देश में लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) का बिगुल बज चुका है. अब तक पांच चरणों का मतदान हो चुका है. पांच फेज के चुनाव के खत्म होने के बाद अब बहुजन समाज पार्टी (BSP) को लेकर नई चर्चा चल पड़ी है कि क्या बीएसपी कहीं चुनावी रेस में बाहर तो नहीं हो गई?
कहा जा रहा है कि जिस तरीके से बसपा बीच चुनाव में लगातार उम्मीदवार बदलती रही और पार्टी ने ऐलान के बाद 14 उम्मीदवार बदल डाले, उससे बसपा की धार कमजोर पड़ी है. कहा तो ये भी जा रहा है कि बीजेपी की 'B' टीम का टैग जो धीरे-धीरे हटने लगा था, वह एक बार फिर बसपा पर लगने लगा है.
इस फैसले बसपा के युवा वोटरों को किया निराश
राजनीति के जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान बसपा के लिए दो ऐसे मोड़ आए, जो बेहद अहम थे. पहला आकाश आनंद को बीच चुनाव से हटा लेना और को-ऑर्डिनेटर के पद से यह कहकर बर्खास्त कर देना कि वह भी परिपक्व नहीं हुए हैं. इस फैसले ने बसपा के युवा वोटरों को बेहद निराश किया. जिससे वह विकल्प ढूंढने लगे और ऐसे में समाजवादी पार्टी की तरफ इनका रुख स्पष्ट दिखाई दे रहा है.
दूसरा मौका धनंजय सिंह की पत्नी के मामले में बसपा बैकफुट पर दिखाई दी. मायावती ने अपने कैंडिडेट का टिकट काटकर श्रीकला धनंजय को टिकट दिया था, लेकिन मायावती धनंजय सिंह की सियासी चाल भांप नहीं पाईं. धनंजय सिंह बीजेपी से सेटिंग कर ली और चुपचाप पत्नी को लेकर भाजपा के साथ हो लिए. ये दोनों फैसले बसपा की चुनाव यात्रा में झटके की तरह थे.
...तो शायद आज पार्टी की यह स्थिति नहीं होती
मायावती के वोटर भी मानते हैं कि यदि बहनजी यानी मायावती (Mayawati) ने इंडिया ब्लॉक के साथ जाने का ऑफर ना ठुकराया होता या कम से कम कांग्रेस को ही साथ ले लिया होता, तो शायद आज यह पार्टी की ये स्थिति नहीं होती. जाटव वोटर्स को बसपा का कोर वोटर कहा जाता है. वह आज भी बसपा के साथ मजबूती से बना हुआ है. हालांकि इनमें से भी कुछ वोटर मायावती से नाराज दिखाई दे रहे हैं और ऑप्शन की तलाश में हैं. ऐसे में कहीं समाजवादी पार्टी तो कहीं चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के साथ जाते दिख रहे हैं, लेकिन थोड़े उम्रदराज कोर वोटर अब भी प्रतिबद्धता के साथ मायावती को ही अपना नेता मानते हैं.
इन सीटों पर उम्मीदवारों को बदल डाला
बसपा की चुनावी गंभीरता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चौथे चरण के चुनाव के पहले तक मायावती अपने उम्मीदवार बदलती रहीं. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने भविष्य के चेहरे को भी हटा दिया. इन 14 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बाद मायावती ने बीच चुनाव में बदल डाला है.
1. जौनपुर: जौनपुर से बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला को बसपा ने अपना कैंडिडेट बनाया था, लेकिन उनका टिकट काटकर बहुजन समाज पार्टी के सांसद रहे श्याम सिंह यादव को टिकट दे दिया.
2. वाराणसीः इसी तरह वाराणसी में भी बसपा ने दो बार टिकट बदला. यहां पहले अतहर जमाल लारी को बसपा ने अपना कैंडिडेट बनाया था, लेकिन एक ही हफ्ते बाद बसपा ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए सैयद नियाज अली मंजू को प्रत्याशी घोषित कर दिया. लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर एक बार फिर अतहर जमाल लारी को प्रत्याशी घोषित कर दिया.
3. आजमगढ़ः यहां बसपा ने पहले भीम राजभर को प्रत्याशी बनाया. उसके बाद उनका टिकट काटकर सबिया अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन बाद में सबिया अंसारी का भी टिकट काट दिया ग और उनके पति मसहूद अहमद को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया.
4. अलीगढ़: यहां पहले बहुजन समाज पार्टी ने गुफरान नूर को अपना प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन बाद में उनकी जगह हितेंद्र उपाध्याय को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया.
5. मथुराः यहां भी बसपा ने अपना कैंडिडेट बदला था. पहले मथुरा से कमलकांत उपमन्यु को टिकट दिया गया, लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर चौधरी सुरेश सिंह को टिकट दे दिया गया.
6. फिरोजाबादः यहां पहले बहुजन समाज पार्टी ने पहले सत्येंद्र जैन सोली को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर उनकी जगह चौधरी सुरेश सिंह को प्रत्याशी बना दिया.
