Lok Sabha Elections 2024: मोदी, मुस्लिम, मीडिया... पाकिस्तानी मीडिया के चश्मे से कैसा दिखा भारत का आम चुनाव?

सात चरणों में हुआ लोकसभा चुनाव 2024 न सिर्फ भारत का, बल्कि दुनिया का सबसे महंगा चुनाव है. यह चुनाव हीटवेव से तो गुजरा ही, लेकिन तकनीक के उद्भव और बढ़ते ध्रुवीकरण से भी प्रभावित रहा. भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने इस चुनाव को किस तरह देखा, आइए उस पर डालते हैं एक नजर.

आम चुनावों के नतीजे चार जून को आएंगे. (फोटो/पीटीआई)
शादाब खान
  • नई दिल्ली,
  • 29 मई 2024,
  • अपडेटेड 9:48 PM IST

भारत में चल रहे लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) अब अपने आखिरी चरण की ओर बढ़ रहे हैं. तीन दिन बाद सात राज्यों की 57 सीटों पर मतदान होगा और अगले पांच साल के लिए भारतीय संसद की तकदीर ईवीएम में कैद हो जाएगी. इस बार का लोकसभा चुनाव न सिर्फ हीटवेव के कारण, बल्कि राजनीतिक कटाक्षों से भी गर्म रहा. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के मीडिया ने भारत के आम चुनाव के किन मुद्दों पर नजर रखी और उन पर क्या चर्चा हुई, आइए उस पर डालते हैं एक सरसरी नजर. 

सबसे बड़ा, सबसे लंबा, सबसे महंगा
लोकसभा चुनावों का बिगुल बजने से दो दिन पहले वासिफ शकील ने भारत के चुनावों पर गहरी नजर डाली. शकील ने न सिर्फ सात चरण में हुए चुनावों के आकार पर जोर दिया, बल्कि चुनावों के आर्थिक पहलू पर भी नजर डाली. कई अन्य विशेषज्ञों की तरह शकील ने इस चुनाव को दुनिया का सबसे महंगा चुनाव करार दिया. 

शकील ने जियो न्यूज के लिए लिखा, "1.417 अरब की आबादी वाले भारत में लगभग 96.8 करोड़ मतदाता हैं जो 2014 से देश की सत्ता पर काबिज़ नरेंद्र मोदी की ध्रुवीकरण की राजनीति का भविष्य तय करेंगे." 
इसी लेख में दक्षिण एशियाई राजनीति के विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन ने इकरार किया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता में लौट रही है. उन्होंने कहा कि बीजेपी की लोकप्रियता और विपक्ष की टूट-फूट मोदी सरकार की हैट्रिक का प्रमुख कारण बनेगी. 

सोशल मीडिया और झूठ का जाल 
जैसे-जैसे आम चुनावों ने गति पकड़ी, सोशल मीडिया पर फेक न्यूज, इस्लामोफोबिया और डीपफेक ने भी पैर पसारना शुरू कर दिए. इस चलन ने द एक्सप्रेस ट्रिब्यून नाम के अखबार का ध्यान अपनी ओर खींचा. पाकिस्तान के इस अखबार ने चौथे चरण से पहले लिखा, "जैसे-जैसे भारतीय राजनीति में चल रहे आम चुनाव तेजी पकड़ रहे हैं, एक परेशान करने वाला पैटर्न सामने आया है. पड़ोसी देश में राजनीतिक विज्ञापनों में इस्लामोफोबिक बयानबाजी बहुत ज्यादा बढ़ गई है." 

इस रिपोर्ट में भारतीय फैक्ट चेक संस्था बूम के हवाले से कहा गया कि सोशल मीडिया पर कई पेज समाज को बांटने वाला कंटेंट पोस्ट कर रहे थे. इनमें से कई बीजेपी की विरोधी पार्टियों को निशाना बना रहे थे और इनके कंटेंट में 'इस्लामोफोबिया' की एक झलक थी. 
रिपोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि अप्रैल 2024 में बीजेपी ने सिर्फ फेसबुक पर 10 करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए, जबकि कांग्रेस ने 6.5 करोड़ रुपए खर्च किए. 

