Vote Counting Process: कहां रखा जाता है आपका वोट, कैसे होती है इसकी गिनती, क्या होता है मतगणना का राउंड, काउंटिंग सेंटर के अंदर कौन जा सकता है, जानिए सबकुछ

EVM-VVPAT Security: चुनाव के बाद ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है. इसकी सुरक्षा तीन लेयर में की जाती है. स्ट्रॉन्ग रूम को किसी भी जगह पर जैसे प्राइवेट प्रॉपर्टी, निजी जमीन, निजी मकान पर नहीं बनाया जा सकता है. इसके लिए सिर्फ सरकारी बिल्डिंग का ही चयन किया जाता है. 

Electronic Voting Machines
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2024,
  • अपडेटेड 4:03 PM IST
  • लोकसभा चुनाव 2024 की वोटिंग के बाद 4 जून को है मतगणना
  • रिटर्निंग ऑफिसर करते हैं रिजल्ट की घोषणा 

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) की वोटिंग हो चुकी है. 4 जून को मतगणना के साथ पता लग जाएगा कि सरकार एनडीए या इंडिया गठबंधन में से किसकी बन रही है. लेकिन आप क्या जानते हैं कि वोटिंग के बाद काउंटिंग तक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम (EVM) कहां रखी जाती है? इसकी सुरक्षा कैसी होती है? स्ट्रांग रूम  (Strong Room) क्या होता है और कौन इसका मतगणना वाले दिन ताला खोलता है? कैसे होती है वोटों की गिनती और कौन करता है, काउंटिंग सेंटर के अंदर कौन जा सकता है? आइए आज हम आपको इन सवालों के जवाब बता रहे हैं. 

स्ट्रॉन्ग रूम क्या है
लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, वोटिंग के बाद ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को विशेष सुरक्षा में एक विशेष कमरे में पहुंचाया जाता है, जिसे स्ट्रॉन्ग रूम कहते हैं. इसे स्ट्रॉन्ग रूम इसलिए कहते हैं कि एक बार मशीन अंदर चली जाती है तो उसके बाद उस कमरे में कोई दूसरा नहीं जा सकता है. विशेष परिस्थिति में उसे निर्वाचन आयुक्त से अनुमति लेनी पड़ती है. इसके बाद भी अकेले कोई शख्स अंदर नहीं जा सकता है. वोटों की गणना के समय सुरक्षा कर्मियों के साथ और लोग, जो अधिकृत हैं, वे अंदर जा सकते हैं. स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा के विशेष इंतजाम होते हैं. चुनाव आयोग खुद स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी करता है.  

स्ट्रॉन्ग रूम को कहीं भी नहीं बनाया जा सकता
स्ट्रॉन्ग रूम को किसी भी जगह पर जैसे प्राइवेट प्रॉपर्टी, निजी जमीन, निजी मकान पर नहीं बनाया जा सकता है. इसके लिए सिर्फ सरकारी बिल्डिंग का ही चयन किया जाता है. इसके लिए बकायदे जिला मजिस्ट्रेट स्थल निरिक्षण करते हैं और सुरक्षा का जायजा लेते हैं. जिस सरकारी बिल्डिंग में स्ट्रॉन्ग रूम बनाया जाना है, उसका चयन पहले ही कर चुनाव आयोग को भेजा जाता है. रिटर्निंग ऑफिसर सभी राजनीतिक दलों को स्ट्रॉन्ग रूम की जानकारी देते हैं. चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि स्टॉन्ग रूम सरकारी बिल्डिंग में बनेगा, लेकिन पुलिस की बिल्डिंग इसका अपवाद रहेगा. 

इसके अलावा स्ट्रॉन्ग रूम ऐसी जगह नहीं हो सकता, जहां बाढ़ या पानी आने का खतरा हो. बेसमेंट, किचन या कैंटीन के नीचे, वाटर टैंक के पास भी स्ट्रॉन्ग रूम नहीं हो सकता. किसी सीढ़ी या बिल्डिंग के किसी निचले हिस्से के पास भी नहीं हो सकता. स्ट्रॉन्ग रूम के पास कोई अंडर-कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग भी नहीं होनी चाहिए. ऐसी जगह भी स्ट्रॉन्ग रूम नहीं हो सकता, जहां आग लगने का डर हो.केमिकल के इस्तेमाल वाली जगहो पर भी स्ट्रॉन्ग रूम नहीं हो सकता. आसपास इलेक्ट्रिक ड्रिल के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक होता है.