7. झांसी: यहां मायावती ने ने पहले एडवोकेट राकेश कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर रवि कुशवाहा को दे दिया और उनको अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.
8. डुमरियागंजः इस लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने पहले गोरखपुर के रहने वाले ख्वाजा शमसुद्दीन को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन चार दिन बाद ही बसपा नें जब 11वीं सूची जारी की, तो उसमें शमसुद्दीन का टिकट काटकर मोहम्मद नदीम मिर्जा का नाम घोषित कर दिया.
9. संत कबीरनगर: यहां से बहुजन समाज पार्टी ने पहले मोहम्मद आलम को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन 15 दिन बाद ही उनका टिकट काटकर दानिश अशरफ को टिकट दे दिया गया, लेकिन चार दिन बाद ही बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर अपना प्रत्याशी बदल दिया और यहां से नदीम अशरफ को प्रत्याशी घोषित कर दिया.
10. मैनपुरीः बहुजन समाज पार्टी ने मैनपुरी सीट पर पहले गुलशन शाक्य को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन तीन-चार दिन बाद ही इनका टिकट काट दिया और शिवप्रसाद यादव को अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया.
11. गाजियाबादः इस लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी ने पहले अंशय कालरा उर्फ़ राकी को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाद में बसपा ने अंशय कालरा का टिकट काटकर यहां से नंदकिशोर पुंडीर को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.
12. अमेठी: इस लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने पहले रवि प्रकाश मौर्य को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाद में इनका टिकट काटकर नन्हे सिंह चौहान को दिया गया.
13. भदोही: यहां से बसपा ने पहले अतहर अंसारी को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन इनका टिकट काटकर इरफान अहमद को दे दिया, लेकिन बसपा ने बाद में इनका भी टिकट काट दिया और हरिशंकर सिंह चौहान
को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.
14. बस्तीः यहां बसपा के पूर्व प्रत्याशी दयाशंकर मिश्रा का टिकट कटा. उनकी जगह पर लवकुश पटेल को बसपा ने बनाया उम्मीदवार बनाया.
बीजेपी के इशारे पर उम्मीदवार बदलने का आरोप
मायावती लगातार चुनाव प्रचार कर रही हैं और हर दिन किसी न किसी लोकसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशी के पक्ष में बड़ी सभा करती नजर आ रही हैं, लेकिन इसका फायदा सिर्फ इतना है कि उनके अपने वोटर में उनके प्रति जो अगाध विश्वास था, वह बचा हुआ है. अगर मायावती इस बार चुनाव प्रचार में नहीं आतीं, तो उनके कोर वोट बैंक का बड़े स्तर पर बिखरने का खतरा था, जैसा कि 2022 में हुआ था. लेकिन मायावती ने अप जाटव वोट बैंक बचा लिया था, लेकिन सवाल ये है कि क्या मायावती चुनाव बचा पाएंगी?
इस चुनाव से पहत मायावती ने बीजेपी की 'B' टीम का ठप्पा लगभग हटा लिया था, कहा जा रहा था कि मायावती ने जिस तरीके से उम्मीदवार उतारे हैं, उससे बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों को बराबर का नुकसान हो रहा है. मुजफ्फरनगर में प्रजापति उम्मीदवार, बीजेपी कैंडिडेट संजीव बालियान के लिए सरदर्द बना रहा. बसपा ठाकुर बिरादरी का उम्मीदवार उतारकर भाजपा को मुश्किल में डाल दिया था, लेकिन तीन चरणों के बाद जिस तरह उम्मीदवार बदले गए, तब आरोप लगने लगा कि मायावती ने बीजेपी के इशारे पर या उनके प्रत्याशी को जिताने के लिए अपने उम्मीदवार बदले.
ऐसी क्या मजबूरी... रातोरात बदले टिकट
बस्ती में दयाशंकर मिश्र का टिकट काटा गया था, दयाशंकर मिश्र बीजेपी के जिला अध्यक्ष थे और बस्ती से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बसपा से टिकट लिया था. कहा जा रहा था कि अगर दयाशंकर मिश्र चुनाव लड़ेंगे, तो बीजेपी के 2 बार के सांसद हरीश द्विवेदी के लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा, वह अपनी सीट गंवा भी सकते हैं. ऐसे में मायावती ने इस सीट से अपना प्रत्याशी बदल दिया.
इससे यह संदेश गया कि यहां मायावती बीजेपी को जिताना चाहती हैं. जौनपुर में तो यह बिल्कुल साफ हो गया, जब कृपाशंकर सिंह के लिए श्रीकला धनंजय को टिकट देने के बाद उनका टिकट वापस हो गया और उनकी जगह बसपा ने अपने पुराने सांसद श्याम सिंह यादव को रातोरात टिकट दे दिया. सिर्फ बस्ती और जौनपुर की बात नहीं हैं, बल्कि पूर्वांचल में कई सीटों पर कई बार उम्मीदवार बदलने से बसपा खुद लड़खड़ा गई. हर चरण के साथ हाथी की चाल मंद और बसपा की सियासी धार कुंद होती जा रही है.