लोकसभा चुनाव 2024 में चंद्रबाबू नायडू ने लोकसभा की महज 16 सीटें जीतकर भी खुद को एक प्रमुख किंगमेकर के रूप में स्थापित कर लिया है. वह यह तय करेंगे कि एनडीए की सरकार बनेगी या फिर इंडिया गठबंधन की. नायडू का राजनीतिक सफर चुनौतियों से भरा रहा है और उनकी सियासी समझ ने उन्हें इस महत्वपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है.
राजग से अलगाव- साल 2018 में, चंद्रबाबू नायडू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से नाता तोड़ लिया था. इसके पीछे प्रमुख मुद्दा था आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना.
चुनावी पराजय- 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार के बाद नायडू के नेतृत्व को सवालों के घेरे में रखा जाने लगा.
राजग में वापसी- मार्च 2024 में, नायडू ने राजग में फिर से वापसी की और इसके साथ ही उन्होंने भाजपा और जनसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस प्रकार की राजनीतिक चाल ने उन्हें फिर से चर्चा में ला दिया.
संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व- नायडू ने 1996 और 1998 में संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दिया. यह उनके सियासी करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती प्रदान की.
किंगमेकर की भूमिका- आज नायडू वह ताकत हैं जो यह तय कर सकते हैं कि भारत में अगले प्रधानमंत्री कौन होंगे. कम सीटें जीतने के बावजूद भी राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
चंद्रबाबू नायडू की यह स्थिति राजनीतिक समझ और उनकी कुशल रणनीतियों का परिणाम है. उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा जा सकता है जो बदलते वक्त के साथ खुद को ढालने की क्षमता रखते हैं और यही कारण है कि वह आज राष्ट्रीय राजनीति में किंगमेकर के तौर पर उभर कर सामने आए हैं.
(राम किंकर सिंह की रिपोर्ट)