पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धार्मिक तौर पर सबसे ज्यादा ध्रुवीकृत सीटों में से एक कैराना में इस बार भी चुनाव काफी रोचक होने की उम्मीद है. एक दौर था जब यहां पलायन का मुद्दा पूरे देश की सुर्खियां बटोर रहा था, लेकिन इस बार बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने जमीन पर समीकरण बदले हैं. जहां स्थानीय बीजेपी सांसद से नाराजगी भी है वहीं पार्टी समर्थक अभी भी प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के नाम पर वोट देने की बात कह रहे हैं. विरोधी वोटरों ने खेती किसानी से लेकर रोजगार तक को मुद्दा बनाया हुआ है.
यूपी में 8 सीटों पर होगा पहले चरण का चुनाव
उत्तर प्रदेश की जिन 8 सीटों पर पहले चरण में चुनाव होना है उनमें से एक सीट कैराना लोकसभा की भी है. कैराना लोकसभा में शामली जिले के साथ-साथ सहारनपुर जिले के भी नकुर और गंगोह जैसे इलाके आते हैं. इस सीट पर मुस्लिम आबादी 40% से अधिक है इसलिए इंडिया गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है. इलाका ज्यादातर ग्रामीण है इसलिए चुनाव प्रचार गांव में रफ्तार पकड़ रहा है. प्रत्याशी प्रचार में गली-गली गांव गांव भटक रहे हैं और उन्हें अलग-अलग किस्म का रिस्पांस भी वोटरों से मिल रहा है. एक जाट बहुल गांव में हमने लोगों से बात की तो उन्होंने खेती से लेकर युवाओं के रोजगार का मुद्दा उठा दिया.
दो बार कर चुकी बीजेपी सीट हासिल
कैराना की सीट पर लगातार दो बार 2014 और 2019 में बीजेपी ने जीत हासिल की जबकि उससे पहले 2009 में इस क्षेत्र से बीएसपी का सांसद चुना गया था. साल 2019 में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के बावजूद बीजेपी के प्रदीप चौधरी को 50% से ज्यादा वोट मिले थे और सीट पर पार्टी लगभग 90 हजार वोटों से जीती. तब इस बार समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी इकरा हसन की मां तबस्सुम बेगम से प्रदीप चौधरी का मुकाबला था. इस बार हालांकि स्थानीय सांसद से लोगों की शिकायत तो है पर फिर भी वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट देने की बात कर रहे हैं. प्रजापति समाज के लोगों से जब हमने सवाल किए तो देखिए क्या जवाब मिला.
लोगों पर कौन से मुद्दे हैं हावी?
जहां बीजेपी और समाजवादी पार्टी प्रत्याशियों को लेकर वोटरों के मन में अलग-अलग किस्म के सवाल हैं. इस बीच प्रत्याशियों का मिलना लोगों से हो रहा है और कोशिश की जा रही है कि जो शिकायत है उन्हें वोटिंग वाले दिन यानी 19 अप्रैल से पहले दूर कर लिया जाए.
इस बार के चुनाव में जाट बहुल गांवों में चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने और उसके बाद आरएलडी के बीजेपी के साथ जाने से माहौल बदला दिखाई देता है. जो जाट किसान आंदोलन के दौरान सरकार के खिलाफ काफी मुखर थे उनमें से बड़ा तबका जयंत चौधरी की वजह से बीजेपी की ओर दिखता है. हम 32 खाप के मुख्यालय भैंसवाल गांव पहुंचे तो जाटों के समीकरण पर खुल के बात हुई.
कैराना, शामली और सहारनपुर जैसे इलाकों से मिलकर बने इस लोकसभा क्षेत्र में समस्याओं का यूं तो अंबार है, लेकिन वोटरों पर भावनात्मक मुद्दों का असर हावी है. चुनावी मंझधार में दो मुख्य प्रतिद्वंदियों के बीच बीएसपी ने बीजेपी से स्थानीय स्तर पर ठाकुरों की नाराजगी देखते हुए श्री पाल राणा को टिकट दिया है जो मुकाबले में हों ना हों लेकिन 15% दलित वोटों के दम पर उलटफेर कर सकते हैं.
(कुमार कुणाल की रिपोर्ट)