क्या है स्ट्रॉन्ग रूम को सील करने का नियम
ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को स्ट्रॉन्ग रूम में रखने के बाद उसे सील किया जाता है. इसके लिए भी नियम बनाए गए हैं. स्ट्रॉन्ग रूम को सील करते वक्त राजनीतिक दलों के सदस्य मौजूद रहते हैं. चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर की मौजूदगी में कमरों को डबल लॉक से सील किया जाता है.

राजनीतिक दलों के सदस्य ताले पर अपनी सील भी लगा सकते हैं. हालांकि इसके लिए राजनीतिक दलों को पहले से लिखित आवेदन देना होता है. स्ट्रॉन्ग रूम की खिड़कियों और दूसरे दरवाजों को पूरी तरह से सील कर दिया जाता है. स्ट्रॉन्ग रूम के इकलौते इंट्री प्वाइंट पर डबल लॉक होता है. जिसकी एक चाबी रिटर्निंग ऑफिसर और दूसरी असिस्टेंट ऑफिसर के पास होती है.

तीन लेयर में होती है सुरक्षा
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा बहुत कड़ी होती है. इसकी सुरक्षा पूरी तरह से चुनाव आयोग की निगरानी में होती है.इसकी तीन लेयर में सुरक्षा होती है. स्ट्रॉन्ग रूम की अंदर की सुरक्षा स्थानीय पुलिस की जगह पैरा मिलिट्री फोर्सेज या अन्य तरह के फोर्सेज करती है. स्ट्रॉन्ग रूम के बाहरी सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस के हाथ में होती है. 

यदि कोई प्रत्याशी चैलेंज करता है तो पुलिस को हटाकर वह भी सुरक्षा बीएसएफ या सीआरपीएफ के जिम्में सौंपी जा सकती है. ईवीएम मशीनों की सुरक्षा की पल-पल की जानकारी लेने के लिए जिला अधिकारी और पर्यवेक्षक लगातार स्ट्रॉन्ग रूम का दौरा करते रहते हैं. जहां स्ट्रॉन्ग रूम बनाया जाता है वह पूरा एरिया सीसीटीवी में कैद होता है. अधिकारी कंट्रोल रूम में बैठकर मॉनिटरिंग करते रहते हैं. प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधि को भी सीसीटीवी से सब दिखाई देता रहता है. आने-जाने वाले सभी लोगों का रजिस्टर रिकॉर्ड रखा जाता है. कंट्रोल रूम में अंधेरा न हो इसके लिए बिजली 24 घंटे रहती है. टीवी स्क्रीन पर सभी कैमरों का डिस्पले दिखता रहता है.

स्ट्रांग रूम को कौन खोलता है 
वोटों की काउंटिंग के दिन सुबह 7 बजे के आसपास प्रत्येक दल के उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की मौजूदगी में स्ट्रांग रूम का ताला खोला जाता है. रिटर्निंग ऑफिसर और चुनाव आयोग के स्पेशल ऑब्जर्वर भी इस दौरान मौजूद रहते हैं. स्ट्रॉन्ग रूम का ताला खोलने से लेकर ईवीएम को काउंटिंग स्थल तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराई जाती है.

इसके बाद ईवीएम की कंट्रोल यूनिट (CU) काउंटिंग वाली टेबल पर लाई जाती है. फिर प्रत्येक कंट्रोल यूनिट की यूनिक आईडी और सील का मिलान किया जाता है. इसे हर उम्मीदवार के पोलिंग एजेंट को भी दिखाया जाता है. इसके बाद कंट्रोल यूनिट में बटन प्रेस करने के बाद हर उम्मीदवार का वोट ईवीएम में उसके नाम के आगे दिखने लगता है.

कैसे चुने जाते हैं मतगणना कर्माचारी और कब से शुरू होती है वोटो की गिनती
भारत में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 64 के अनुसार, मतों की गिनती संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) द्वारा या उसके पर्यवेक्षण/निर्देशन के अधीन होती है. किसी क्षेत्र में चुनाव कराने का जिम्मा भी आरओ का ही होता है. चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर आमतौर पर संबंधित जिले के जिलाधिकारी को बनाया जाता है.

एक जिले में एक से अधिक चुनाव क्षेत्र होने पर किसी अन्य सरकारी अधिकारी को चुनाव पदाधिकारी बनाया जा सकता है. लोकसभा चुनाव में हर काउंटिंग सेंटर के एक हॉल में 15 टेबल की व्यवस्था रहती है. इसमें से 14 टेबल काउंटिंग के लिए और एक टेबल रिटर्निंग ऑफिसर के लिए होती है. 