रिपोर्ट में लिखा गया, "जांच में मुख्यधारा के राजनीतिक हैंडलों के परेशान करने वाले उदाहरण सामने आए. इनमें भाजपा से जुड़े लोग भी मुस्लिम विरोधी बातों का प्रसार कर रहे हैं. बीजेपी कर्नाटक और बीजेपी के आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट की ओर से पोस्ट किए गए वीडियो में मुसलमानों को अपमानजनक रूप से दर्शाया गया है. रूढ़िवादिता को कायम रखा गया है और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया गया है." 

मोदी और मुसलमान
इस बार के आम चुनावों में 'वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यूशन' (wealth redistribution) यानि संपत्ति का पुनर्वितरण एक बड़ा मुद्दा बना रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिस बयान ने सबसे ज्यादा कान खड़े किए, वह भी इसी मुद्दे से जुड़ा हुआ था. 
पीएम मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में एक रैली के दौरान कहा था, "जब उनकी (कांग्रेस) सरकार थी तो उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है. ये आपका धन इकट्ठा करके उनको बांटेंगे जिनके ज्यादा बच्चे हैं. (आपका धन) घुसपैठियों को बाटेंगे. क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा, क्या यह आपको मंजूर है?" 

उन्होंने कहा था, "कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि हम माताओं, बहनों के सोने का हिसाब करेंगे और फिर उन लोगों को धन वितरित करेंगे जिनके लिए मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था कि संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. यह अर्बन नक्सल की सोच है जो आपका मंगलसूत्र भी आपके पास नहीं रहने देंगे, इस हद तक चले जाएंगे." 
पीएम मोदी ने हालांकि बाद में इस बयान को लेकर सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने जीवन में कभी 'हिन्दू-मुस्लिम' नहीं किया. उन्होंने कहा था कि वह कांग्रेस को निशाना बना रहे थे, न कि मुसलमानों को. हालांकि इस समय तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक पीएम मोदी का यह बयान पहुंच चुका था. 

इस बयान को संज्ञान में लेते हुए नोमान माजिद ने द डॉन के लिए लिखा, "बीजेपी-आरएसएस के आख्यान में भारतीय मुसलमान एक बाहरी व्यक्ति है. इस 'घुसपैठिए' मुस्लिम की विशेषताओं को न केवल भाजपा-आरएसएस नेतृत्व ने भाषणों में घोषित किया है, बल्कि उनके खिलाफ अक्सर की जाने वाली हिंसा के जरिए भी महसूस किया है." 

वह लिखते हैं, "भारत का मुस्लिम 'घुसपैठिया' दरअसल बहुत गरीब है, शिक्षा में पिछड़ा हुआ है और अच्छी नौकरियों में भी पिछड़ गया है. मुसलमानों की यह प्रोफ़ाइल भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से पेश की गई तस्वीर को आइना दिखाती है, जिसमें वह दलितों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करते हैं. दरअसल दलित और मुसलमान अपनी दुर्दशा के मामले में इससे ज्यादा करीब नहीं रहे, और उन्हें एक दूसरे का राजनीतिक साझेदार होना चाहिए." 
"भारत को शुद्ध बनाने के बीजेपी-आरएसएस के एक सपने का हिस्सा मुसलमानों को बंधक बनाना भी है. इस मकसद को पूरा करने के लिए पार्टी ने हिन्दू भारत के विकास का सपना दिखाने की कोशिश की है. यह सपना कांग्रेस की एक 'साजिश' के बहाने से भारत के गरीबों के ठहरे हुए विकास के लिए मुसलमानों को मिलने वाले लाभ को जिम्मेदार ठहराता है." 
 

 

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