चुनावी राजनीति में अरविंद केजरीवाल ने अपनी रणनीतिक समझदारी का लोहा कई बार मनवाया है. इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव उनकी इसी समझ की एक बड़ी अग्निपरीक्षा साबित होने वाले हैं. मनीष सिसोदिया और संजय सिंह सरीखे अपने सिपहसालारों की अनुपस्थिति में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती देना आसान नहीं है. वो भी तब जब अरविंद केजरीवाल कभी कट्टर विरोधी रहे कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल कर इंडिया ब्लॉक के सदस्य के तौर पर चुनावी मैदान में कूदने की तैयारी कर चुके हैं. हालांकि कांग्रेस के साथ तालमेल की पहली कोशिश चंडीगढ़ मेयर चुनावों में की गई लेकिन वहां वोटिंग में धांधली के आरोपों के बीच गठबंधन का संयुक्त उम्मीदवार चुनाव हार गया. विवाद अब बढ़ाने की तैयारी है क्योंकि केजरीवाल विवादों को भुनाने में बाकियों से कहीं बेहतर रहे हैं. विवादों की बात है तो जब पिछले हफ्ते बिहार में नीतीश कुमार की "पलटने वाली सियासत" चल रही थी उसी बीच आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर बीजेपी पर दिल्ली में अपने विधायकों को तोड़ने के लिए पैसे ऑफर करने का एक बड़ा आरोप लगा दिया. विवादों का बयार शांत होता उससे पहले अरविंद केजरीवाल को इंफोर्समेंट डायरक्टरेट यानि ईडी ने आबकारी नीति मामले में पूछताछ के लिए पांचवा सम्मन भेज दिया.
विवादों से बचेंगे नहीं खुलकर खेलेंगे अरविंद
चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी का मेयर जीत जाता तो बीजेपी के लिए झटका होता. लेकिन, कांग्रेस-आप उम्मीदवार का हार जाना अरविंद केजरीवाल के लिए एक बड़ा मौका बन गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री आम तौर पर अपने पार्टी दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस करने नहीं जाते लेकिन इस हार के ठीक बाद केजरीवाल ने परिपाटी बदल दी. बीजेपी के केंद्रीय कार्यालय से महज 200 मीटर की दूरी पर आम आदमी पार्टी के मुख्यालय ना सिर्फ केजरीवाल पहुंचे बल्कि प्रवक्ताओं की जगह खुद ही प्रेस कांफ्रेंस की और बीजेपी पर हमलावर हो गए. 30 जनवरी को जब केजरीवाल बोल रहे थे तो उन्होंने चंडीगढ़ में हुई घटना को लोकतंत्र की हत्या बताया और उसे 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या से जोड़ दिया. चुनावी गड़बड़ी का आरोप इसलिए भी अहम हो गया क्योंकि बीजेपी पर लगातार विरोधी गैर-लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हथियाने का आरोप लगाते रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने भी साफ कह दिया कि जो पार्टी एक शहर के मेयर चुनाव में धांधली कर सकती है उससे विधानसभा और लोकसभा चुनावों में निष्पक्ष चुनावों की क्या ही उम्मीद की जाए. आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ की लड़ाई को दिल्ली की सड़कों पर उतारने का ऐलान कर दिया है और 2 फरवरी को पंजाब के सीएम भगवंत मान को साथ लेकर वो दिल्ली के बीजेपी हेडक्वार्टर पहुंचेंगे और धरना भी देंगे. तारीख इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि उसी दिन केजरीवाल को ईडी ने अपने दफ्तर पूछताछ के लिए पांचवी बार बुलावा भेजा है. तो केजरीवाल इस बार किसी और राज्य में जाकर सम्मन से नहीं बचेंगे बल्कि बीजेपी के मुख्यालय पर आर-पार की चुनौती देंगे.
क्या केजरीवाल के विधायकों को तोड़ने की कोशिश हुई या बिहार के सत्ता-बदल माहौल में मिल गया आरोप लगाने का मौका?
एक तरफ नीतीश कुमार का पाला बदलना देश की सियासत की सुर्खियां बटोर रहा था तो टाइमिंग के माहिर केजरीवाल ने भी लगे हाथों विधायकों की खरीद फरोख्त को लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. ये कोई पहली बार नहीं है जब आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर ये आरोप लगाया हो कि केंद्र की सत्ताधारी पार्टी विधायकों को तोड़कर दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अस्थिर करने का मंसूबा बना रही है. शनिवार को जिस वक्त बिहार की सियासत में उलटफेर का दौर चल रहा था ठीक उसी वक्त आम आदमी पार्टी ने अपने 7 विधायकों को पैसा ऑफर करने का आरोप लगाया. एक तरफ पार्टी के नेता प्रेस कांफ्रेंस कर रहे तो वहीं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल ने विधायकों को 25-25 करोड़ रुपए ऑफर करने वाला आरोप सोशल मीडिया के एक पोस्ट के जरिए लगा दिया. हालांकि बीजेपी लगातार ऐसे आरोपों को मनगढ़ंत बताती रही है और इस बार तो दिल्ली बीजेपी के सीनियर नेताओं ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से मुलाकात कर इन तथाकथित झूठे आरोपों की जांच करने की शिकायत भी दे दी है.
ममता-नीतीश गए, अब केजरीवाल इंडिया गठबंधन में रहेंगे या उनके मन में भी कुछ और है?
ऐसे वक्त में जब इंडिया ब्लॉक को लेकर कई किस्म की अटकलों का बाज़ार गर्म है वैसे में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन पर कायम रहेंगे या नहीं ये बड़ा सवाल है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही दिल्ली में सीटों के तालमेल को लेकर तो आश्वस्त है लेकिन घोषणा बाकी राज्यों में गठबंधन को लेकर अटका हुआ है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने लगभग ये तय कर लिया है कि पंजाब में साथ चुनाव लड़ना दोनों ही पार्टियों के हित में नहीं है इसलिए दिल्ली, गुजरात और हो सके तो हरियाणा में सीटों का तालमेल कर लिया जाए. कांग्रेस और आप के बीच गुजरात में भरूच सीट को लेकर फिलहाल मामला फंसा है जहां अरविंद केजरीवाल पहले ही अपने प्रत्याशी की उम्मीदवारी घोषित कर चुके हैं. कांग्रेस भी आदिवासी बहुल भरूच लड़ना चाहती है क्योंकि पार्टी का मानना है कि आदिवासी उसके पारंपरिक वोटर रहे हैं. हालांकि गुजरात में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के लिए दो से तीन सीट छोड़ सकती है. हरियाणा में भी गठबंधन के तौर पर कांग्रेस का लोकल नेतृत्व केजरीवाल को कोई सीट नहीं देना चाहता है. ऐसे में क्या दिल्ली में 4-3 के फार्मूला के तहत केजरीवाल को एक अतिरिक्त सीट देकर डील फाइनल की जा सकती है. 3 फरवरी को कांग्रेस पूर्वी दिल्ली के गीता कॉलोनी से अपने चुनावी कैंपेन की शुरुआत करेगी जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे. मुमकिन है कि समझौता उससे पहले हो जाए और 3 फरवरी को खड़गे केजरीवाल के साथ सीटों के फॉर्मूले की आधिकारिक घोषणा भी कर दें.
-कुमार कुनाल की रिपोर्ट