कौन सा कर्मचारी किस टेबल पर काउंटिंग करेगा यह सीक्रेट रखा जाता है. मतगणना वाले दिन सुबह 5-6 बजे के बीच हर जिले का निर्वाचन अधिकारी रैंडम तरीके से कर्मचारियों को हॉल और टेबल अलॉट करते हैं. इसके बाद वोटों की गिनती सुबह 8:00 बजे शुरू होती है. हालांकि रिटर्निंग ऑफिसर के पास यह अधिकार होता है कि वह किसी विशेष परिस्थिति में टाइम को थोड़ा आगे-पीछे कर सकता है. सबसे पहले पोस्टल बैलट और इलेक्ट्रॉनिक पोस्टल बैलट की गिनती होती है. पोस्टल बैलट की गिनती के तुरंत बाद ईवीए के मतों की गिनती शुरू होती है. 

एजेंटों का कैसे होता है चुनाव
उम्मीदवार अपने एजेंट का चयन खुद करते हैं. इसके बाद जिला निर्वाचन अधिकारी को उनका नाम, फोटों व अन्य जानकारी देंते हैं. काउंटिंग वाली तारीख से 1 दिन पहले ही जिला निर्वाचन अधिकारी हर उम्मीदवार के एजेंट का नाम, फोटो सहित जारी करता है. मतगणना स्थल के प्रत्येक हॉल में हर टेबल पर प्रत्याशी की तरफ से एक एजेंट मौजूद रहता है. किसी एक हॉल में 15 से ज्यादा एजेंट नहीं हो सकते हैं. 

कौन जा सकता है काउंटिंग सेंटर के अंदर 
काउंटिंग सेंटर यानी  मतगणना स्थल के अंदर रिटर्निंग ऑफिसर, मतगणना कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और एजेंट ही जा सकते हैं. जब तक वोटों की गिनती पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी उम्मीदवार के एजेंट को बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती है. मतगणना में तैनात सुरक्षा कर्मियों और अधिकारियों के अलावा किसी को भी अंदर मोबाइल ले जाने की इजाजत भी नहीं होती.

यदि किसी प्रत्याशी या उसके एजेंट को डाटा में गड़बड़ी/त्रुटि की आशंका है तो वह री-काउंटिंग यानी दोबारा मतगणना की मांग कर सकता है. चुनाव आयोग के मुताबिक जब तक आधिकारिक तौर पर रिजल्ट की घोषणा नहीं हो जाती, तब तक कोई भी उम्मीदवार री-काउंटिंग की मांग कर सकता है.

मतगणना में राउंड या चरण क्या होता है
मतों की गिनती जितने चक्र में की जाती है, उसे ही राउंड या चरण कहते हैं. मतगणना के दौरान जब 14 ईवीएम में डाले गए मतों की गिनती पूरी हो जाती है तो एक राउंड या एक चक्र की गिनती पूरी मानी जाती है. हर चक्र का नतीजा साथ ही साथ घोषित किया जाता है.

इसके बाद काउंटिंग हॉल में लगाई गईं 14 टेबलों पर अगले राउंड की गिनती के लिए 14 ईवीएम मशीनों को लाया जाता है. मतदाताओं और पोलिंग बूथ की संख्या के आधार पर ईवीएम मशीनों की संख्या घट-बढ़ सकती है. किसी निर्वाचन क्षेत्र में आठ से 10 राउंड की गिनती पूरा होने के बाद जीत-हार के नतीजे घोषित कर दिए जाते हैं, तो कहीं पर 100 से अधिक राउंड तक गिनती चलती है. 

कौन करता है रिजल्ट की घोषणा
कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स के नियम 63 के मुताबिक मतों की गिनती पूरी होने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर हर प्रत्याशी को मिले वोट का डाटा रिजल्ट शीट में डालते हैं और उसके बाद रिजल्ट की घोषणा करते हैं. इसके साथ ही विजेता उम्मीदवार को जीत का सर्टिफिकेट भी देते हैं. 

वोटों की गिनती के बाद ईवीएम का क्या होता है
वोटों की गिनती पूरी होने के बाद ईवीएम दोबारा स्ट्रांग रूम में रख दी जाती है. नियम के अनुसार काउंटिंग के 45 दिनों तक ईवीएम को स्ट्रांग में रूम में रखना होता है. इसके बाद इसे दूसरे स्टोर में शिफ्ट कर दिया जाता है. ईवीएम का डाटा 15 सालों तक सुरक्षित रखा जाता है, लेकिन भारत में एक साल तक या कोई विवाद हो जाए तो कोर्ट के आदेश के बाद तब तक सुरक्षित रखा जाता है, जबतक कि उस विवाद का निपटारा न हो जाए.

 

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