Lucknow Lok Sabha Seat: लखनऊ लोकसभा सीट से Rajnath Singh ने भरा पर्चा, अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत से जुड़ी है ये सीट, जानें किस्से

UP Lok Sabha Election 2024: लखनऊ लोकसभा सीट से रक्षा मंत्री और बीजेपी के सीनियर लीडर राजनाथ सिंह ने पर्चा भरा है. इस बार लखनऊ में 'अबकी बार, 5 लाख पार' का नारा गूंज रहा है. लखनऊ लोकसभा सीट का इतिहास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा है. इस सीट से पूर्व पीएम वाजपेयी 5 बार सांसद रहे. अब उनकी सियासी विरासत को राजनाथ सिंह संभाल रहे हैं.

Rajnath Singh, Yogi Adityanath during a road show before filing his nomination in Lucknow (Photo/PTI) and Atal Bihari Vajpayee (Photo File)
शिल्पी सेन
  • लखनऊ,
  • 30 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 9:02 AM IST

लखनऊ लोकसभा सीट से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है. देश में 'अबकी बार, 400 पार' का नारा देने वाली बीजेपी लखनऊ में 'अबकी बार, 5 लाख पार' का नारा दे रही है. पार्टी कार्यकर्ता इस बार 5 लाख के अंतर से जीत दर्ज करने का दावा कर रहे हैं. इस चुनाव में अटल की 'विरासत पर सियासत' के वो रंग भी दिख रहे हैं, जिसकी शुरुआत तीन दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. आज भी लखनऊ में अटल की 'विरासत पर सियासत' में 'अटल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स' की झलक मिल जाती है, जिसमें सबको साधने के हुनर के साथ सीधे वार या आक्रामकता की जगह चुटीले अन्दाज में विरोधियों पर सियासी तंज ही सुनाई पड़ते हैं.
 
अटल की सियासी विरासत पर अटल स्टाइल में चुनाव- 
लखनऊ से तीसरी बार सांसद बनने के लिए राजनाथ सिंह ने नामांकन दाखिल किया तो गुज़रे ज़माने की सियासत और सियासत के 'अटल स्टाइल' की याद भी ताज़ा हो गई. सबको साथ लेकर चलने की परम्परा और राजनाथ सिंह के सियासी कद को देखते हुए नामांकन जुलूस में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी तो शामिल हुए ही, हर वर्ग के नेता और पार्टी के पदाधिकारी शामिल हुए. नामांकन जुलूस का लखनऊ में हर धर्म और हर वर्ग के लोगों ने स्वागत किया. जुलूस में लोग गुज़रे ज़माने के उन चुनाव को याद करते रहे, जिसकी वजह से लखनऊ एक अलग तरह की राजनीति के लिए जाना जाता है.

लखनऊ के सांसद का चुनाव दरअसल 'विरासत पर सियासत' का भी एक उदाहरण है. लेकिन ये विरासत किसी परिवार की नहीं, बल्कि बीजेपी की राजनीति के शिखर पुरुष की है. जिन्होंने लखनऊ लोकसभा सीट का 5 बार प्रतिनिधित्व किया और यहीं के सांसद रहते हुए देश का प्रतिनिधित्व भी किया है. अटल के बाद भी 'अटल' की विरासत संभालने के नाम पर ही यहाँ चुनाव होता रहा. अटल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स ने ना सिर्फ लखनऊ सीट के चुनाव को रोचक बनाया, बल्कि आज भी राजनाथ सिंह उसे फॉलो करते हुए देखे जाते हैं.

अबकी बारी, अटल बिहारी का नारा-
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपने सियासी विरोधियों पर आक्रामक वार की जगह चुटीले अन्दाज़ में निशाना और सियासी तंज़ के लिए भी जाना जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ के गली-गली में वोट मांगने के दौरान और चौक चौराहा, कपूरथला चौराहा, आलमनगर गेट जैसी जगहों पर नुक्कड़ सभा के दौरान अपने विरोधियों पर हमले तो खूब किए, लेकिन उनकी बातों में आक्रामकता की जगह सियासी तंज़ और चुटीले वाक्य ही होते थे, जिनकी काट विपक्षी दलों के नेताओं और उनके खिलाफ चुनावी मैदान में उतारे गए फ़िल्मी सितारों के पास नहीं होती थी.

