करीब 2 साल पहले हुए आजमगढ़ उपचुनाव से पहले या जिला समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता था लेकिन इस उपचुनाव में कुछ ऐसा हुआ कि यह गढ़ ध्वस्त हुआ और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने विजय पताका लहराई. हालांकि यह चुनाव ऐसा था जहां चर्चा जितने या हरने वाले उम्मीदवार से ज्यादा सपा और बीजेपी में वोटो के अंतर को कम या ज्यादा करने वाले उम्मीदवार की हुई और वह उम्मीदवार थे बसपा के उम्मीदवार गुड्डू जमाली जिनके चुनाव लड़ने का नतीजा सपा के धर्मेंद्र यादव को भुगतना पड़ा और उन्हें हार मिली.
मुश्किल होगी इंडिया गठबंधन की राह
इस इस बात को 2 साल हो चुके हैं लेकिन ऐसा लगता है कि बहुजन समाज पार्टी की रणनीति आज भी ठीक वही है जिसके चलते अब यह चर्चा हो रही है की क्या मायावती इंडिया गठबंधन की राह यूपी में मुश्किल करने वाली हैं.
बता दें, विपक्ष में होने के बाद भी मायावती ने अलग रास्ता चुना और इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं हुई और अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले तीन दिनों में उन्होंने 5 प्रत्याशियों का ऐलान किया है जिनमें से चार मुस्लिम प्रत्याशी हैं.
क्या है मायावती का गेम प्लान
यह बात यूपी में आम है कि मुस्लिम वोट एक मुश्त बीजेपी के खिलाफ पड़ता रहा है जिसका सीधा फायदा राज्य स्तर पर समाजवादी पार्टी और देश स्तर पर कांग्रेस को होता रहा है. अब जब दोनों ही दल सपा और कांग्रेस इंडिया गठबंधन के तले साथ आ गए हैं तो यह कयास लगाए जा रहे थे कि मुस्लिम वोट ना भटकर अब सीधा इंडिया एलाइंस को फायदा पहुंचाएगा. लेकिन मायावती का गेम प्लान इंडिया एलायंस के मंसूबों पर पानी फेर सकता है. मायावती की इसी रणनीति का असर यूपी विधानसभा चुनाव में भी दिखाई पड़ा था जिसमे भले ही 403 में से केवल एक सीट बसपा जीती हो लेकिन सपा को हराने में अहम भूमिका निभाई थी और बसपा का वोट बीजेपी में शिफ्ट हुआ था.
सूत्रों के मुताबिक, बसपा ने कन्नौज से पूर्व सपा नेता अकील अहमद, पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनिल अहमद खान फुल बाबू ,अमरोहा से मुजाहिद हुसैन और मुरादाबाद से इरफान सैफी को मैदान में उतारा है. हालांकि, इनमे कुछ जगह ऐसी हैं जो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और ऐसे में बसपा के पास और कोई विकल्प नहीं है लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जहां पर बसपा की रणनीति साफ दिखाई पड़ती है. कन्नौज की बात की जाए तो ब्राह्मण बाहुल्य है और नंबर दो पर यादव मुस्लिम और दलित लगभग बराबर पर हैं , ऐसे में मायावती दलित चेहरा भी उतार सकती थीं लेकिन वह मुस्लिम चेहरे के साथ गई हैं. हालांकि, पीलीभीत, मुरादाबाद और अमरोहा में मायावती का दांव चुनावी दांव पेंच के हिसाब से सटीक भी बैठता है क्योंकि सभी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इंडिया गठबंधन बसपा की इस रणनीति की कोई काट ला पाता है या मायावती अपनी राजनीतिक काबिलियत एक बार फिर प्रमाणित करती नजर आती हैं.