीच पूर्व सीएम मायावती ने अखिलेश यादव को गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया है. लेकिन चाहकर भी समाजदवादी पार्टी अपने लीडर के खिलाफ बयानबाजी पर आक्रमक नहीं हो पा रही है. इसके पीछ दलित वोटर्स को साधने की रणनीति है.

Akhilesh Yadav and Mayawati (File Photo)
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 5:00 PM IST

लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी घेराबंदी शुरू हो गई है. इंडिया गठबंधन के विस्तार की अटकलों के बीच बीएसपी मुखिया मायावती ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया है. लेकिन अपने नेता पर इतने बड़े जुबानी हमले के बाद भी समाजवादी पार्टी आक्रमक तेवर नहीं दिखा रही है. दरअसल इसके पीछे वोटों का गणित छिपा है. चलिए मायावती के बयान पर समाजवादी पार्टी के नरम रूख के पीछे की वजह से जानने की कोशिश करते हैं.

मायावती के बयान पर अखिलेश का रूख नरम-
अक्सर अपने नेता के खिलाफ किसी भी तरह की बयानबाजी को लेकर गर्म तेवर दिखाने वाली समाजादी पार्टी अखिलेश यादव के खिलाफ इस बयान के बाद भी सोच-समझकर बयान दे रही है. पार्टी तो छोड़िए, अखिलेश यादव खुद बीएसपी पर नरम रूख दिखा रहे हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि हमने बीएसपी को सम्मान देने का काम किया है. हम उनको पीएम बनाने का सपना देख रहे थे. शायद बहनजी पर कहीं से कोई दबाव आया है. दबाव की वजह से वो आजकल कुछ न कुछ बोल रही हैं.

मायावती ने क्या कहा था-
यूपी की पूर्व सीएम और बीएसपी मुखिया मायावती ने अपने जन्मदिन के मौके पर सोमवार को अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. इसके साथ ही उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर करारा हमला किया था. उन्होंने कहा था कि अखिलेश यादव गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं. इनसे बचकर रहना चाहिए.

मायावती पर अखिलेश का नरम रूख क्यों-
बीएसपी मुखिया ने अखिलेश यादव को गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला बताया. लेकिन समाजवादी पार्टी इस बयान पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया देने से बचती रही. इसके पीछे वोटों का गणित काम कर रहा है. बीजेपी के हिंदुत्व की काट के लिए समाजवादी पार्टी पीडीए फॉर्मूला लेकर मैदान में उतरी है. PDA फॉर्मूला में पी का मतलब पिछड़ा, डी का मतलब दलित और ए का मतलब अल्पसंख्यक से है.
समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि बीजेपी को हराने के लिए दलित समाजवादी पार्टी का साथ दे सकते हैं. इसलिए पार्टी दलितों को लुभाने की कोशिश कर रही है. पार्टी कई रणनीति पर काम भी कर रही है. पिछले साल अप्रैल में अखिलेश यादव ने रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण भी किया था.

अगर समाजवादी पार्टी दलितों की बड़ी लीडर मायावती पर जुबानी हमले करती है तो दलित वोटर पार्टी से दूर जा सकते हैं. इस रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी बीएसपी मुखिया के बयान पर नरम रूख अख्तियार किए हुए है.

अखिलेश को दलितों का साथ जरूरी-
समाजवादी पार्टी के कोर वोटर यादव और मुस्लिम मजबूती से पार्टी के साथ खड़े हैं. साल 2022 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 31.8 फीसदी वोट हासिल किए. किसी भी चुनाव में ये समाजवादी पार्टी का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है. इस विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा वोट हासिल किया था. साल 2017 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 21.8 फीसदी वोट मिले थे. जब सूबे में पूर्ण बहुमत से समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी, तब भी पार्टी को 29.13 फीसदी वोट ही मिले थे.

समाजवादी पार्टी जानती है कि अगर यूपी का किला फतह करना है तो इस वोट परसेंटेज को बढ़ाना होगा. इसके लिए समाजवादी पार्टी की नजर दलित वोटर्स पर है. लेकिन यूपी में दलित वोटर्स पर हमेशा से बीएसपी की बड़ी पकड़ रही है और मायावती इस पकड़ को कमजोर होने देना नहीं चाहती हैं. इसलिए वो दलित वोटर्स को समाजवादी पार्टी के पाले में जाने से रोकना चाहती हैं. मायावती का अखिलेश यादव के खिलाफ बयान भी इस रणनीति का ही हिस्सा है. मायावती के बयान से समाजवादी पार्टी असहज भले हो गई है लेकिन इस बयान पर आक्रमक रूख अख्तियार नहीं कर पा रही है.

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