अटल भरी सभा में ये बातें कहते थे और वहां मौजूद लोग ठहाका मारकर हंस पड़ते थे. यहाँ चुनावी नारे में अटल जी का नाम हमेशा शामिल रहा. 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव लड़ने पर 'वोट अटल को, वोट कमल को' नारा लगा तो वहीं 'अब की बारी, अटल बिहारी' नारा बाद के समय में सबसे ज्यादा सुनाई पड़ता रहा. प्रधानमंत्री बने अटल ने जब दोबारा चुनाव लड़ा तो 'राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं अटल बिहारी' नारे ने जोर पकड़ा. अटल जी जहां नुक्कड़ सभाओं में जाते थे, वहीं अपने ख़ास अन्दाज़ और काव्यात्मक लहजे की वजह से लोग उनको सुनना पसंद करते थे.

अटल ने जब लोगों से पैजामा मांगा था-
अटल बिहारी वाजपेयी का अन्दाज़ बिल्कुल अलग था. साल 2006 में मेयर चुनाव के दौरान अटल कपूरथला में चुनाव सभा को संबोधित करने पहुंचे. डॉ दिनेश शर्मा बीजेपी के प्रत्याशी थे. अटल ने मंच से जनता से पैजामा माँग लिया. अटल जी ने कहा कि आपने मुझे सांसद बनाकर कुर्ता दिया है. अब मेयर चुन कर पैजामा भी दीजिए. ये सुनते ही सभा में लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े. अटल के व्यक्तित्व का प्रभाव था कि उनके बाद जब लालजी टंडन को प्रत्याशी बनाया गया तो उन्होंने कहा कि वो दिल्ली जा कर अटल जी का आशीर्वाद लाए हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के सामने जब राज बब्बर को चुनावी मैदान में उतारा गया तो उनकी सभाओं में भीड़ जुटने लगी. लालजी टंडन अटल के चुनाव का प्रबंधन देखते थे. दरअसल पहली बार स्थानीय निकाय के चुनाव में डॉ शम्सुद्दीन खड़े हुए. उनके सामने लोगों ने दिलरुबा नाम की तवायफ़ को चुनाव में खड़ा कर दिया. दिलरुबा की सभाओं में भीड़ जुटने लगी. तब नारा दिया गया 'दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शम्सुद्दीन को '... इसी तर्ज़ पर कहा गया कि अभिनेता राज बब्बर की सभा में भले जाएं, पर वोट तो लोकप्रिय नेता अटल जी को ही दें.
 
अटल के आने के बाद से बदली सियासी फ़िज़ा-
लखनऊ लोकसभा सीट शुरुआत में कांग्रेस के खाते में रही. लेकिन 1991 के बाद से इस पर बीजेपी का ही क़ब्ज़ा रहा. विपक्षी दलों ने अटल बिहारी वाजपेयी के सामने 1991 में रंजीत सिंह, 1996 में राज बब्बर, 1998 में मुज़फ़्फ़र अली, 1999 में कर्ण सिंह और 2004 में डॉ मधु गुप्ता को उम्मीदवार बनाया गया. लेकिन अटल की शख़्सियत के आगे सितारों का जादू भी नहीं चला. अटल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स लखनऊ के लोगों को इतनी पसंद आयी कि अटल को ही लगातार लखनऊ के लोग चुनते रहे. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद 2009 में लालजी टंडन और 2014 से अब तक राजनाथ सिंह भी अपने सियासी विरोधियों पर इसी तरह से चुटकी लेते रहे और चुनाव से इतर राजनीति में सबके साथ उनके रिश्ते अच्छे रहे. राजनाथ सिंह आक्रामकता नहीं, अपने अन्दाज में सियासी विरोधियों पर वार के लिए जाने जाते हैं.

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