Story of Second General elections: आजाद भारत का वो चुनाव जिसने बदलकर रख दिया था देश का नक्शा, नए सिरे से सजा था लोकतंत्र का मंच  

कांग्रेस ने पिछली 364 सीटों से बढ़कर 371 सीटों के साथ जीत हासिल की. वोट शेयर भी इस बार सुधर गया था. 1951 में जो वोट शेयर 45 प्रतिशत था वो 1957 में बढ़कर 47.8 प्रतिशत हो गया था.

Second General elections
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:04 AM IST
  • चुनाव जिसने बदलकर रख दिया देश का नक्शा
  • नए सिरे से सजा था लोकतंत्र का मंच  

Second General elections: कहानी साल 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव की. पहला लोकसभा चुनाव संपन्न हुए करीब पांच साल बीत चुके थे. कांग्रेस ने 489 संसदीय सीटों में से 364 सीटें जीतकर स्वतंत्र भारत में पहली निर्वाचित सरकार बनाई थी. अब ये वो समय था जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पांच साल का कार्यकाल खत्म होने जा रहा था. भारत के लिए देश के दूसरे प्रधानमंत्री को चुनने का समय आ गया था. जैसे ही भारत के प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू पहले कार्यकाल के अंत के करीब पहुंचे, देश ने 1957 के लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली. 1951 की उस ऐतिहासिक जीत के पांच साल बीत चुके थे, जिसमें कांग्रेस ने स्वतंत्र भारत में पहली निर्वाचित सरकार बनाई थी. हालांकि, इस बार ये चुनाव अलग था. चर्चा इस बात की नहीं थी कि कौन जीतेगा, बल्कि यह थी कि किस अंतर से जीतेगा. 

दूसरे आम चुनाव की घोषणा हुई और पिछले चुनाव के बड़े मतदान कार्यक्रम से हटकर इस बार कुछ अलग किया गया. 1957 के चुनाव को 24 फरवरी से 9 जून तक साढ़े तीन महीने में विभाजित किया गया. इस बार एक नए सिरे से लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंच फिर से तैयार किया जा रहा था. 

जैसे ही नतीजे सामने आए, नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर से अपना प्रभुत्व जमाया. इस परिणाम की उम्मीद सभी को थी. 1957 में लोकसभा का आकार 489 से बढ़कर 494 सीटों तक पहुंच गया था. और इसी के साथ कांग्रेस की जीत का अंतर भी बढ़ गया. कांग्रेस ने पिछली 364 सीटों से बढ़कर 371 सीटों के साथ जीत हासिल की. वोट शेयर भी इस बार सुधर गया था. 1951 में जो कांग्रेस का वोट शेयर 45 प्रतिशत था वो 1957 में बढ़कर 47.8 प्रतिशत हो गया. खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां कांग्रेस ने 86 सीटों में से 70 सीटें जीतकर ये बता दिया था कि देश की जनता उन्हें अपना चुकी है और उनपर भरोसा कर रही है. 

इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के ठीक पीछे थी. पार्टी ने 27 सीटों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया. सीट जीतने वालों में निर्दलीय उम्मीदवार भी डटे रहे. जिन 481 निर्वाचन क्षेत्रों पर निर्दलीयों ने चुनाव लड़ा, उनमें से 42 सीटों पर उन्होंने जीत दर्ज की. कुल मिलाकर, चार राष्ट्रीय पार्टियों ने 919 उम्मीदवारों को नामांकित किया और 421 सीटें जीतीं, साथ ही 11 क्षेत्रीय दलों ने लोकसभा में 31 सीटों का योगदान दिया. 

मामूली उपस्थिति के बावजूद, 45 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 22 विजयी रहीं. महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कांग्रेस 27 सीटों के साथ आगे रही, उसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी से चार और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से तीन सीटें आईं.

इस दौरान चुनाव आयोग ने 1951-52 के पहले मतदान से काफी कुछ सीखा. 1957 के लोकसभा चुनाव में कई बदलाव किए गए थे. चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने 1957 के चुनाव के खर्च में कटौती की. देश के 19,36,52,179 मतदाताओं ने वोट डाला. इसबार मतदान प्रतिशत 45.44 रहा था. 

1957 का चुनाव बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्रों (Multi-member constituencies) में मतदान का आखिरी उदाहरण था. उस समय ड्यूल सीट सिस्टम था- एक सीट सामान्य श्रेणी से और एक एससी/एसटी से. ड्यूल सीट सिस्टम का मतलब एक ही सीट पर दो सांसदों का चुना जाना है. देश में जब पहले आम चुनाव हुए थे तब कई सीटों पर ड्यूल सीट सिस्टम था. इनकी संख्या तब 86 थी. यानी 86 सीटों पर दो-दो सांसद निर्वाचित हुए थे. इनमें से एक सांसद सामान्य वर्ग से था और एक एससी/एसटी वर्ग से. लेकिन जब 1957 में दूसरे आम चुनाव हुए सीटों की संख्या बढ़कर 91 हो गई. लेकिन उसके बाद इस सिस्टम को खत्म कर दिया गया था. 

जवाहरलाल नेहरु तीसरी पंचवर्षीय योजना पर हस्ताक्षर करते हुए (फोटो-कांग्रेस ट्वीटर )

इस चुनाव के बाद जो सबसे बड़ा बदलाव था वो देश के नक्शे को लेकर हुआ. 1957 का चुनाव राज्य पुनर्गठन अधिनियम लाया जिसने भारत के नक्शे को बदलकर रख दिया. इस कानून ने भाषाई आधार पर भारत के मानचित्र को फिर से परिभाषित किया. इस कानून से ही 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों का निर्माण हुआ. ये राज्य थे - आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, बॉम्बे, जम्मू और कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल. इनके अलावा छह केंद्र शासित प्रदेश- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मिनिकॉय और अमिनदीवी द्वीप समूह, मणिपुर और त्रिपुरा थे. 

जैसे ही 1957 के लोकसभा चुनाव की धूल थम गई, भारत ने न केवल अपने नेताओं को चुन लिया था, बल्कि अपनी राजनीतिक गतिशीलता में भी जरूरी और बड़े बदलाव देखे... इसी से लगातार विकसित हो रहे लोकतंत्र के लिए मंच तैयार हुआ.


 

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